पर्याप्त वजह है विरोध की
एक बार महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने अपने विद्यार्थियों की परीक्षा ली। एक परीक्षार्थी ने उनसे पूछा 'सर इसमें सारे प्रश्न वही हैं जो पिछली परीक्षा में पूछे गए थे। इस पर आइंस्टीन ने उत्तर दिया कि कोई चिंता की बात नहीं है। इस बार प्रश्न के उत्तर अलग हैं। यहां आइंस्टीन के कथन का तात्पर्य यह है कि प्रश्न तो वही रहते हैं परन्तु बदलते परिवेश में उ
एक बार महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने अपने विद्यार्थियों की परीक्षा ली। एक परीक्षार्थी ने उनसे पूछा 'सर इसमें सारे प्रश्न वही हैं जो पिछली परीक्षा में पूछे गए थे। इस पर आइंस्टीन ने उत्तर दिया कि कोई चिंता की बात नहीं है। इस बार प्रश्न के उत्तर अलग हैं। यहां आइंस्टीन के कथन का तात्पर्य यह है कि प्रश्न तो वही रहते हैं परन्तु बदलते परिवेश में उनका विश्लेषण बदल जाता है। यह कहानी भारत और उसकी सिविल सेवा के लिये भी प्रासंगिक है। अगर इस कहानी के मर्म को समझते हुए संघ लोक सेवा आयोग के कर्ताधर्ता उसके अनुसार सिविल सेवाओं की परीक्षा आयोजित कराते तो शायद सीसैट को लेकर कोई बखेड़ा ही नहीं खड़ा हुआ होता। आज जरूरत इस बात की है कि बदलते समय की सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं के अनुकूल अभ्यर्थियों का परीक्षण हो। परन्तु संघ लोक सेवा आयोग है कि एक विशेष भाषायी वर्ग को लाभ पहुंचा रही है। देश की विभिन्न प्रशासकीय सेवाओं की उम्मीदवारी के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) परीक्षाएं संचालित करता है। ये परीक्षाएं तीन चरणों में ली जाती हैं। प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार। हाल के वर्षो में यह भर्ती प्रक्रिया पूर्णतर्या हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के उम्मीदवारों के साथ भेदभावपरक व अन्यायपूर्ण ढंग से संचालित की जा रही है जिसका खामियाजा ग्रामीण भारत से संबंधित अभ्यर्थी भुगत रहे हैं। ये अभ्यर्थी ग्रामीण पृष्ठभूमि एवं साधारण सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के हैं।
भाषा वार सफल उम्मीदवार
आंकड़ों का अध्ययन किया जाए तो आधे दशक पहले संघ लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों में अंग्रेजी और हिंदी माध्यम के छात्रों की हिस्सेदारी कमोबेश बराबर थी। परंतु 2013 में सफल हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की हिस्सेदारी 2.3 फीसद पर सिमट गई।
मुख्य परीक्षा में सफलता पर एक नजर:
साल -- कुल अभ्यर्थी -- अंग्रेजी माध्यम -- प्रतिशत -- हिंदी माध्यम -- कन्नड/तेलुगु/ तमिल
2008 -- 11,279 -- 5817 -- 52 -- 5082 -- 45 -- 14/117/ 98
2009 -- 11,456 -- 6244 -- 54 -- 4865 -- 42 -- 11/85/90
2010 -- 11,777 -- 7329 -- 62 -- 4196 -- 36 -- 11/69/38
2011 -- 11,097 -- 9203 -- 83 -- 1700 -- 15 -- 5/29/14
2012 -- 12,176 -- 9961 -- 82 -- 1976 -- 16 -- -
2013 -- 14,959 -- - - -- 26 -- 2 -- -
सीसैट का असर
आंकड़े बताते हैं कि 2011 में सीसैट परीक्षा प्रणाली से हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषी छात्रों की सफलता का मार्ग अवरुद्ध हुआ है। यह दिखाता है कि भारत में समावेशी विकास यानी सबको साथ लेकर विकास करने के रास्ते में संघ लोक सेवा आयोग की भर्ती प्रक्रिया एक बड़ी बाधा खड़ी कर रहा है। ऐसे में यूपीएससी को उन अभ्यर्थियों का चयन करने की प्रक्रिया अपनानी चाहिए जो भारत के सभी क्षेत्रों से हो तथा उदारीकरण-निजीकरण एवं भूमंडलीकरण की चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझते हों। यहां यह कहने का आशय नहीं है कि अंग्रेजी भाषा के अभ्यर्थी कहीं से कम हैं, कहना बस इतना है कि भर्ती-प्रक्रिया को इतना जटिल न बनाया जाये कि एक विशेष रूप से शिक्षित समुदाय को इसका लाभ मिले और सरकारी स्कूलों से शिक्षा प्राप्त समुदाय को नुकसान हो।
सीसैट पद्धति का उद्भव
वर्तमान सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा वाईके अलघ समिति की संस्तुति के कुछ ही अंशों को समाहित करती है। उन्होंने सीसैट परीक्षा प्रणाली लागू करने की संस्तुति जरूर की थी, परंतु यह नहीं कहा था कि भाषायी आधार पर हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषा के अभ्यर्थियों के लिए गूगल ट्रांसलेशन के द्वारा हिंदी भाषा को दुरुह बना दिया जाए। दरअसल गलत एवं जटिल अनुवाद हिंदी भाषी ग्रामीण एवं शहरी पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों की सफलता में एक बड़ा अवरोधक बने हुए हैं।
हिंदी अनुवाद बड़ा विवाद
तीन वर्षो 2011, 2012, 2013 के सीसैट प्रश्नपत्र एवं सामान्य अध्ययन मुख्य परीक्षा का विश्लेषण करें तो इस भेदभाव को और अच्छे ढंग से स्थापित किया जा सकेगा। सीसैट प्रश्नपत्र-द्वितीय में द्विभाष्य कांम्प्रीहेंशन में कठिन व बेतुके अनुवाद के कारण हिंदी माध्यम के तथा जो अभ्यर्थी अंग्रेजी भाषा के साथ सहज नहीं हैं, वे प्रश्नपत्र में आये 70-100 अंकों वाले लगभग 30-40 प्रश्नों में असहज महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2013 के सामान्य अध्ययन मुख्य परीक्षा के प्रश्नों अंग्रेजी में एवं उनके गलत हिंदी रूपांतरण को देखा जा सकता है।
2013 के सामान्य अध्ययन का प्रश्न पत्र-3 का प्रश्न 9 ए: डिस्कस द इंपैक्ट ऑफ एफडीआइ इंट्री इन टू मल्टी ट्रेड रिटेल सेक्टर ऑन सप्लाई चेन मैनेजमेंट इन कमोडिटी ट्रेड पैटर्न ऑफ द इकोनॉमी
इसका लिखा गया हिंदी
अनुवाद यह था- 'अर्थव्यवस्था के माल व्यापार पद्धति में बहु व्यापार खुदरा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में प्रवेश के प्रभाव की विवेचना कीजिये।'
यूपीएससी द्वारा गठित श्री निगवेकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में टिप्पणी की है कि 'अंग्रेजी से किया जाने वाला अनुवाद मशीनी किस्म का होता है।
शुरुआत ही गड़बड़
प्रारंभिक परीक्षा में सीसैट प्रश्नपत्र-द्वितीय में 8-9 सवाल सिर्फ अंग्रेजी भाषा में पूछे जाते हैं जो अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए किसी हलुवे की तरह होते हैं और हिंदी माध्यम के विद्यर्थियों के लिए अत्यंत दुष्कर। ऐसे में अगर एक प्रश्न भी गलत हो जाये तो 2.5 अंकों के नुकसान के अलावा नेगेटिव मार्किंग के कारण 0.83 अंकों का अतिरिक्त नुकसान हो जाता है। यहां यह कहकर वर्तमान प्रणाली को न्यायोचित ठहराया जा सकता है कि भारत की सर्वोच्च सेवा में चयनित होना है तो इतनी अंग्रेजी (10वीं स्तर तक) तो आनी ही चाहिए। परन्तु यहां इस संबंध में यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि प्रारंभिक परीक्षा में प्रश्नों को हल करने में 'गति' महत्वपूर्ण हो जाती है जो इस पैटर्न में अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ हैं अत: यदि बराबर की प्रतिस्पर्धा करानी है तो अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं को भी जगह दी जाये। इन महत्वपूर्ण वजहों से हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा में कम से कम 30-40 अंकों तथा मुख्य परीक्षा में भी अधिकतम अंकों का नुकसान झेलने को विवश हैं। सीसैट प्रणाली में बदलाव को लेकर आंदोलनरत छात्रों और वर्तमान हालात को देखते हुए धूमिल की एक पंक्ति याद आती है।
लोहे का स्वाद, उस लोहार से मत पूछो।
उस घोड़े से पूछो, जिसके मुंह में लगाम है।
आज यूपीएससी के कर्ताधर्ता उस लोहार की तरह हो गए हैं जो लोहे को बिना उसके गुण-धर्म को देखते हुए पीटकर अपने अनुकूल आकार देना चाहता है। वे लोग हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थियों के साथ भी कुछ लोहे सरीखा व्यवहार कर रहे हैं। अभ्यर्थी विवश हैं। कुछ बोलने-करने को। उस घोड़े की तरह जिसके मुंह में लगाम लगी है।
-सुनील के सिंह [संपादक, अभिव्यक्ति सिविल सर्विसेज]
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