एक दिन रास्ते में एक व्यक्ति यमराज की कथा सुना रहे थे। अब यमराज के साथ प्रत्येक जीव परोक्ष भाव से परिचित है और प्रत्यक्ष भाव से परिचित होना किसी ने नहीं चाहा है। यही नियम है। हम लोग किसी पर नाराज होने पर कहते हैं कि यम के घर जाओ। यम के घर जाने के लिए बोलते तो ठीक हैं, किंतु मन से नहीं चाहते कि वह यम के घर जाए। इस संदर्भ में सवाल उठता है कि यम क्या हैं? इसका आशय है, जो नियंत्रित करे। ईश्वर अपनी एक विशेष शक्ति के द्वारा पृथ्वी का सब कुछ नियंत्रित कर रहे हैं। जो कुछ होता है, उसका मूल स्नोत ईश्वर है। उसी स्नोत की ओर ऐसे कई विभाजन और ऐसे कई कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं, जो अंत तक उनकी स्थायी सत्ता को बरकरार रखते हैं। जैसे कुछ लोग किसी देश में शायद उन्नति के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं बना लेते हैं।

इतनी फसल होगी, उस फसल को ग्राम से शहर ले जाने के लिए सड़क की आवश्यकता होगी, इसलिए सड़क भी चाहिए। इसी तरह इस ब्रह्मांड के संचालन में ईश्वर भी अनेक प्रकार की चिंताओं में व्यस्त रहते हैं। ब्रह्मांड की जो गति है, उनका नियंत्रण करने वाला भी कोई होगा। इस नियंत्रण व्यवस्था को ही यम कहा जाता है।

सृष्टि में नियंत्रण की व्यवस्था नहीं रहने से अव्यवस्था फैल जाएगी। यह जो यम या कोई शक्ति क्रियाशील है, उससे, उसी एक तत्व से, एक सत्ता से सभी डरते हैं। इसलिए यह शृंखला है। नहीं तो सब कुछ विशृंखलित हो जाता। हवा भय ग्रस्त है, इसलिए सब समय बहती है, वह स्थिर नहीं रहती। वह एक सत्ता जो बैठी है-वह चाहती है कि हवा सब समय बहती रहे। जिसका जन्म हुआ है, वही यम से भयभीत है। जन्म होने का मतलब है कि मृत्यु भी होगी। इस प्रकार व्यक्ति यम के नियंत्रण में आ जाता है। यम के इस भय से बचने का उपाय है-ईश्वर की शरण में आना। ऐसा इसलिए, क्योंकि यम, ईश्वर से भयग्रस्त रहते हैं। आखिर भय क्या है? भय वास्तव में मन की कमजोरी है। इसलिए जो साधक हैं, वे किसी से भी भयभीत नहीं होते। यदि कभी भी उनके मन के कोने में भय महसूस होता है, तब वे ईश्वर का स्मरण करेंगे और कहेंगे, हे ईश्वर मैं तुझसे प्रेम करता हूं। इसलिए मैं किसी अन्य व्यक्ति से भयभीत नहीं हूं।

[ श्रीश्री आनंदमूर्ति ]