कल्पना एक शक्ति है और इसका उपयोग करना आना चाहिए। कल्पना शक्ति का उपयोग एक कला है। इस कला में पारंगत कल्पना शक्ति का अच्छे ढंग से प्रयोग करते हैं। कल्पना निरभ्र गगन में उन्मुक्त होकर रोचक-रोमांचक उड़ान भरती है। मन और देह की सीमाओं में आबद्ध नहीं होती। यह मन के सरोवर में तरंगों के समान उठती है और इन तरंगों की लपटें अनंत अंतरिक्ष में व्याप्त हो जाती हैं। कल्पना जीवन को बहुविध रंगों से उकेरती है। कल्पना एक शक्ति है, क्षमता है। जब यह ठहरती है तो जीवन नीरस हो जाता है और यह बहती है, तो जीवन में नई कोंपलें फूटती हैं। यह जिधर भी बहे, वहीं सुरम्य तरंगों और सरसता का आलोक बिखेर देती है। यह भौतिक क्षमता को पंख देने का कार्य करती है। सुखद कल्पना शीतल छांव के समान है और दुखद कल्पना अंगारों की जलन पैदा करती है। कल्पनाओं की बनावट और बुनावट अत्यंत मार्मिक है। साहित्य की ऐसी तमाम कृतियां हैं, जिनमें विचारों के साथ कल्पनाशीलता का सटीक सामंजस्य होता है और वे सभी सुखद अहसासों से ओत-प्रोत होती हैं। कल्पना जब परिष्कृत बुद्धि के साथ उड़ान भरती है तो जीवन के व्यापक अस्तित्व को स्पर्श करती है। इसी से साधनाओं के तमाम रहस्य अनावृत होते हैं।


कल्पना से कुछ भी संभव है। यह हमारी मौलिक प्रतिभा का विकास करती है। कल्पना में अपार ऊर्जा की खपत होती है। सृजनशील कल्पना से ऊर्जा के इस अनंत भडार को एक नई दिशा प्रदान की जा सकती है और जीवन के कई अनछुए पहलुओं को जाग्रत किया जा सकता है। फिर भी सामान्यत: इसका घोर दुरुपयोग किया जाता है। इच्छाओं और वासनाओं से आक्रांत मन सदैव कुकल्पनाओं का आदी हो जाता है। ध्यान से अनगढ़ कल्पनाओं को संवारा जाता है। कुकल्पनाओं से बचने के लिए हमें मनोनुकूल किसी विशिष्ट कार्य में कल्पना की ऊर्जा को उड़ेलना चाहिए। जैसे-जैसे कल्पना प्रगाढ़ होने लगेगी, इच्छित वस्तु मन में साकार होने लगेगी। यह प्रक्रिया अपनी प्रगाढ़ता में ध्यान के रूप में परिवर्तित होने लगेगी और इसमें मन आनंदित होने लगेगा। कुकल्पनाओं की खरपतवार अपने आप समाप्त हो जाएगी और कल्पना अपनी रोमांचक यात्रा पथ पर चल निकलेगी।


[ डॉ. सुरचना त्रिवेदी ]