अक्सर लोग दूसरे व्यक्ति की छोटी से छोटी गलती तलाशने में जरा भी देरी नहीं लगाते। वहीं वे अपनी बड़ी से बड़ी गलती को भी नजरअदांज करते हैं। जो सहजता से अपनी गलती मान लेता है, वह जीवन में सकारात्मक सोच और अध्यात्म की दिशा में जीवन के पथ पर आगे बढ़ता है। अपनी गलती सबके सामने स्वीकार करने का साहस विरले लोग ही दिखा पाते हैं। अधिकांश लोग यही चाहते हैं कि उनकी गलतियां छिपी रहें, दूसरों के सामने प्रकट न हों। यहां तक कि गलती सामने आने पर वह उससे मुकरने में भी देरी नहीं लगाते। ऐसा करके वे दूसरे लोगों को मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन उनका स्वयं का अंतर्मन इस बात को जानता है कि वे गलत हैं। खाली समय मिलने पर अंतर्मन में अक्सर गलती वाली बात हर इंसान को कचोटती है। कई इंसान जो संकोची प्रवृत्ति के साथ ही संवेदनशील भी होते हैं, उनके अंदर तो यह बात इस हद तक घर कर जाती है कि उनका मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

इंसान को गलतियों का पुतला माना गया है। इसलिए यह सार्वभौमिक सत्य है कि हर इंसान कहीं न कहीं और कभी न कभी गलती करता ही है। गलती करना इंसान का कार्य है तो उस गलती को स्वीकार करना भी इंसान का ही कार्य है। अपनी गलती और जिद पर अड़े रहने वाले व्यक्ति को समाज सम्मान नहीं देता है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जो व्यक्ति अपनी असफलताओं और गलतियों को मान लेते हैं, उनका जीवन पहले से अधिक सुंदर हो जाता है। उनमें आत्मविश्वास और सद्गुणों का विकास होता है। ऐसे व्यक्ति जो स्वयं की गलती स्वीकार नहीं करना चाहते, उनमें धीरे-धीरे नकारात्मक गुणों का विकास होने लगता है। गलती छिपाने के लिए इंसान को अक्सर असत्य बातों को बोलना पड़ता है। ये असत्य बातें ऐसे व्यक्तियों के जीवन का एक अंग बन जाती हैं। गलती स्वीकार करना एक साहसिक कार्य है। ऐसा व्यक्ति ईश्वर के अधिक निकट पहुंच जाता है। जो अपनी गलती स्वीकार करने का साहस नहीं रखते, उनके अंदर से प्रेम, दया और कर्तव्य का लोप हो जाता है। ऐसे लोग अपने और अपनी जरूरतों के प्रति उदासीन हो जाते हैं। उनके अंदर एक भावनात्मक खालीपन उत्पन्न हो जाता है। यह भावनात्मक खालीपन इसलिए होता है, क्योंकि वे अपनी गलती को सबसे छिपाकर रखते हैं।

[ रेनू सैनी ]