संसद

30 साल के लंबे अंतराल के बाद 16वीं लोकसभा में एक पार्टी को स्पष्ट जनादेश मिला है। संसद में सदस्यों के शपथ ग्रहण के साथ ही सरकार को सबसे पहली विधायी चुनौती के रूप में विरासत में 60 लंबित बिल मिले हैं। ये रज्च्यसभा में लंबे समय से लंबित पड़े हैं। इनको निपटाने के साथ नए बिलों को पास कराना नई सरकार के लिए चुनौती होगी।

संस्कृति

15वीं लोकसभा का प्रदर्शन पिछले पचास वर्षो में सबसे दयनीय रहा। इस लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित सरकार को लचर कार्य संस्कृति मिली है। इसके विपरीत उन्होंने कामकाज संभालते ही नीतिगत पंगुता को खत्म करने का फैसला लेते हुए पूरे सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली में बदलाव का स्पष्ट संदेश दिया है। इसके चलते नई कार्य संस्कृति विकसित होने की उम्मीद दिख रही है।

सवाल

अब सवाल उठता है कि सदस्यों के संस्कार और बदलती हुई कार्य संस्कृति के चलते क्या नई लोकसभा पूर्ववर्ती लोकसभाओं से बेहतर होगी? क्या सत्ता के गलियारों में बदल रही कार्यशैली का लोकसभा के कामकाज पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा? इन अहम प्रश्नों की पड़ताल ही आज सबसे बड़ा मुद्दा है?

एक आकलन के अनुसार 15वीं लोकसभा में औसतन केवल 30 सदस्यों ने बहस में हिस्सा लिया। 36 प्रतिशत पारित बिलों पर आधे घंटे से भी कम बहस हुई। इनमें से 20 बिल पांच मिनट से भी कम अवधि में पारित हुए।

विधायी प्रक्रिया

लोकसभा -- 13वीं -- 14वीं -- 15वीं

कुल पारित बिल -- 297 -- 248 -- 179

वोटिंग द्वारा पारित बिल -- 22 -- 8 -- 19

वोटिंग द्वारा लाए गए प्रस्ताव (मसलन स्थगन प्रस्ताव) -- 4 -- 4 -- 6

जनमत

क्या सदस्यों के संस्कार और कार्यसंस्कृति के बूते 16वीं लोकसभा पूर्ववर्ती लोकसभाओं से बेहतर साबित होगी?

हां 88 फीसद

नहीं 12 फीसद

क्या सत्ता के गलियारों में बदल रही कार्यशैली-कार्यसंस्कृति का लोकसभा के कामकाज पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा?

हां 90 फीसद

नहीं 10 फीसद

आपकी आवाज

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नवनिर्वाचित लोकसभा निश्चित ही बेहतर सिद्ध होगी और गुजरात की पुनरावृति पूरे देश में होगी। -मनीषा श्रीवास्तव

सत्ता के गलियारे में बदल रही कार्यशैली-कार्य संस्कृति का लोकसभा के कामकाज पर बिल्कुल सकारात्मक असर पड़ेगा। -शुभेंदु कुमार मिश्रा

बदलाव का समय है पर यह धीरे हो तो ही सकारात्मक साबित होगा वरना दिल्ली विधानसभा का उदाहरण सबके सामने है। -केके450307 @जीमेल.कॉम

जिस दिन सत्ता के गलियारे में घूमने वाले हमारे माननीय संसद की पवित्रता को आत्मसात कर लेंगे। रसातल में जा चुकी इसकी गरिमा पुन: लौट आएगी। -धर्मेदकुमारदूबे438@जीमेल.कॉम

परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। यद्यपि यह प्रश्न जुदा है कि बदलाव सकारात्मक दिशा में हुआ अथवा नहीं, इसके बावजूद लोगों को सरकार से उम्मीदें हैं। -अवनींद्र सिंह3@जीमेल.कॉम

संस्कार और कार्य संस्कृति ही इस लोकसभा की आधारशिला होगी, और जिसकाच्अच्छा परिणाम हमें भविष्य में जरूर मिलेगा। -शरद.नौगेन1@जीमेल.कॉम

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