महात्म्य

रूप यौवन संपन्न: विशाल कुल संभव:। विद्याहीन: न शोभते निर्गंधा इव किंशुका। यानी भले ही कोई आकर्षक व्यक्तित्व वाला हो, ऊंचे खानदान से ताल्लुक रखता हो, लेकिन अगर विद्या विहीन है तो वह उसी फूल की तरह है जो देखने में तो आकर्षक लगता है लेकिन उसमें सुगंध नहीं होती है। हमारे मनीषियों ने विद्या, ज्ञान और शिक्षा के ऐसे तमाम महात्म्य बताए हैं। शिक्षा का अर्थ सामान्यत: पढ़ाई करके महज डिग्री लेना नहीं है। सही मायने में शिक्षा वही है जो किसी के व्यक्तित्व का बहुआयामी संवद्र्धन करे।

मूल्य

विद्या ददाति विनयम्, विनयादि याति पात्रताम्। पात्रत्वाद धनमाप्नोति, धनाद धर्म: तत: सुखम्। अगर किसी बच्चे में शुरुआती शिक्षा-दीक्षा के दौरान ही उसके चारित्रिक गुणों का विकास, नैतिक मूल्यों की समझ, खुद के कर्तव्यों का बोध विकसित हो जाए तो सामाजिक बुराईयां-कुरीतियां और अपराध काफी हद तक कम हो जाएंगे। कोई भी गलती करने से पहले संस्कार उसे रोकेंगे। उसके नैतिक मूल्य उसे टोकेंगे। उसके कर्तव्य उसे झकझोरेंगे। अपवाद हर जगह हो सकते हैं लेकिन व्यापक रूप में इसके सकारात्मक और प्रभावी असर दिखाई देंगे।

मकसद

बालमन किसी पौधे की तरह होता है उसे जैसा स्वरूप दिया जाए, जो दिशा दिखाई जाए, उसी तरफ बढ़ चलता है। जरूरत है वैसे गुरुजन और वैसे अध्यापन विधा की। आज की जरूरत के मुताबिक अध्यापक और अध्यापन की कमी हमारे शिक्षा प्रणाली की बड़ी कमजोरी बनती जा रही है। शिक्षकों की कौशल वृद्धि करके उन्हें नवीन शिक्षण और प्रशिक्षण मुहैया कराकर हम इस कमजोरी को दूर कर सकते हैं। साथ ही कम से कम हायर सेकंडरी यानी 12वीं स्तर तक स्कूलों में छात्रों की अधिकतम उपस्थिति सुनिश्चित कराना भी हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए। ऐसे में सुशिक्षित समाज के सही मायने हासिल करने और इस लक्ष्य के अवरोधों की पहचान कर उन्हें दूर करने की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

जनमत

क्या वर्तमान स्कूली शिक्षा के बल पर देश में सुशिक्षित समाज की कल्पना की जा सकती है?

हां 26 फीसद

नहीं 74 फीसद

क्या नैतिक और संस्कारक्षम शिक्षा के बगैर देश में सुशिक्षित समाज का विकास संभव है?

हां 25 फीसद

नहीं 75 फीसद

आपकी आवाज

वर्तमान शिक्षा प्रणाली इंसान को अच्छी नौकरी या पद तो दिला सकती है लेकिन अच्छे संस्कार या नैतिकता नहीं। -राजेश चौहान

आज के समय में स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की बजाय पैसा कमाना उद्देश्य समझा जाता है। ट्यूशन और विभिन्न माध्यम के बहाने पैसा वसूला जाता है। इसके चलते भारत में सुशिक्षित समाज नहीं बन सकता। -मो. मोनिस इदरीसी

वर्तमान शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह नकार नहीं सकते लेकिन प्राथमिक पाठशाला के वर्तमान शिक्षकों के कार्य करने के रवैये पर सवालिया निशान लगा है। -रजत श्रीवास्तव

संस्कार के बिना शिक्षा का कोई अर्थ नहीं। संस्कार युक्त शिक्षा ही बेहतरीन राष्ट्र का निर्माण कर सकती है। -मुनीश दीक्षित

संस्कारक्षम शिक्षा के बगैर देश में सुशिक्षित समाज का विकास कभी संभव नहीं हो सकता है। समाज के विकास के लिए आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कारक्षम शिक्षा की भी जरूरत है। - शशांक शेखर मिश्रा

नैतिक और संस्कारक्षम शिक्षा के बिना देश में सुशिक्षित समाज का विकास संभव नहीं है। -सत्यनारायण शर्मा

नैतिकता और सरोकार आधारित समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से ही रोजगार तक सबकी समान पहुंच होगी जोकि भेदभाव रहित सुशिक्षित समाज निर्माण की नींव तैयार करेगा। -विनोद कुमार

शिक्षा परिवार, समाज और राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्ति करती है। इस नाते नैतिक संस्कार युक्त शिक्षा बेहद जरूरी है। -रामदास मिश्र

जब तक शिक्षा केवल व्यवसाय का उद्योग बना रहेगा तब तक इसकी कल्पना बेमानी होगी। -अश्विनी सिंह

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