आम आदमी पार्टी का अंतर्विरोध
आशा हाल ही में हम सभी भारतीय राजनीति में इतिहास बनने के गवाह बने। हमारी राजनीतिक व्यवस्था में आम आदमी पार्टी के रूप में एक ऐसे राजनीतिक दल का प्रादुर्भाव हुआ जिसने अपनी कथनी और करनी को एक जाहिर कर जनता का दिल जीत लिया। इस राजनीतिक दल के सदस्य आम जनता को अपने से दिखे। कोई बनावटीपन नहीं। जो सही है वही होना चाहिए। जन
आशा
हाल ही में हम सभी भारतीय राजनीति में इतिहास बनने के गवाह बने। हमारी राजनीतिक व्यवस्था में आम आदमी पार्टी के रूप में एक ऐसे राजनीतिक दल का प्रादुर्भाव हुआ जिसने अपनी कथनी और करनी को एक जाहिर कर जनता का दिल जीत लिया। इस राजनीतिक दल के सदस्य आम जनता को अपने से दिखे। कोई बनावटीपन नहीं। जो सही है वही होना चाहिए। जनता उनकी बातों और वादों पर रीझ गई और उन्हें सिर आंखों पर बैठाया। प्रतिद्वंद्वी दलों की तमाम तिकड़मबाजियों के बावजूद दिल्ली में इनकी सरकार भी बनी। अब लोकसभा चुनावों में इस राजनीतिक दल की सशक्त दावेदारी है।
निराशा
दिल्ली में चुनाव नतीजों के 36 दिन बाद ही आम आदमी पार्टी के भीतर ही छत्ताीस का आंकड़ा दिखने लगा है। इनके अपने अंतर्विरोध सामने आ रहे हैं। इन विरोधों के सामने आने का तरीका कुछ वैसा ही है जैसा भारतीय राजनीति में पिछले छह दशकों से देखा और सुना जा रहा है। इसका एक सदस्य दूसरे की ही बात काटता दिख रहा है तो वहीं आननफानन में लिए जा रहे निर्णय और फैसले फजीहत की वजह बन रहे हैं। आम आदमी निराश होकर यह सब देखने और सुनने को अभिशप्त है।
हताशा
जिस राजनीतिक दल को मतदाताओं ने दूसरे दलों से हटकर समझा था, उसके इस आचार, विचार और व्यवहार पर लोगों का निराश होना स्वाभाविक है। इससे न केवल पार्टी की साख कमजोर हो रही है बल्कि केजरी सरकार के प्रति लोगों की उम्मीदें-आशाएं धराशायी हो रही हैं। ऐसे में इस राजनीतिक दल के उत्थान के बाद इस दिशा और दशा तक पहुंचने के कारणों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
अरविंद केजरीवाल तानाशाह बन गए हैं। पार्टी के सभी फैसले बंद कमरे में सिर्फ मुख्यमंत्री, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और कुमार विश्वास द्वारा लिए जाते हैं। केजरीवाल के निर्णय को मानना अनिवार्य होता है। न मानने वालों को मनाया जाता है फिर भी न मानें तो वह आंखें तरेरने लगते हैं। -विनोद कुमार बिन्नी
जनमत
क्या बढ़ते अंतर्विरोधों के चलते आम आदमी पार्टी की साख कमजोर हो रही है?
हां 75 फीसद
नहीं 25 फीसद
क्या दिल्ली की केजरी सरकार के प्रति उम्मीदें-अपेक्षाएं, निराशा में बदल रही हैं?
हां 65 फीसद
नहीं 35 फीसद
आपकी आवाज
आप की सरकार अभी तो ठीक चल रही है। अभी यह कहना ठीक नहीं होगा कि वादे के मुताबिक वह अपना वादा पूरा करती है या नहीं। -आनंद कुमार
आम आदमी की साख तो तभी कमजोर हो गई थी, जब आप ने कांग्रेस से समर्थन लिया था। -बिल्टू माजी
आप की साख पहले ही कमजोर थी, बिन्नी ने इसे और भी कमजोर कर दिया। -सुमन भट्टाचार्य1920 जीमेल.कॉम
देश का इतिहास तमाम नाकामयाब केजरीवाल जैसे नेताओं से भरा है। ऐसे में देखना शेष है कि अरविंद की आदर्श राजनीति कितने दिनों तक मूलधारा से अलग रह पाती है। -धर्मेद्रकुमार दूबे 438 जीमेल.कॉम
आप अपने मूल सिद्धांत से भटक रही है, इसका मूल सिद्धांत कांग्रेस से गठजोड़ कर 2014 के आम चुनाव में भाजपा को सत्ता से दूर रखना है। -डीवर्मा 543 जीमेल.कॉम
सालों से बीजेपी और कांग्रेस इस देश का नुकसान कर रही है, इसलिए इस तरह के राजनीतिक पेंच से आप की साख को कोई नुकसान नहीं होगा। -चंदनशुभम 101 जीमेल.कॉम
आम आदमी पार्टी पर अब किसी को भरोसा नहीं करना चाहिए। -रविदिवाकर.आरके जीमेल.कॉम
अभी अरविंद केजरीवाल के समग्र मूल्यांकन का वक्त नहीं आया है। समय का इंतजार कीजिए, खुद सारी हकीकत सामने आ जाएगी। -अवेंद्र सिंह 3 जीमेल.कॉम
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