Move to Jagran APP

मुद्दा: घर में शेर, बाहर क्यों ढेर?

By Edited By: Published: Sun, 08 Jan 2012 12:00 AM (IST)Updated: Sun, 08 Jan 2012 12:05 AM (IST)
मुद्दा: घर में शेर, बाहर क्यों ढेर?

तमाम उपलब्धियों और गौरवगाथाओं के बावजूद यह एक मुद्दा भारतीय क्रिकेट पर भारी पड़ जाता है। आखिर क्यों उसका सारा शौर्य विदेशी सरजमीं पर शर्मसार हो जाता है? क्या उसकी और उसके महान खिलाड़ियों की दुनिया को वशीभूत करने वाली छवि महज छलावा है? शेर होने का छलावा। लेकिन बस घर में। जब तक यह नहीं मिटेगा, तब तक क्रिकेट जगत का सिरमौर बनने का हक उसे नहीं मिल सकेगा।

loksabha election banner

..घर में शेर, बाहर ढेर। यह जुमला हमारे धुरंधर क्रिकेटरों के गौरवशाली इतिहास पर एक धब्बे के समान कायम है। क्रिकेट की दुनिया में हमारे दिग्गज बल्लेबाजों का नाम बाअदब लिया जाता रहा है। लेकिन गावस्कर से लेकर तेंदुलकर तक और सहवाग से लेकर कोहली तक, एक ही कहानी चलती आ रही है। माना कि एक-दो बेहतर व्यक्तिगत प्रदर्शन होते रहे हैं, लेकिन यह जीत के कारक नहीं बनते।

टीम प्रदर्शन मायने रखता है, जो विदेश जाकर बिखर जाता है। गत 64 साल से हमारी टीम कभी ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज नहीं जीत सकी। इस बार भी खाली हाथ लौटने को बाध्य है। इससे पहले इंग्लैंड में हम शर्मसार हुए। भारतीय क्रिकेट की यह कड़वी सच्चाई एक

अनसुलझा मुद्दा है। आखिर क्यों है ऐसा? हर पहलू पर प्रकाश डालती अतुल भानु पटैरिया की यह रिपोर्ट:-

पट्टी बदली, बदला मंजर

न अनुभव, ना ही आंकड़े, क्रिकेट में और कुछ भी मायने नहीं रखता, सिवाय इसके कि 22 गज की पट्टी पर बल्ला गेंद का सामना कैसे करता है। भारतीय क्रिकेट के लिहाज से देखें तो पूरी कवायद में सबसे अहम यदि कोई चीज है तो वह है 22 गज की पट्टी। नामी-गिरामी धुरंधर। दुनिया का सबसे शक्तिशाली बल्लेबाजी क्रम। लेकिन बेनाम से गेंदबाजों के आगे ढेर। बार बार। ठीक है, क्रिकेट तो है ही अनिश्चितताओं का खेल। लेकिन भारत के इन महानायकों का घर के बाहर ढेर हो जाना निश्चित सा क्यों है? क्रिकेट में भविष्यवाणी की कोई गुंजाइश नहीं। लेकिन हमारी टीम के विदेश दौरे पर निकलने से पहले ही दुनियाभर के विशेषज्ञ कर डालते हैं। ढेर हो जाएगी। हो जाती है। जैसे इंग्लैंड में। और अब ऑस्ट्रेलिया में। करने वाले कैसे कर देते हैं इतनी सटीक भविष्यवाणी? इसके पीछे कुछ और नहीं बस 22 गज की पट्टी है। भारत [उपमहाद्वीप] और भारत के बाहर यही एक बड़ा अंतर पैदा करती है। भारतीय पिचों पर खेलने के आदी हैं हमारे क्रिकेटर। यहां पिचें सपाट होती हैं। इनमें टर्न तो होता है, तेजी और उछाल नहीं। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और कैरेबिया में पिच पर जबरदस्त तेजी और भरपूर उछाल होता है। शॉर्ट गेंदों को न खेल पाना भारतीय बल्लेबाजों की कमजोरी रही है, क्योंकि भारतीय पिचों का मिजाज शॉर्ट गेंदों का नहीं बल्कि टर्न करती गेंदों का मुफीद है। शॉर्ट नहीं बल्कि गुड और फुल लेंथ गेंदों का मुफीद। यही वजह है कि भारतीय बल्लेबाज फ्रंट फुट पर शॉट्स खेलने के अभ्यस्त हो जाते हैं। वहीं विदेशी पिचों पर, जहां तेजी और उछाल पाकर शॉर्ट गेंदें कहर बरपाती हैं, भारतीय बल्लेबाजों का फुट वर्क थम जाता है। बैक फुट पर शॉट्स खेलने की उन्हें आदत ही नहीं है। यहीं वे मात खा जाते हैं।

मानसिक मजबूती नहीं

हम में से जिसने भी 'लगान' देखी है, वो आसानी से समझ सकेगा देसी-विदेशी के द्वंद्व को। फिल्म का ताना-बाना भले ही फिल्मी था, लेकिन समझाने में सफल रही कि क्रिकेट हमारा नहीं, अंग्रेजों का, जेंटलमैन का खेल था। कब-कैसे और क्यों था, यह भी। हमने तो उनसे ही देख कर सीखा। फिर एक समय आया कि उनके ही खिलाफ खेलने लगे। उन्हें अपने घर में हराना, अपने ही लोगों के सामने, हमारे लिए शगल बना रहा। इसमें ज्यादा मजा था। नुमाइश भी भरपूर। उन्हें उनके घर में हराना, प्रतिष्ठा का प्रश्न और हद पार करने का माद्दा। लिहाजा एक तरह का मानसिक दबाव अपने आप जुड़ता गया। विदेश दौरों में भारतीय खिलाड़ियों को अरसे तक 'दब्बू' और 'कमजोर' माना-कहा जाता रहा। ऐसे तमाम वाकये इतिहास में दफन हैं। कुछ ने यह छवि तोड़ी। उन्हें 'हीरो', 'एंग्री यंग मेन', 'भारत का आत्मविश्वास'.. जैसी उपमाएं मिलीं। यही वजह है कि मंसूर अली ख्रान पटौदी, सुनील गावस्कर, सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धौनी जैसे दबंग भारतीय कप्तानों को ट्रेंड-सेटर कहा जाता है। मानसिक दृढ़ता एक अहम तथ्य है। विदेश में इसके बूते जीत दर्ज की जाती है। मौजूदा भारतीय टीम में सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण, सहवाग, धौनी और जहीर जैसे बेहद अनुभवी खिलाड़ी शामिल हैं। क्या इनमें वह आत्मविश्वास और मानसिक दृढ़ता नहीं है? विराट कोहली जैसे युवा भी हैं, जो ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों को उन्हीं की स्टाइल में भद्दा जवाब देकर अपनी मैच फीस कटवा लेते हैं। मानसिक दृढ़ता नहीं, यह तो कमजोरी है, जो आपा खोने और झल्लाने का कारक बन जाती है।

प्रारूप का उलझाव

पिछले एक दौर में भारतीय क्रिकेट ने जिस तेजी से वनडे और टी-20 प्रारूप के क्रिकेट में खुद को ढाला, बुलंदियां हासिल कीं, वह वाकई उत्साहित कर देने वाला रहा। हमें फटाफट क्रिकेट का मौलिक चैंपियन कहा जाने लगा। आइपीएल हमारी ही पिचों पर और हर साल होता है। इसमें ढेर सारे मैच खेले जाते हैं। हर साल टेस्ट की अपेक्षा वनडे मुकाबलों की संख्या भी कहीं अधिक ही रहती है। भारतीय टीम फटाफट में तो माहिर हो गई, विश्व चैंपियन भी है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उसका हाथ तंग होता गया है। आप कहेंगे कि टेस्ट में नंबर एक कैसे बन गई? पन्ने पलटेंगे तो पता चल जाएगा कि घरेलू टेस्ट सीरीज में नंबर बढ़ा बढ़ा कर। भारतीय खिलाड़ी जब अपनी पिचों पर टेस्ट खेलते हैं तो फटाफट स्टाइल में ही सामने वाली टीम पर भारी पड़ जाते हैं। लेकिन विदेश में तेज पिचों पर फटाफट स्टाइल उन्हें ले डूबती है। उनके हाथ में कुछ नहीं है क्योंकि फटाफट स्टाइल अब उनकी फितरत ही बन गई है। यह भी एक कारण है कि टेस्ट की बजाय वनडे में भारतीय टीम का विदेश में प्रदर्शन बेहतर रहा है।

कोचिंग प्रणाली में खामी

भारतीय क्रिकेट की मुख्य प्रशिक्षण संस्था कोई और नहीं बल्कि मोहल्ले की गलियां और बिना आइडियल पिच वाले छोटे-मोटे मैदान रहे हैं। वही सपाट पिचें और वही फ्रंट फुट का फंडा। राष्ट्रीय टीम में पहुंचने पर किसी युवा खिलाड़ी का सामना इसी रंग में रंगे सीनियर खिलाड़ियों और विदेशी कोच से होता है, जो थोड़ी सी और बातें सिखाते चलते हैं। गैरपरंपरागत सच्चाई का सामना उसे अपने पहले विदेशी दौरे पर तेज और उछालभरी पिचों पर ही होता है। उलझन शुरू हो जाती है। पहले सीखे या पहले बेरहम सच्चाई का सामना करे। दोनों साथ में करना पड़ता है। खामियाजा पूरी टीम भुगतती है। सीनियर सच्चाई पहले से ही जानते हैं, लेकिन सीखने की प्रक्रिया में फंसे रहते हैं। लिहाजा, कोचिंग प्रणाली को ऐसा बनाना होगा, जो इस तरह के हर पहलू का, कमजोरी का समाधान कर सके। कृत्रिम पिचें विकसित करनी होंगी।

ओवरऑल प्रदर्शन की कमी

भारत के पास पटौदी, बेदी, विश्वनाथ, गावस्कर, श्रीकांत, अमरनाथ, कपिल, वेंगसरकर से लेकर गांगुली, तेंदुलकर, द्रविड़, लक्ष्मण और सहवाग जैसे स्तरीय खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन टीम विदेश में ओवरऑल प्रदर्शन कर कभी भी उतनी सफलता हासिल नहीं कर सकी। ताजा उदाहरण हमारे सामने है।

44 साल में यह पहला अवसर है, जबकि विदेशी सरजमीं पर लगातार छह टेस्ट हारे

चौंकाने वाला तथ्य : 'द डेली टेलीग्राफ' ने लिखा, 'गर्त के भी गर्त में ऑस्ट्रेलियाई टीम।' सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने लिखा था, 'एक समय विश्व क्रिकेट का बादशाह रहा ऑस्ट्रेलिया अब आठवीं रैंकिंग के न्यूजीलैंड को भी हराने के काबिल भी नहीं रहा।' भारत का पलड़ा इस बार भारी माना जा रहा था। कहा जा रहा था कि उसके पास इस बार ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में हराने का स्वर्णिम मौका है। लेकिन तमाम उलझनों में उलझे भारतीय खिलाड़ियों ने अपने पैर पर कुल्हाड़ा दे मारा।

0-4 इससे पहले इंग्लैंड में हुआ था सफाया

9वीं धौनी की कप्तानी में विदेश में हार

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.