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नया आर्थिक अध्याय

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के पहले पूर्ण आम बजट के जरिये देश की अर्थव्यवस्था में नए अध्याय

By Edited By: Published: Sun, 01 Mar 2015 05:39 AM (IST)Updated: Sun, 01 Mar 2015 05:34 AM (IST)
नया आर्थिक अध्याय

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के पहले पूर्ण आम बजट के जरिये देश की अर्थव्यवस्था में नए अध्याय की शुरुआत की है। इस अध्याय की पटकथा तभी लिख दी गई थी जब इसी सप्ताह वित्ता आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों के लिए धन के आवंटन में दस प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की गई थी। इसके बाद बजट से एक दिन पहले आर्थिक समीक्षा ने भी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सरकार के चिंतन-मनन की झलक दे दी थी। आम बजट इस सर्वेक्षण के ही विस्तारित रूप में सामने आया है। वित्तामंत्री ने अर्थव्यवस्था की बुनियादी समस्याओं के समाधान की कोशिश की है। उनके बजट में जिस तरह स्वास्थ्य-शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, युवाओं के लिए रोजगार और कृषि के परिदृश्य में सुधार के साथ-साथ सब्सिडी के दुरुपयोग को रोकने पर जोर दिया गया उससे यह साफ हो जाता है कि मोदी सरकार अगले पांच साल में देश की अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करना चाहती है। वित्तामंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार काले धन पर अंकुश लगाने के लिए प्रतिबद्ध है और जो लोग इस काले कारोबार में लिप्त हैं उनसे सख्ती से निपटा जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने वित्ताीय सुधारों की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ने के संकेत दिए, जो आवश्यक थे। मोदी सरकार ने देश के विशाल मध्य वर्ग का भी पूरा ख्याल रखा है। आयकर के ढांचे में भले ही कोई बदलाव न किया गया हो, लेकिन चिकित्सा और शिक्षा पर होने वाले खर्च पर छूट देकर मध्य वर्ग को जरूरी राहत दी गई है। मनरेगा के लिए धन के आवंटन को बढ़ाकर केंद्र सरकार ने कांग्रेस को एक राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए इस योजना को लेकर कांग्रेस पर तीखा कटाक्ष किया था।

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पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों के लिए आर्थिक सहायता का मार्ग प्रशस्त कर मोदी सरकार ने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि उसके लिए राजनीतिक मतभेद कोई मायने नहीं रखते। इन दोनों राज्यों को तेलंगाना की तरह सहायता मिलेगी। संपत्तिकर जैसे पुराने और बेतुके कर को समाप्त करने का फैसला कर मोदी सरकार ने यह बताया कि उसे वित्ताीय ढांचे में सुधार के लिए कड़े कदमों से परहेज नहीं है। नि:संदेह इसके बजाय एक करोड़ से अधिक आमदनी वाले लोगों पर दो प्रतिशत के अतिरिक्त कर का फैसला कहीं अधिक तर्कसंगत है। आम बजट में कृषि और किसानों के हित में भी कई उल्लेखनीय घोषणाएं की गई हैं। किसानों को उनकी उत्पादकता का पूरा मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने कृषि ऋण लक्ष्य को पचास हजार करोड़ से बढ़ाकर सीधे साढे़ आठ लाख करोड़ रुपये करने की घोषणा की। इसके साथ ही सिंचाई और जमीन की सेहत सुधारने के लिए भारी-भरकम केंद्रीय सहायता देने का भी ऐलान किया गया। ये दोनों पहलू कृषि उत्पादन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण रहे हैं। दुर्भाग्य से इन क्षेत्रों की कभी सही तरह सुधि नहीं ली गई, लेकिन मोदी सरकार ने कृषि विकास योजना तथा प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना के जरिये इन दोनों क्षेत्रों की दशा सुधारने का बड़ा काम अपने हाथ में लिया है। कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए यह विशेष उल्लेखनीय है कि कोल्ड स्टोरेज, गोदाम बनाने के साथ मंडियों तक जाने वाली सड़कें बनाने की भी बात कही गई है। बजट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार कालेधन संबंधी अपनी वचनबद्धता के प्रति कायम है।

इस पर हैरत नहीं कि विपक्ष को बजट रास नहीं आया, लेकिन यह दुष्प्रचार के अलावा और कुछ नहीं कि मोदी सरकार गरीब विरोधी और अमीर समर्थक है। विपक्षी नेता यह भूल रहे हैं कि गरीबी तब दूर होगी जब रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। रोजगार के अवसर नए-नए उद्योग लगने से ही संभव है। इसके लिए आधारभूत ढांचे का विकास और निवेश के लिए उपयुक्त माहौल जरूरी है। वित्तामंत्री ने यह उल्लेख भी किया कि पिछले एक दशक में सबसे अधिक गिरावट आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में ही हुई है। इस क्षेत्र में सरकारी खर्च भी बढ़ाने की आवश्यकता है और निजी क्षेत्र की भागीदारी भी। आधारभूत ढांचे के विकास को पांच सबसे बड़ी आर्थिक चुनौतियों में शामिल किया जाना और इस चुनौती को पूरा करने के लिए नेशनल इनवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड बनाने की घोषणा सही दिशा में उठाया गया कदम है। बुनियादी ढांचे की बदहाली को दूर करने के लिए ही इस क्षेत्र में निवेश 70 हजार करोड़ बढ़ाने का फैसला किया गया है। बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजनाओं में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सहभागिता यानी पीपीपी मॉडल एक अच्छा विचार है, लेकिन अनेक कारणों से यह सही तरह आगे नहीं बढ़ पाया। इस विचार को नए सिरे से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। बजट में वित्तामंत्री ने इसका इरादा व्यक्त किया है, लेकिन यह काम बिना किसी देरी के होना चाहिए।

इसमें दो राय नहीं कि जेटली ने अपेक्षा के अनुरूप एक ऐसा बजट प्रस्तुत किया है जिसमें छोटी से छोटी आवश्यकता पर भी ध्यान देने और दूरगामी लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश की गई है। यह बजट के पारंपरिक तौर-तरीकों से एकदम अलग है। आम तौर पर बजट को लोकलुभावन घोषणाओं का मंच मान लिया जाता है। बजट के जरिये हर वर्ग को खुश करने की कोशिश की जाती है और इसका परिणाम यह होता है कि आर्थिक दिशा में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं होता। यह अच्छी बात है कि वित्तामंत्री ने एक नई लकीर खींचने की कोशिश की है। उन्होंने स्वच्छता अभियान को लोगों की सेहत से जोड़ा है। बजट की एक बड़ी बात कारपोरेट टैक्स को अगले चार वषरें में 30 से घटाकर 25 प्रतिशत किया जाना है। फिर यह दर दूसरे एशियाई देशों के बराबर होगी, जिससे निवेश का माहौल सुधरेगा। यह स्वागतयोग्य है कि आखिर अगले वित्ताीय वर्ष से जीएसटी अमल में आ जाएगा। इसका लाभ समूची अर्थव्यवस्था को मिलेगा। कारोबार माहौल बेहतर करने के लिए एक नया कानून बनाने की घोषणा बताती है कि सरकार मेक इन इंडिया अभियान के प्रति सचमुच गंभीर है। यह कानून लालफीताशाही से निजात दिलाने में सहायक बनेगा।

नि:संदेह राज्यों को अधिक धन देने के बाद केंद्र के हिस्से में कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद वित्तामंत्री ने आर्थिक विकास की एक व्यापक रूपरेखा प्रस्तुत की है। यह उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार राज्यों से यह अपेक्षा कर रही है कि वे विकास और जनकल्याण की अपनी जिम्मेदारी स्वयं निभाएं। चूंकि प्रधानमंत्री खुद अच्छे-खासे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं इसलिए वह भली भांति जानते हैं कि विकास के लिए राच्यों को किस तरह केंद्रीय सहायता की जरूरत होती है। संभवत: यही कारण है कि उन्होंने वित्ता आयोग की सिफारिश के बाद राच्यों के लिए धन के आवंटन को बढ़ाया। अब यह राच्यों के ऊपर है कि वे अपेक्षाओं पर खरे उतरें। उन्हें सामाजिक योजनाओं पर समझदारी के साथ खर्च करना होगा और लोक-लुभावन तौर-तरीकों से बचना होगा। केंद्र ने अपना काम कर दिया और अब यह राच्यों की जिम्मेदारी है कि वे इन सामाजिक योजनाओं का लाभ आम जनता तक सही तरह पहुंचाएं। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि च्यादातर राच्य वित्ताीय मामलों में जरूरी सतर्कता का परिचय नहीं देते। अब जब उन्हें पर्याप्त धन मिलने जा रहा है तो उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे उसका खर्च जिम्मेदारी के साथ करें और साथ ही विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने पर विशेष ध्यान दें।

[लेखक संजय गुप्त, दैनिक जागरण के संपादक हैं]


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