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    आतंकी हमले और मुसलमान

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    Updated: Fri, 16 Jan 2015 05:13 AM (IST)

    पिछले सप्ताह इस्लामी चरमपंथियों द्वारा 17 लोगों की हत्या कर दिए जाने के बाद फ्रांस की सड़कों पर बड़े स

    पिछले सप्ताह इस्लामी चरमपंथियों द्वारा 17 लोगों की हत्या कर दिए जाने के बाद फ्रांस की सड़कों पर बड़े स्तर पर प्रदर्शन हो रहे हैं। बताया जाता है कि 15 लाख लोगों ने प्रदर्शन में भाग लिया था। पश्चिमी यूरोप में 15 लाख लोगों का सड़क पर उतर आना बहुत बड़ी बात है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि जनता में इस्लामी चरमपंथियों की भ‌र्त्सना और निंदा का भाव ही नहीं, बल्कि यूरोपीय सरकारों की आप्रवासन नीति पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। यह विदित है समय-समय पर यूरोप ने तीसरी दुनिया के संकटग्रस्त लोगों को अपने देशों में बस जाने की अनुमति दी थी। इसके अंतर्गत आज फ्रांस में प्राय: अफ्रीका और अरब देशों से आए मुसलमानों की संख्या सात प्रतिशत है। इस्लामी आतंकवादियों की गतिविधियों का प्रभाव बड़े स्तर पर पूरे यूरोप और मुख्य रूप से फ्रांस पर क्या पड़ेगा यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। आतंकवादियों ने यह दावा किया था वे पैगंबर हजरत मुहम्मद के अपमान का बदला ले रहे हैं। उनके इस बयान ने एक पुराने विवाद को पुन: जीवित कर दिया है। पाकिस्तान में इस्लामीकरण के दौरान तौहीने रिसालत कानून बनाया गया था जिसके दोषी की सजा मृत्युदंड तय किया गया था। पाकिस्तान में इस कानून के अंतर्गत या इसके प्रभाव में दसियों लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं या फांसी दी जा चुकी है। इस कानून को लेकर इतनी उग्रता है कि पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की इसलिए हत्या कर दी गई थी कि वह इस आरोप में बंदी एक ईसाई औरत से मिलने चले गए थे।

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    तौहीने रिसालत कानून के बारे में इस्लाम धर्म के विद्वान पूरे विश्वास के साथ यह कहते हैं कि यह कुरान शरीफ पर आधारित नहीं है और न ही कुरान में इस आरोप की कोई सजा बताई गई है। इस तरह यह कानून मनुष्यों द्वारा बनाया गया है। यह 'शरा' पर आधारित है जो हजरत मुहम्मद साहब के बाद हुए खलीफाओं ने मुख्य रूप से इस्लामी शासन, समाज तथा परिवार व्यवस्था की नियमावली और कानून के रूप में बनाई थी। इस्लाम के नाम पर की जा रर्ही ंहसा से इस्लाम धर्म और मुसलमान की जो छवि बनती है वह कालांतर में व्यापक स्तर पर समाज विरोधी हो सकती है। इस्लाम धर्म का आधार कुराने पाक है जिसमें क्षमा, दया, उदारता, सेवा, संतोष जैसे मूल्यों पर बहुत बल दिया गया है। कुरान शरीफ का आदेश है- 'सब्र करना और अपराध या क्षमा करना बड़े साहस के काम हैं।' और 'गुस्सा पी जाया करो और लोगों को क्षमा कर दिया करो।' 'बुराई को भलाई से दूर करो इससे बड़ी-बड़ी शत्रुता खत्म हो सकती है।' दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुरान की इस शिक्षा को इस्लाम के नाम पर इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है कि अर्थ ही अनर्थ हो गया है।

    पैगंबर हजरत मुहम्मद के जीवन में उनके विरोधियों ने कई प्रकार से उनका अपमान किया था जिसके उत्तार में वे प्रेम, उदारता और क्षमा से काम लेते थे। यदि उनके जीवन और आदशरें का कोई सम्मान नहीं करता तो वह अपने को कैसे मुसलमान कह सकता है? यही नहीं इससे बड़ी बात यह है कि वह संसार के सामने मुसलमानों की क्या तस्वीर पेश कर रहा है? सारे संसार में आतंक और्र ंहसा फैलाने वाले इन तथाकथित इस्लाम के सेवकों ने मुस्लिम विरोधी वातावरण बना दिया है। आज अधिकतर लोग यह मानने लगे हैं जो गलत है कि मुसलमान असहिष्णु और्र ंहसक होते हैं। यह स्पष्ट है कि हर देश ही नहीं हर समुदाय को एक-दूसरे की मदद और सहयोग की दरकार होती है। ऐसे वातावरण में एक समुदाय की खराब छवि बना देना उसका सबसे बड़ा अहित है। इतिहास से यह सीखने की आवश्यकता है कि हिंसा और आक्रामकता से कोई समस्या हल नहीं होती। एक बहुत महत्वपूर्ण और जटिल प्रश्न यह है कि मुस्लिम समुदाय के कुछ तत्व कट्टरपंथी और जड़ क्यों हो गए? यदि हम इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि एक समय था जब मुस्लिम समुदाय प्रखर बौद्धिक समाज था। इस्लाम के स्वर्णिम काल का एक प्रसिद्ध वाक्य था- विद्वान की रौशनाई शहीद के खून से अधिक पवित्र है। बौद्धिकता पर अत्यधिक बल दिए जाने के कारण ज्ञान, विज्ञान, कला और साहित्य के क्षेत्रों में ऐसी महान उपलब्धियां हुई थीं जिन्होंने यूरोप के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। 18वीं और 19वीं शताब्दी में स्थिति बदल चुकी थी। पतन और विघटन के कारण मुस्लिम समाज बहुत अशक्त हो गया था। इसी दौरान यूरोप और अमेरिका के बड़े देशों ने अपने स्वार्थ के लिए मुस्लिम देशों की प्रतिगामी शक्तियों को पूरा समर्थन दिया। यह सिलसिला सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान पर जमाए अधिकार का विरोध करने के लिए अमेरिकी और तालिबानी गठबंधन तक निर्बाध चलता रहा। यह एक ऐसी घटना थी जिसने वही काम किया था जो ईरान की इस्लामी क्रांति ने किया था। पहली बार कट्टर धार्मिक समूहों को लगा था कि शासन की बागडोर संभाल सकते हैं।

    यह कितनी बड़ी विडंबना है कि इस्लाम के तथाकथित रक्षकों को इस्लामी दुनिया की बदहाली नजर नहीं आती जहां मुसलमान ही एक-दूसरे के दुश्मन बन गए हैं। इन्हें पाकिस्तान नहीं दिखाई पड़ता जहां मस्जिदों में बम विस्फोट होते हैं और जहां हर मुस्लिम समुदाय दूसरे समुदाय का पक्का शत्रु है। इन जिहादियों को अफगानिस्तान का गृहयुद्ध और उसके कारण मुसलमानों की बदहाली नजर नहीं आती। इस्लाम की सबसे बड़ी सेवा मुस्लिम संसार र्से ंहसा और गृहयुद्धों को समाप्त करना है। पूरा मध्य एशिया इस आग में जल रहा है। इन स्थानों पर इस्लाम के रक्षकों को जाना चाहिए। सेवा करनी चाहिए। आज मुसलमानों और इस्लाम की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि अपने आपको मुसलमान कहने वाले इन उग्रपंथियों और आतंकवादियों से इस्लाम की रक्षा की जाए। सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने और मुसलमानों के मसीहा बनने की कोशिश में लगे कुछ धमरंध नेताओं के स्वार्थ की वेदी पर भोली-भाली जनता को नहीं बढ़ाया जा सकता। भारत में ऐसे मुस्लिम नेताओं की कमी नहीं है जो अपने स्वार्थ के लिए पूरे देश र्को ंहसा की आग में झोंक देने पर तैयार हैं। ऐसे तत्वों की पहचान करके उन्हें बेनकाब करने की जरूरत है।

    [लेखक असगर वजाहत, वरिष्ठ साहित्यकार हैं]