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    स्वामी के विवादित बोल: परीक्षा में फेल हो गए थे नेहरू, 'जेंटलमैन' ने पास कराया

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Tue, 17 Jan 2017 07:52 AM (IST)

    डा. स्वामी ने कहा, इसीलिए जेएनयू का नाम कम पढ़े लिखे नेहरू के नाम से बदलकर पढ़े-लिखे सुभाषचंद्र बोस के नाम पर होना चाहिए। जेएनयू में वैचारिक कीटनाशक का छिड़काव कर उसे साफ करना चाहिए।

    स्वामी के विवादित बोल: परीक्षा में फेल हो गए थे नेहरू, 'जेंटलमैन' ने पास कराया

    नई दिल्ली [जेएनएन]। राज्यसभा सांसद डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू वैचारिक रूप से एक कम्युनिस्ट थे, जो सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंटों से घिरे रहते थे। यहां तक कि लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी और नेहरू की महिला मित्र एडविना माउंटबेटन भी केजीबी की एजेंट थी।

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    महात्मा गांधी की हत्या और सरदार पटेल की आकस्मिक मृत्यु के बाद कोई ऐसा नहीं बचा था, जो नेहरू से सवाल-जवाब कर सके। एक एडविना ही उनसे सवाल पूछ सकती थी और वह भी केजीबी की एजेंट थी, इसीलिए नेहरू ने भारत में कम्युनिज्म को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।

    डा. स्वामी रविवार को प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन 'कहानी कम्युनिस्टों की' पुस्तक लोकार्पण अवसर पर बोल रहे थे। लेखक-पत्रकार संदीप देव की पुस्तक 'कहानी कम्युनिस्टों की' का लोकार्पण डा. स्वामी सहित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के निदेशक रामबहादुर राय और वरिष्ठ पत्रकार अंशुमाान तिवारी ने किया।

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    डा. स्वामी ने कहा, यह समझ नहीं आता कि एक कम पढ़े-लिखे व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू के नाम पर जेएनयू का नाम क्यों रखा गया। जवाहरलाल नेहरू ब्रिटेन में परीक्षा में फेल हो गए थे, लेकिन औपनिवेशिक भारत के राजे-राजवाड़े और संभ्रांत तबके के बच्चों को उत्तीर्ण करने के लिए वहां एक 'जेंटलमैन पास' श्रेणी का निर्माण किया गया था और नेहरू को इसी के तहत पास घोषित किया गया था।

    डा. स्वामी ने कहा, इसीलिए जेएनयू का नाम कम पढ़े लिखे नेहरू के नाम से बदलकर पढ़े-लिखे सुभाषचंद्र बोस के नाम पर होना चाहिए। जेएनयू में वैचारिक कीटनाशक का छिड़काव कर उसे साफ करना चाहिए। यह पुस्तक इसका कार्य करेगी।

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    इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय काल केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि कम्युनिस्ट गद्दार होते हैं, यह 1962 की लड़ाई में मैंने अपनी आंखों से देखा है। कम्युनिस्ट उस समय कहते थे कि चीन ने भारत पर हमला नहीं किया है, बल्कि भारत ने उसे उकसाया है।

    आज भी कम ही कम्युनिस्ट इसे मानते हैं कि चीन ने भारत पर हमला किया था। यह पुस्तक 'कहानी कम्युनिस्टों की' कम्युनिस्टों का पहला व्यवस्थित इतिहास है, जिसे पढ़कर न केवल कम्युनिस्टों के बारे में, बल्कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में भी देश में एक नई सोच बनेगी, ऐसा मेरा मानना है।

    वरिष्ठ पत्रकार अंशुमन तिवारी ने कहा कि साम्यवादी-समाजवादी अर्थव्यवस्था ने हमेशा अधिनायकवाद और क्रोनी कैप्टलिज्म को बढ़ावा दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था वैदिक काल से मुक्त अर्थव्यवस्था थी, लेकिन देश की पहली सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को कम्युनिज्म पैटर्न पर डालकर इसे बंद कर दिया। समाजवाद और साम्यवाद के नाम पर हमेशा देश को अधिनायकवादी रास्ते पर ढकेलने का प्रयास होता रहा है। पुस्तक का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन, हॉल नं-8 के साहित्य मंच पर किया गया।