दिल्ली के शोध के छात्र प्रशांत ने बनाई सबसे सस्ती सेप्सिस जांच किट
रैपिड इंडोटॉक्सिन इनट्रैपमेट एंड डिटेक्शन ऑन सरफेस-इंजीनियर्ड ग्लास सब्सट्रेट्स देश का पहला सेप्सिस जांच किट है। इसके अलावा यह दुनिया का सबसे सस्ता व सबसे तेजी से परिणाम बताने वाला किट भी है। इसे आइआइटी, दिल्ली के शोध के छात्र प्रशांत कलिता ने बनाया है।
नई दिल्ली (मुकेश ठाकुर)। अस्पताल के आइसीयू और सीसीयू में भर्ती मरीजों को सबसे अधिक खतरा सेप्सिस संक्रमण से होता है। शोध के अनुसार सेप्सिस संक्रमित हो चुके मरीजों की मृत्यु दर 50 से 60 फीसद तक है। इसका एक बड़ा कारण सही समय पर सेप्सिस की जांच नही होना है।
यह जांच इतनी महंगी होती है कि गरीब परिवार के मरीज उसके खर्च को वहन नहीं कर सकते हैं। इसके साथ ही इसकी जांच सामान्य प्रयोगशाला में भी नहीं हो सकती है। इसकी जांच रिपोर्ट के आने में भी काफी समय लग जाता है, लेकिन अब इन सभी समस्याओ का निदान आइआइटी के शोध के छात्र द्वारा तैयार किट से हो जाएगा।
रैपिड इंडोटॉक्सिन इनट्रैपमेट एंड डिटेक्शन ऑन सरफेस-इंजीनियर्ड ग्लास सब्सट्रेट्स देश का पहला सेप्सिस जांच किट है। इसके अलावा यह दुनिया का सबसे सस्ता व सबसे तेजी से परिणाम बताने वाला किट भी है। इसे आइआइटी, दिल्ली के शोध के छात्र प्रशांत कलिता ने बनाया है।
वह केमिकल इंजीनियरिंग विभाग मे सीनियर रिसर्च फेलो (पीएचडी) हैं। आइआइटी मे डॉ. शालिनी गुप्ता और डॉ. वी. श्रीथरन उनके गाइड हैं। मूलरूप से गुवाहाटी, असम के निवासी प्रशांत ने तेजपुर यूनिवर्सिटी, असम से बायोइलेक्ट्रॉनिक्स मे एमटेक व नैनोटेक्नोलॉजी मे एमएससी किया है।
प्रशांत ने बताया कि सेप्सिस जांच मे 13 हजार रुपये लगते हैं व इसकी रिपोर्ट आने मे छह से आठ घंटे का समय लगता है, लेकिन उनके इस किट से जांच का पूरा खर्च मात्र 50 रुपये आता है और रिपोर्ट पांच मिनट के अंदर प्राप्त हो जाती है।
वर्तमान में देश मे उपलब्ध सभी जांच किट यूरोपियन देश स्विट्जरलैंड व स्वीडन से आयातित हैं। इस किट से अब थोड़े-थोड़े अंतराल पर सेप्सिस की जांच हो सकेगी। जिससे संक्रमण फैलने के पूर्व ही उसे रोका जा सकेगा।
मिला गांधियन यंग टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन अवार्ड
प्रशांत ने बताया कि 13 मार्च को उन्होंने अपने इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रपति भवन मे आयोजित हुए फेस्टिवल ऑफ इनोवेशन में प्रदर्शित किया था। इसमे उनके प्रोजेक्ट को राष्ट्रपति की ओर से गांधियन यंग टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन अवार्ड 2016 से सम्मानित किया गया। इसके तहत प्रमाणपत्र, मोमेटो और 15 लाख रुपये दिए गए।
क्या है सेप्सिस संक्रमण
किसी प्रकार की बीमारी होने पर हमारे शरीर के अंदर स्थित रोग प्रतिरोधक प्रणाली खून मे कुछ रसायन छोड़ती है, जिसे इंडोटॉक्सिन कहते हैं। कई बार छोटे बच्चों, बुजुर्गों और काफी बीमार लोगों में यह प्रणाली आवश्यकता से अधिक रसायन छोड़ने लगती है। ऐसे मे मरीज सेप्सिस जैसे संक्रमण का शिकार हो जाता है।
सेप्सिस होने पर बुखार, दिल की धड़कन व सांस की गति का बढ़ना, कमजोरी, बेहोशी, शरीर पर चकते आना आदि लक्षण दिखते हैं। बीमार अवस्था मे सामान्य लक्षण होने के कारण पहले चरण मे डॉक्टरों को भी इसका पता नहीं चल पाता, लेकिन देर होने की स्थिति मे इससे दिल, किडनी और लिवर प्रभावित होता है और उनके फेल्योर होने की संभावना रहती है।
स्लाइड से होती है जांच
इसकी जांच सामान्य खून जांच मे उपयोग आने वाले स्लाइड से होती है। खुद से तैयार केमिकल ट्रीटमेट पर मरीज के खून के सिरम का एक बूंद डाला जाता है। अगर स्लाइड पर काले धब्बे हो जाएं तो वह व्यक्ति सेप्सिस से पीडि़त हो सकता है। काला रंग जितना गाढ़ा होगा वह उतना अधिक पीड़ित होगा। उन्होने इसे पेटेंट के लिए भेज दिया है। इसे एक इंच के जांच किट के रूप मे विकसित किया जाएगा। यह प्रेग्नेसी जांच किट की तरह होगा।
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