डीयू की प्रोफेसर कुसुमलता को सम्मानित करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की प्रोफेसर कुसुमलता को आज दृष्टिबाधित श्रेणी का आदर्श व्यक्तित्व पुरस्कार दिया जाएगा। यह सम्मान आज प्रधानमंत्री की ओर से विज्ञान भवन में दिया जाएगा। वह डीयू की बीए और एमए की टॉपर रह चुकी हैं और फिलहाल हिंदी विभाग में प्रोफेसर हैं।
नई दिल्ली (अभिनव उपाध्याय)। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की प्रोफेसर कुसुमलता को आज दृष्टिबाधित श्रेणी का आदर्श व्यक्तित्व पुरस्कार दिया जाएगा। यह सम्मान आज प्रधानमंत्री की ओर से विज्ञान भवन में दिया जाएगा। वह डीयू की बीए और एमए की टॉपर रह चुकी हैं और फिलहाल हिंदी विभाग में प्रोफेसर हैं।
वर्तमान समय में विकलांग लोगों की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि राइट ऑफ पर्सनल विद डिसएबिलिटी बिल-2014 विकलांग लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। समाज में विकलांग लोगों को विशेष सहयोग की जरूरत है, अन्यथा वे आगे नहीं बढ़ पाएंगे।
समाज में अशिक्षा और जागरूकता के अभाव के कारण विकलांग मुख्यधारा में नहीं आ पाते हैं, इसलिए समाज को उनके प्रति सोच बदलने की जरूरत है। अपने संघर्ष के बारे में वह कहती हैं कि आज भी विकलांगों को काफी संघर्ष करना पड़ता है।
हमें दोहरे स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ती है। एक तो लोगों की मानसिकता से और दूसरी विकलांगों के प्रति दोहरी प्रक्रिया से। वह कहती हैं कि आज जो कुछ हो रहा है, उसमें विकलांगों की भागीदारी जरूरी है। हमें भत्ता नहीं, अधिकार और रोजगार चाहिए। तभी हम मुख्य धारा से जुड़ सकेंगे।
वह कहती हैं कि मौजूदा समय में सुगम्य भारत की बात हो रही है, लेकिन राजधानी में ही विकलांगों के लिए कहीं आना-जाना सुगम नहीं है। उन्होंने बताया कि अब की अपेक्षा 1988 में मुङों डीयू जाना अधिक आसान लगता था।
आज तो फुटपाथ पर रेहड़ी-पटरी, पेड़ और बहुत कुछ ऐसा है, जिस पर विकलांगों के लिए चलना आसान नहीं है। कुछ बदलाव हुए हैं, लेकिन उसका पालन ठीक से नहीं हो रहा है। 11980 के एक आंदोलन के बारे में वह बताती हैं कि राजधानी में दृष्टिबाधितों का एक बड़ा आंदोलन हुआ था, जिसमें आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई गई थीं।
इसके बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मांफी मांगी थी और उन्हें मुख्यधारा में लाने के प्रयास के लिए विशेषज्ञों से बातचीत की थी। इसके बाद तीन फीसद आरक्षण सरकारी सेवाओं में दिया गया था, लेकिन कई संस्थानों में इसका पालन नहीं हो रहा है।

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