2200 रुपये के लिए कोई मां अपनी बेटी के सम्मान को दांव पर नहीं लगाएगी: कोर्ट
अदालत ने कहा कि पीड़िता समाज के गरीब तबके से है। वह कम पढ़ी-लिखी है। ऐसे में बयानों में मामूली विसंगतियां हो सकती हैं। ...और पढ़ें

नई दिल्ली [जेएनएन]। दुष्कर्म के मामले में पीड़िता के बयानों में मामूली विसंगतियां होने पर दोषी को राहत नहीं दी जा सकती। यह कहते हुए हाई कोर्ट ने 10 वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म के मामले में दोषी को निचली अदालत द्वारा प्रदान सात वर्ष कैद की सजा को बरकरार रखा है।
न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने कहा कि स्कूल जाने वाली 10 वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म गंभीर अपराध है। निचली अदालत ने पहले ही दोषी को अधिकतम 10 वर्ष की अपेक्षा सात वर्ष की सजा देकर राहत दी है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने दोषी के उस तर्क को खारिज कर दिया कि उसे फर्जी मामले में फंसाया गया है। दोषी ने तर्क दिया था कि पीड़िता की मां से उसने अपने 2200 रुपये वापस मांगे थे, इसलिए उसने फंसाया है। अदालत ने कहा कि कोई भी मां इतनी छोटी रकम के लिए अपनी बेटी के सम्मान को दांव पर नहीं लगाएगी।
अदालत ने बचाव पक्ष के उस तर्क को भी खारिज कर दिया कि बयान में विरोधाभास है और कई विसंगतियां हैं। अदालत ने कहा कि पीड़िता समाज के गरीब तबके से है। वह कम पढ़ी-लिखी है। ऐसे में बयानों में मामूली विसंगतियां हो सकती हैं। पीड़िता ने अपने बयानों मे साफ कहा है कि दोषी ने उसके भाई व मां की हत्या की धमकी देकर उससे दुष्कर्म किया था।
निचली अदालत से जमानत मिलने के बाद 14 वर्ष रहा फरार
घटना पूर्वी दिल्ली की है। 15 जून 1993 को पड़ोस में रहने वाले युवक ने घर मे घुसकर 10 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था। बच्ची के परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था। निचली अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान 4 जुलाई 1998 को जमानत मिलने के बाद वह फरार हो गया। 22 मई 2012 को पुलिस ने उसे फिर गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद निचली अदालत ने 2013 में उसे दोषी ठहराते हुए सात वर्ष कैद की सजा दी थी। आरोपी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।