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    10 साल पहले दो युवकों ने देश के खिलाफ छेड़ी थी 'जंग', अब आया फैसला

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Tue, 27 Dec 2016 07:50 AM (IST)

    दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर जब सीबीआइ ने मामले की पड़ताल शुरू की तो पाया कि दोनों आरोपी इरशाद अली और मौरिफ कमर दिल्ली पुलिस और इंटेलीजेंस ब्यूरो (आइबी) के जासूस थे।

    नई दिल्ली (जेएनएन)। तकरीबन 10 साल चली अदालती कार्यवाही के बाद स्पेशल सेल द्वारा भारत के खिलाफ जंग छेड़ने की धाराओं में गिरफ्तार किए गए दो युवकों को पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रितेश सिंह ने बरी कर दिया है।

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    खास बात यह है कि दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर जब सीबीआइ ने मामले की पड़ताल शुरू की तो पाया कि दोनों आरोपी इरशाद अली और मौरिफ कमर दिल्ली पुलिस और इंटेलीजेंस ब्यूरो (आइबी) के जासूस थे। दिल्ली पुलिस ने एफआइआर में कहा था कि फरवरी 2006 में दोनों को गुप्त सूचना के आधार पर उत्तर- पश्चिमी दिल्ली स्थित मुकरबा चौक इलाके से गिरफ्तार किया गया था।

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    बताया गया कि दोनों प्रतिबंधित आतंकी संगठन अल-बदर के सदस्य हैं। गिरफ्तारी के वक्त उनके पास से पिस्तौल, गोलियां व डेटोनेटर बरामद हुए। जिसे देखते हुए दोनों के खिलाफ आइपीसी की धारा-121 (भारत के खिलाफ जंग छेड़ना) व धारा-120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

    दोनों आरोपियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर कहा कि उन्हें पुलिस ने दिसंबर 2005 में पकड़ा था। वह लंबे समय से आइबी और पुलिस के लिए गुप्त सूचना देने का काम करते रहे हैं। अब उन्हें ही बली का बकरा बनाया जा रहा है।

    हाईकोर्ट ने सीबीआइ जांच के आदेश दिए। सीबीआइ ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दावा किया कि दोनों को दिल्ली पुलिस और इंटेलीजेंस ब्यूरो ने गलत तरीके से फंसाया है। सीबीआइ की रिपोर्ट को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था। ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ आरोपियों ने फिर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट पर विचार करने के निर्देश दिए। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को कहा कि वह इस बाबत स्वयं निर्णय ले।

    जरूरत पड़ने पर जांच एजेंसी को दोबारा जांच के निर्देश दिए जाएं। जिसके बाद अदालत ने सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट पर विचार किए बिना दोनों के खिलाफ आरोप तय कर ट्रायल शुरू करने के निर्देश दिए थे।

    आरोपियों ने एक बार फिर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले के 10 साल बाद अब अदालत ने दोनों को बरी कर दिया है। उन्हें वर्ष 2009 में ही जमानत मिल गई थी।