जानिए, दलितों को रिझाने के लिए मनोज तिवारी ने क्या उठाया कदम
ब्राह्मण समुदाय से जुड़े मनोज तिवारी के लिए पंजाबी और वैश्य समुदाय के मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखना एक चुनौती होगी।
नई दिल्ली (जेपी यादव)। जोश से भरे दिल्ली भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष मनोज तिवारी आगामी विधानसभा चुनाव जीतने की तैयारी में जुट गए हैं। हालांकि, चुनाव होने में अभी तीन साल से भी अधिक का वक्त है, लेकिन मनोज तिवारी अपनी ओर से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते। दिल्ली फतह का गणित को बिठाने की कड़ी में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की तर्ज पर मनोज तिवारी ने भी दलितों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है।
यही वजह है कि दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने सोमवार को करोल बाग इलाके के महर्षि वाल्मीकि बस्ती के शिव क्वॉर्टर में विशाल थावरिया के परिवार के साथ भोजन किया। इसकी के साथ उन्होंने दलित समाज को भाजपा से जोड़ने को संदेश भी दिया है। यहां पर बता दें कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी दलितों के घर कई बार भोजन करके चर्चा पा चुके हैं। इसी साल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी यूपी में दलित समुदाय के घर पर भोजन करके चर्चा में आए थे। आश्चर्य की बात यह भी है कि सांसद मनोज तिवारी ने बिना किसी पूर्व सूचना के विशाल थावरिया के घर जाकर भोजन किया।
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मनोज तिवारी की यह कोशिश इस नजरिये से भी अहम मानी जा रही है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान देशभर में दलितों पर हुए हमलों के बाद से वह भाजपा से दूरी बनाता नजर आया। खासकर गुजरात के ऊना में दलितों पर हमले के बाद इस वर्ग में काफी नाराजगी थी।
राजनीतिक जानकार भी यह मानते हैं कि दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रति जनता की नाराजगी का फायदा भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में उठा सकती है। इसके लिए उसे दलित मतदाताओं को अपने साथ जोड़ना होगा। हालांकि, ब्राह्म्णों, वैश्यों और पंजाबियों की भी अच्छी-खासी संख्या है। बावजूद इसके सियासी जानकार मानते हैं कि अगर भाजपा दलित और ब्राह्म्ण मतदाताओं को जोड़ने में कामयाबी हो जाती है, तो दिल्ली में पार्टी की सरकार बनना तय है।
इसमें भी कोई शक नहीं कि दिल्ली में दलित और मुस्लिम मतदाता ही सत्ता की राह आसान करते आए हैं। दिल्ली में जातिगत आंकड़ों पर नजर डालें तो दिल्ली में जीत-हार की चाभी दलितों और मुसलमानों के हाथ में है।
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बसपा की गैरमौजदूगी का भाजपा का मिलेगा लाभ
पहले दिल्ली में दलित समुदाय के लोग कांग्रेस के पक्ष में मतदान करते थे, लेकिन AAP ने सबसे पहले कांग्रेस की जमीन यानी दलित वोट बैंक को ही तोड़ दिया। जिसका दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP को जबरदस्त लाभ भी मिला। ऐसे में भाजपा दलितों के करीब जाकर दिल्ली में अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश में दलित समाज बहुजन समाज पार्टी का मतदाता माना जाता है, जबकि दिल्ली में बसपा की मौजूदगी नहीं के बराबर है।
दलित-मुस्लिम यानी ‘दिल्ली दूर नहीं’
पिछले दो दशक की राजनीति को देखें तो सूबे के दलित व मुस्लिम मतदाता जिस ओर एकजुट होकर मतदान करते हैं, पलड़ा उधर ही झुक जाता है। जनगणना के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के मतदाताओं के जातिगत बंटवारे पर नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि यहां की जीत की चाभी दलितों और मुस्लिमों के पास ही है। आंकड़ भी बताते हैं कि एक करोड़ से अधिक मतदाताओं वाले दिल्ली में करीब 17 फीसद मतदाता सिर्फ दलित तबके से आते हैं, जबकि मुस्लिम दूसरे स्थान पर। ऐसे में अगर भाजपा यहां पर दलितों को उचित प्रतिनिधित्व दे तो वह आसानी से दिल्ली फतह कर सकती है।
पंजाबी समुदाय को भी साधना होगा
दिल्ली व भाजपा दोनों समुदायों में वैश्यों व पंजाबियों का खासा दबदबा रहा है। जातिगत सियासी गणित के मुताबिक, दिल्ली में 10.39 फीसद मतदाता पंजाबी समुदाय से जबकि 8.56 फीसद मतदाता वैश्य समुदाय के हैं और ये दोनों भाजपा के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वैश्य मतदाओं में AAP ने जबरदस्त सेंध मारी की। ऐसे में ब्राह्मण समुदाय से जुड़े मनोज तिवारी के लिए पंजाबी और वैश्य समुदाय के मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखना एक चुनौती होगी।
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