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    'कलाकार चला जाता है लेकिन उसकी कला हमेशा जिंदा रहती है'

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Sat, 07 Jan 2017 07:46 PM (IST)

    ओमपुरी कहा करते थे, कलाकार चला जाता है लेकिन उसकी कला हमेशा जिंदा रहती है। ओमपुरी स्टार नहीं, सही मायने में अभिनेता थे।

    नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। विश्वविख्यात अभिनेता ओमपुरी जब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में अभिनय की बारीकियां सीख रहे थे तो उन्हें उनके साथियों ने हमेशा हतोत्साहित करने की कोशिश की। चेहरे के निशानों एवं सामान्य कद काठी वाले ओमपुरी को उनके साथी एक ही बात कहते थे, 'तुम यहां अपना समय बर्बाद कर रहे हो। कामयाब नहीं हो पाओगे कभी।'

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    जब ओमपुरी भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफआइटी) पुणे में प्रवेश पाने की कोशिश कर रहे थे, तब भी सभी ने उन्हें यही कहकर हतोत्साहित किया। लेकिन उन्होंने इसी हताशा से आशा की राह ढूंढकर मनचाहा मुकाम पाया। शायद इसीलिए उनके निधन के बाद एनएसडी में भी एक सन्नाटा सा पसरा नजर आया। प्रवेश द्वार के पास ही उनके चित्र के आगे एक दीया भी उन्हें श्रद्धांजलि देता प्रतीत हो रहा था।

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    एनएसडी से अभिनय में 1973 बैच के स्नातक ओमपुरी के जूनियर साथी 1979 बैच के अमिताभ श्रीवास्तव कहते हैं, ओम भाई जितने सहज इंसान थे, उतने ही सहज कलाकार। उन्होंने हार कभी नहीं मानी। साथी भले उन्हें हतोत्साहित करते थे मगर वे बुरा नहीं मानते थे। वे जानते थे कि वे मॉडल नहीं हैं लेकिन एक अभिनेता की कसौटी पर खुद को हमेशा खरा उतारने की कोशिश में लगे रहते थे।

    अमिताभ बताते हैं, मुफलिसी के दिनों में श्रीराम सेंटर के पास रेलवे रोड के रेलवे क्वार्टर में भी उनका ठिकाना हुआ करता था। दरअसल, उतनी पहली पत्नी सीमा कपूर भाई अन्नू कपूर के साथ वहां किराये पर रहती थीं। हमने भी वहीं पर एक क्वार्टर किराये पर ले रखा था। वे अक्सर यहां आते भी थे और ठहरते भी थे। सुबह सवेरे चाय पीने भी हमारे यहां ही आ जाया करते थे। कहा करते थे, कलाकार चला जाता है लेकिन उसकी कला हमेशा जिंदा रहती है।

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    ओमपुरी के साथ ही अभिनय सीखने वाले उनके बैचमेट बंसी कौल कहते हैं, ओमपुरी स्टार नहीं, सही मायने में अभिनेता थे। साथियों के साथ हंसी मजाक और चुहलबाजी हमेशा चलती रहती थी। बीच में वो सिनेमा में ज्यादा व्यस्त हो गए और मैं थियेटर ही करता रहा। लिहाजा, बातचीत काफी कम हो गई थी। लेकिन एक डेढ़ साल से यह सिलसिला फिर शुरू हो गया। अभी छह सात दिन पहले भी उनसे फोन पर बात हुई थी। पता नहीं था कि वह बातचीत उनसे आखिरी होगी।

    ओमपुरी के गुरु इब्राहिम अल्काजी की बेटी अमाल अल्लाना बताती हैं, ओम बाहर से भले ही बहुत आकर्षक या सुंदर नहीं थे लेकिन भीतर से बहुत अच्छे इंसान थे। कई साल पहले एक शो में गुरु के बारे में बात करते हुए भावुक हो गए थे। अल्काजी के 98वें जन्मदिन पर भी वे दिल्ली आए थे और जब भी कभी दिल्ली आते तो उनसे मिलना चाहते। बॉलीवुड के साथ साथ उनका अभिनय हॉलीवुड में भी कमाल का रहा। उनके अभिनय में उनका जुनून और समर्पण हमेशा नजर आता था।