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    दिल्‍ली ही नहीं 11 राज्यों में संसदीय सचिवों को लेकर उठा विवाद, कोर्ट तक गए मामले

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Fri, 09 Sep 2016 08:59 AM (IST)

    संसदीय सचिव को लेकर उठा विवाद केवल दिल्‍ली से ही नहींं जुड़ा है, बल्कि देश के 11 राज्‍यों में यह विवाद उठ चुका है। इस पर विभिन्‍न राज्‍याें में कोर्ट के आदेश भी हैं।

    नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) के 21 विधायकों के सचिवों का विवाद नया नहीं है। दिल्ली के अलावा, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड और पंजाब में संसदीय सचिव को लेकर विवाद है।

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    117 विधायकों वाले पंजाब में कुल 24 संसदीय सचिव हैं। इन्हें हर महीने 40 हजार रुपये वेतनमान, कार, खाने बनाने वाले के साथ आवास मिलता है। इसके अलावा, सिविल सचिवालय में निजी सचिव, ऑफिस, स्टेनों, क्लर्क और चपरासी भी मिलते हैं। इसके अतिरिक्त पर्क्स के तौर पर संसदीय सचिव को 25 हजार रुपये का विधानसभा क्षेत्र भत्ता, ऑफिस के लिए 10 रुपये, फोन के लिए 15 हजार रुपये, सेक्रेडेरियल के लिए 10 हजार और तीन लाख रुपये का सालाना एलटीसी मिलता है।

    केजरीवाल को झटके पर झटका, HC ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद की

    90 विधानसभा वाले हरियाणा में 4 संसदीय सचिव हैं। इन्हें हर महीने चुनावी क्षेत्र के लिए भत्ते के तौर पर 30 हजार रुपये दिए जाते हैं। वहीं, खाने व अन्य मद में 12 हजार रुपये, यात्रा भत्ता के लिए 10 हजार रुपये दिए जाते हैं। यहां भी एलटीसी की व्यवस्था है।

    यह है नियम

    नियमों के मुताबिक, पंजाब और हरियाणा में ऐसा कोई विधिक प्रावधान नहीं है, जिसके तहत संसदीय सचिवों की नियुक्ति हो। हालांकि, 2005 में हाईकोर्ट में इन नियुक्तियों को चुनौती दी गई है। वहीं, हिमाचल प्रदेश में तो संसदीय सचिव की नियुक्ति के लिए कोई कानून ही नहीं है। राजस्थान में विधायकों की संख्या 200, जिनमें पांच को संसदीय सचिव बनाया गया है।

    182 विधानसभा वाले गुजरात में पांच संसदीय सचिव हैं, तो मणिपुर में 60 विधायक हैं, जिनमें पांच संसदीय सचिव बने हैं। यह भी एक तथ्य है कि इन राज्यों में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए कानून है, लेकिन इसके लिए कोई सीमा तय नहीं हॆं।

    यहां पर याद दिला दें कि आम आदमी पार्टी ने आज चुनाव आयोग से मांग की है कि 11 राज्यों में संसदीय सचिव के पद पर तैनात सौ से ज्यादा विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाए, जिसके बाद चुनाव आयोग ने पार्टी को सलाह दी थी कि अपने आवेदन के साथ राष्ट्रपति और संबंधित राज्यों के राज्यपालों से संपर्क करें।

    आप नेताओं ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड और पंजाब में विधायक ऐसे पदों पर आसीन हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कही ये बात

    उधर, 2006 में जया बच्चन के मामले में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कहता है कि अगर किसी सांसद या विधायक ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का पद लिया है तो उसे सदस्यता गंवानी होगी चाहे वेतन या भत्ता लिया हो या नहीं। चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजे राव कहते हैं कि आप के विधायकों पर आखिरी फैसले का ऐलान चुनाव आयोग ही करेगा।

    संसदीय सचिव पर पहले भी रहा विवाद

    शीला सरकार तक 3 से ज़्यादा संसदीय सचिव नहीं रहे
    साहेब सिंह वर्मा ने नंद किशोर गर्ग को संसदीय सचिव बनाया
    अयोग्य करार दिए जाने की आशंका से गर्ग ने इस्तीफ़ा दिया
    1998-2003 के दौरान शीला सरकार में एक संसदीय सचिव
    2003-2008 और 2008-2013 में सिर्फ़ 3 संसदीय सचिव

    अब तक किन पर गिर चुकी है गाज

    सोनिया गांधी ने 2006 में विवाद के बाद अपने कई पदों से इस्तीफ़ा दिया
    जया बच्चन की राज्यसभा सदस्यता रद्द की गई थी
    यूपी के दो विधायकों की सदस्यता गई
    2015 में बजरंग बहादुर सिंह, उमाशंकर सिंह की सदस्यता रद

    पहले भी संसदीय सचिव पर विवाद
    पश्चिम बंगाल (टीएमसी सरकार)
    दिसंबर 2012 : संसदीय सचिव बिल पास
    जनवरी 2013 : 13 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया
    जनवरी 2014 : 13 और विधायक संसदीय सचिव नियुक्त

    संसदीय सचिवों को मंत्री का दर्जा प्राप्त
    जून 2015: हाईकोर्ट ने बिल को असंवैधानिक बताया
    धारा 164 (1A) के तहत असंवैधानिक ठहराया
    धारा 164-(1A): कुल विधायकों के 15% से ज़्यादा मंत्री नहीं हो सकते

    ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है ?
    1- कॉन्स्टिट्यूशन के आर्टिकल 102 (1) (ए) के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या बाकी फायदे मिलते हों।
    2- इसके अलावा आर्टिकल 191 (1)(ए) और पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव एक्ट के सेक्शन 9 (ए) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रोविजन है।
    3- संविधान की गरिमा के तहत ‘लाभ के पद’ पर बैठा कोई व्यक्ति उसी वक्त विधायिका का हिस्सा नहीं हो सकता।