यहां के लोग एक दिन के लिए जाते हैं वनवास, चोरी करनेवाला हो जाता है अंधा
पश्चिम चंपारण जिले का एक गांव एेसा है जहां साल में एक दिन के लिए लोग अपना घर छोड़कर वनवास में चले जाते हैं। उनके घरों में चोरी करने वाला व्यक्ति अंधा ...और पढ़ें

पश्चिम चंपारण [जेएनएन]। आस्था सर्वोपरि है। इसके आगे सबकुछ गौण है। पश्चिम चंपारण जिला अंतर्गत बगहा दो प्रखंड की नौरंगिया दरदरी पंचायत स्थित नौरंगिया में प्रत्येक वर्ष वैशाख माह में जानकी नवमी (20 अप्रैल) के दिन कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है। इस दिन गांव के सभी लोग वनवास पर होते हैं।
आश्चर्य यह कि वे घर छोड़ते वक्त अपने-अपने घरों में ताले नहीं लगाते। मान्यता है कि इस दौरान चोरी की कोशिश करनेवालों के आंखों की रोशनी चली जाती है। करीब 200 वर्ष से यह परंपरा चली आ रही है।
नौरंगिया गांव करीब 800 घरों की बस्ती है। प्राकृतिक आपदा से खुद को बचाने के लिए ये लोग जानकी नवमी के दिन अपने बाल-बच्चे व मवेशियों के साथ जंगल में वनदेवी की पूजा करने के लिए जाते हैं। सूर्योदय से पूर्व अपने घर से निकल जाते हैं और सूर्यास्त तक वनदेवी की पूजा करते हैं।
इस दौरान प्राकृतिक विपदा से गांव के लोगों को बचाने के लिए प्रार्थना करते हैं। मवेशियों को जंगल में चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जबकि, महिलाएं प्रसाद बनाने में लग जाती हैं। पुरुष माता की पूजा करते हैं। वनवास के दौरान माता को चढ़ाए गए प्रसाद खाकर ही ये लोग रहते हैं।
वनदेवी की पूजा के लिए जंगल जाते वक्त लोगों के घरों के दरवाजे खुले होते हैं। मान्यता है कि इन दिन गांव में वनदेवी आती हैं। इस दौरान जो घर में मिलता है उसका अपशकुन होता है।
बुजुर्ग ग्रामीण विक्रम महतो कहते हैं कि दो-तीन सौ वर्ष पूर्व इस गांव के कई लोग हैजा व प्लेग के कारण असमय चल बसे थे। गांव के समीप भजनी कुटी पर निवास कर रहे महात्मा परमहंस दासजी से इस समस्या का निदान पूछा तो उन्होंने वन देवी की आराधना की। देवी ने वरदान दिया कि एक दिन के लिए पूरे गांव के लोग मेरे स्थान पर पूजा करने के लिए आएंगे और मैं इस बस्ती में जाऊंंगी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
कई हो गए अंधे : सरपंच शिवनारायण महतो कहते हैं कि पूर्वज बताते थे कि शुरू में कुछ चोरों ने चोरी की कोशिश की, लेकिन वे विफल रहे। उनकी आंखों की रोशनी भी चली गई। इस वजह से इस दिन गांव के आसपास भी कोई नहीं फटकता है।
आस्था से जुड़ी परंपरा
बगहा के नौरंगिया दरदरी के मुखिया बिहारी महतो कहते हैं कि वनवास की यह परंपरा धार्मिक आस्था से जुड़ी है। इस कार्यक्रम के पूर्व ग्रामीणों के सहयोग से वनदेवी के स्थान भजनी कुटी व देवी स्थान की साफ-सफाई कराई जाती है।

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