जिंदगी लाइव : बाढ़ ने उजाड़ दिया सबकुछ, अब बस घर जाने का है इंतजार
गंगा की तबाही का मंजर अब साफ नजर आ रहा है। बाढ़ से कितनों के घर तबाह हुए कितनों के सपने। राहत शिविरों में रहने वाले लोगों को अब वापस घर लौटने की अब जल्दी है।

पटना [ काजल]। गंगा की उफनाती लहरें तो अब धीरे-धीरे शांत हो रही हैं, लेकिन तबाही का मंजर देखकर दिल दहल जाता है। नदी के उस पार को तकती आंखें, दूर से अपने मिट चुके आशियाने की हालत जानने की बेचैनी और चेहरे पर मायूसी इस विभीषिका की कहानी कह रही थीं। दोपहर बारह बजे आसमान में चमकता सूरज, उमस वाली गर्मी.. हम जा पहुंचे पटना के गांधी घाट जहां गंगा की लहरें यह जता रही थीं कि अगर अब भी नहीं चेते तो आगे भी तबाही देखने को तैयार रहो।
गंगा के जलस्तर को जानने के लिए हम जल संसाधन विभाग के कार्यालय पहुंचे जहां आयोग के कर्मचारी चंद्रभूषण सिंह ने बताया कि आयोग ने सत्रह अगस्त को ही आगाह कर दिया था, जब गंगा वॉर्निंग लेवल को छू रही थी, उसके बाद लगातार जलस्तर बढ़ता रहा। ग्यारह अगस्त को बारह बजे दिन में गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर चला गया तो चिंता बढ़ गई। तब तक गंगा ने जहां तहां तटबंध तोड़ दिया और तटीय इलाके पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ गए। बीस अगस्त को गंगा ने 1994 का रिकॉर्ड तोड़कर नया रिकॉर्ड बनाया।
एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार रेस्क्यू आपरेशन में लगी रहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसे थे जिन तक टीमें नही पहुंच पाईं और लोग खुद ही जुगत लगाई और अपनी जान की सुरक्षा की। ऐसे ही राय हसनपुर के एक परिवार से हम मिले जो नाव में ही अपना बसेरा बनाए हैं और गंगा तट पर रह रहे हैं।
परिवार के मुखिया अशोक राय ने बताया कि रात में सभी सो रहे थे कि अचानक गांव में हल्ला हुआ कि गंगा का पानी गांव में घुस रहा है, सुनकर हमें कुछ समझ नहीं आया हम क्या करते? घर में पानी का घुसना देखते रहे और किसी तरह रात बिताई। जब पौ फटी तो बच्चों को लेकर सिपाही घाट पर आ गए। अब कुछ दिनों से यही हमारा जीवन है। लहरों के बीच रह रहे हैं पानी कम होगा, गांव जाकर देखेंगे क्या हाल है? कितना नुकसान हुआ है?
एक बजे हम कलेक्टे्रट घाट गए जहां लोग अपने मवेशियों का चारा लेने के लिए लाइन में लगे थे, चेहरे पर उदासी थी। लोगों ने बताया कि बाढ़ ने सबकुछ छीन लिया। किसी को अगले लगन में अपनी बेटी की शादी करनी है तो किसी को जनेऊ करना है, लेकिन अब यह संभव शायद हो सके कि निश्चित तारीख को यह होगा, क्योंकि गांव में कुछ बचा नहीं है सब गंगा मैया लील गई हैं अब कैसे क्या होगा?
लोगों ने बताया कि खाने के लिए सरकार की तरफ से चूड़ा-गुड़ मिला है, राहत केंद्रों में खाना भी मिल रहा है, मवेशियों को भी चारा दिया जा रहा है। गंगा की लहरों के बीच नाव पर बने आशियाने में महिलाएं, उनकी समस्या दिखी।ं उन्हें शौच की समस्या और खुले में गंगा के पानी में नहाना पड़ रहा है, यह बात नागवार गुजर रही है। कहीं-कहीं शौचालय बनाए गए हैं तो कहीं लोग ऐसे ही रह रहे हैं।
तीन बजे हम राज्य सरकार के राहत शिविर में पहुंचे जहां चार सौ लोगों के रहने की व्यवस्था की गई है। शिविर में अधिकारी राजीव सहाय और अतुल वर्मा ने बताया कि राहत देने में काफी दिक्कतें आ रही हैं क्योंकि स्थानीय लोग भी शिविर में पहुंच जाते हैं और राहत देने की मांग करते हैं हम खाना चार सौ लोगों का बनाते हैं लेकिन खाने के वक्त आस-पास के लोग काफी संख्या में आ जाते हैं।
एेसे ही हम दीघा घाट के एक राहत शिविर में पहुंचे जहां जमीन पर बैठकर पंगत में सैकड़ों लोग एक साथ खाना खा रहे थे। यहां कोई धर्म संप्रदाय की बात नहीं कहीं अपने आशियाने के उजड़ने का दर्द तो वहीं अपनी जिंदगी को जीने के लिए खाने की जरूरत। यहां स्थानीय कार्यकर्ता स्वेच्छा से अपना श्रमदान दे रहे थे।
यहां लोगों ने बताया कि सेवा सबसे बड़ा धर्म है गंगा मैया ने हमें लोगों की सेवा का यह अवसर प्रदान किया है। दिन भर यहां लोग आते हैं और सरकार की तरफ से की गई व्यवस्था में दाल चावल सब्जी इन्हें परोसी जाती है ये खाकर हमें आशीर्वाद देते हैं यही काफी है। बाढ़ ने सारे भेद-भाव मिटाकर लोगों को एक ही रिश्ते से जोड़ दिया है, जो है मानवता का रिश्ता।
शहर में काफी संख्या में राहत शिविर चलाए जा रहे हैं, जहां बाढ़ पीड़ित किसी तरह रह अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं लेकिन अब वे जल्द से जल्द अपने उजड़े आशियाने को फिर से बसाने जाना चाहते हैं। तिनका-तिनका जोड़कर जो आशियाना बनाया था वो तो उजड़ चुका, अब उसी उजड़े आशियाने को फिर से बसाने के लिए जलद-से-जल्द अपने गांव लौट जाना चाहते हैं।
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