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    जानिए क्या थी वजह कि नीतीश को इतना भा गये NDA के 'राम'

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Thu, 22 Jun 2017 10:16 PM (IST)

    नीतीश कुमार ने रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर बहुत बड़ा एतिहासिक फैसला लिया है। इसके पीछे कई वजह हैं कि नीतीश ने विपक्षी पार्टियों का विरोध कर एनडीए के हक में यह फैसला लिया है।

    जानिए क्या थी वजह कि नीतीश को इतना भा गये NDA के 'राम'

    पटना [काजल]। तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए आखिरकार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का एलान कर दिया है। इससे विपक्षी खेमे में हलचल मची हुई है। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं, लेकिन अपनी बातों पर अटल रहने वाले नीतीश कुमार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

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    जानिए किन कारणों से नीतीश ने लिया यह फैसला

    1.बेहतर संबंध और सामंजस्य

    बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहतर संबंध रहे हैं। वो एक राज्यपाल-मुख्यमंत्री का हो या दो लोगों के आपसी रिश्ते और दोस्ती का। अगस्त 2015 में रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल बने और उन्होंने अपने व्यवहारकुशलता से नीतीश का दिल जीत लिया।

    बिहार के  पूर्व के राज्यपालों की तुलना में दोनोें के बीच कभी भी मनमुटाव की खबरें नहीं आई और यही कारण था कि राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित होने के बाद सीएम ने कोविंद से मुलाकात कर उनकी जबरदस्त प्रशंसा की।

    जदयू के लगभग सभी नेताओं और विधायकों रामनाथ कोविंद को अच्छा व्यक्ति बताया है।

    2.कई अहम फैसले का कोविंद ने किया था समर्थन

    शराबबंदी जैसे अहम फैसले पर रामनाथ कोविंद ने नीतीश का समर्थन किया था, जबकि महागठबंधन दल के नेताओं के साथ ही अन्य कई दल और कानूनविद इसकी आलोचना कर रहे थे। वहीं, कुलपति चयन में भी कोविंद ने नीतीश की पसंद को तवज्जो दी थी, जबकि कोविंद कुलाधिपति थे और उनके पास सर्वोच्च अधिकार थे।

    3.दलित चेहरा

    रामनाथ कोविंद बिहार के पड़ोसी प्रदेश यूपी के कानपुर शहर के रहने वाले हैं और साथ ही प्रमुख उदारवादी दलित चेहरा भी हैं। सौम्य और सुशील होने के साथ कोविंद कानून के अच्छे जानकार हैं। दूसरी ओर दलित चेहरा का विरोध करना नीतीश की आगे की राजनीति के लिए भारी पड़ सकता था। 

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    4.फैसले से पीछे नहीं हटते नीतीश

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पुराना रिकॉर्ड रहा है कि गठबंधन से अलग वो अपने खुद के फैसले लेते रहे हैं। चाहे वो जीएसटी का मुद्दा हो या फिर नोटबंदी का। इसके अलावा 2012 में उन्होंने एनडीए में रहते हुए यूपीए के प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन किया था।

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