मरीज छह, डॉक्टर सात और बेड पचास, ऐसा है राजधानी का यह अस्पताल
पटना के अगमकुआं स्थित संक्रामक रोग अस्पताल में छह मरीज हैं। इनके इलाज के लिए सात डॉक्टर हैं और पचास बेड उपलब्ध है। लेकिन यहां इमरजेंसी की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
पटना [जेएनएन]। राजधानी में एक अस्पताल ऐसा भी है, जहां मरीज से ज्यादा डॉक्टर हैं और उन दोनों से भी जयादा कर्मचारी। ये अस्पताल है अगमकुआं स्थित संक्रामक रोग अस्पताल। यहां अधीक्षक समेत सात डॉक्टर तैनात हैं, लेकिन मरीजों की संख्या महज छह है। अस्पताल में करीब दो दर्जन कर्मी हैं।
अस्पताल में चौंकाने वाली बातें और भी हैं। 50 बेड के इस इमरजेंसी अस्पताल में इमरजेंसी की सुविधा ही नहीं है। विभाग के कई आला अधिकारियों ने यहां आइसीयू व्यवस्था सुनिश्चित कराने की घोषणा कई बार की लेकिन आज तक मरीजों के लिए यह इंतजाम नहीं हो सका।
नए भवन में खुला नशामुक्ति केंद्र
डिपथेरिया, टेटनस, चिकनगुनिया, इबोला तथा कई अन्य संक्रामक रोगियों के लिए नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ठीक सामने संक्रामक रोग अस्पताल स्थापित है। इस अस्पताल के नवनिर्मित भवन में ही नशा मुक्ति इकाई खोल दी गई है। इसी परिसर में निजी जांच इकाई डोयन संचालित है।
पुराने भवन में संक्रामक रोगियों को भर्ती करने के लिए पचास बेड हैं। अस्पताल की हालत में तो सुधार किया गया, लेकिन यहां की चिकित्सा व्यवस्था अभी भी 'संक्रमित' है। दो वर्ष पूर्व चिकनगुनिया के अचानक बढ़े मरीजों को देखते हुए इस अस्पताल की व्यवस्था में कई बदलाव किए गए। सुविधा युक्त बेड, वेंटिलेटर लगाकर तथा डॉक्टरों की प्रतिनियुक्ति कर आइसीयू तैयार करने का प्रयास हुआ लेकिन कुछ दिनों में ही यह तमाम सुविधाएं जहां से आई थी, वहीं भेज दी गई।
दवाएं खरीदनी पड़ती हैं बाजार से
बिहार के इस एकलौते अस्पताल में टिटनेस मरीजों के लिए जरूरी दवा रौबीनेक्स कई सालों से नहीं है। भर्ती मरीजों का कहना है कि अस्पताल की ओर से कई दवाइयां नहीं दी जाती हैं। जरूरी दवाई अस्पताल में नहीं है जबकि बाजार में सहज उपलब्ध है।
मरीजों ने दवाइयों की खरीद बीएमएसआइसीएल स्तर से कराकर अस्पताल में उपलब्ध कराने की मांग की है। इनका कहना है कि जीवन रक्षक दवाइयां खरीदने के लिए अस्पताल स्तर से टेंडर की प्रक्रिया करना और उसमें बार बार नाकाम हो जाना ङ्क्षजदगी से खिलवाड़ है।
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दवा खरीद का फिर निकलेगा टेंडर
अधीक्षक सह बिहार स्वास्थ सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश ङ्क्षसह कहते हैं, कि नियमित टीकाकरण के कारण रोगियों की संख्या कम हुई है। टेटनस को लेकर लोग जागरूक हुए हैं। इस वजह से समय रहते मरीज का इलाज हो जाता है। उन्होंने बताया कि टेटनस की दवा रौबीनेक्स का आवंटन दो साल से नहीं है। इसके लिए कई बार टेंडर किया गया है। जल्द ही फिर टेंडर निकाल कर इस दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रयास होगा।
अधीक्षक ने कहा कि अस्पताल में ज्यादातर भर्ती मरीज इमरजेंसी के ही होते हैं, इसलिए तीनों पाली में इन पर नजर रखने के लिए छह चिकित्सक तैनात हैं।
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