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    बड़ी पटनदेवीः यहां गिरी थी सती की दाहिनी जांघ, पटना की हैं नगर रक्षिका

    By Pramod PandeyEdited By:
    Updated: Wed, 05 Oct 2016 10:34 PM (IST)

    पटना की नगररक्षिका के रूप में समादृत बड़ी पटनदेवी देश के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां देवी की दाहिनी जंघा कटकर गिरी थी।

    पटना [जेएनएन]। भारतवर्ष के 51 शक्तिपीठों में शुमार और राजधानी पटना की नगर रक्षिका के

    रूप में बड़ी तथा छोटी पटनदेवी की पूजा बहुत पहले से होती आ रही है। मान्यता है कि श्रद्धा व भक्ति

    से आराधना करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। पटना के पश्चिम दिशा में बड़ी पटनादेवी व पूर्व में छोटी पटनदेवी का मंदिर है।

    आम धारणा है कि अष्टïमी की रात्रि 12 बजे महानिशा पूजा के बाद पट खुलते ही 2.30 बजे आरती होने के बाद भगवती के दर्शन करने पर मांगी गई मनोकामना भगवती पूर्ण करती हैं। पुजारी बताते हैं पुरानी मान्यता है कि नगर रक्षिका नगर भ्रमण भी करती हैं। इसलिए रात में मंदिर के आसपास चहलपहल कम हो जाती है।

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    विभूति समाहित हो जाती है हवन कुण्ड में

    यहां के हवन कुंड में लाखों भक्त हवन करते हैं। यह भी एक आश्चर्य है कि हवन

    कुंड से उठने वाली ज्वाला शांत होने के बाद विभूति (भभूत) हवन कुंड में ही समाहित हो

    जाती है। यहां तीन देवियों के दर्शन एक साथ होते हैं।

    कोने में व्योमकेश भैरव के अलावे बाहर में साईंबाबा, पार्वती, गणेश,

    राधा-कृष्ण, शिव तथा महावीर की मूर्तियां जीवंत है। मंदिर के बीच शेर दर्शनीय

    है। मंदिर में सुरक्षा के दृष्टिकोण से सीसी टीवी कैमरे भी लगे हैं।

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    बलि चढ़ाने की परंपरा आज भी

    प्रारंभ से ही बड़ी पटनदेवी में बलि चढ़ाने की परम्परा रही है जो आज भी विद्यमान हालांकि धीरे-घीरे स्वरूप बदल रहा है। नवरात्र में अष्टïमी व नवमी को सूर्योदय के बाद बलि दी जाती है। यहां महाकाली, महासरस्वती,

    महालक्ष्मी की प्रतिमाएं एक साथ पूजनीय है।

    यहां देवी का रूप सर्वानंदकरी

    मंदिर के महंत विजय शंकर गिरि बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष प्राचीन इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह उसी जगह निर्मित है जहां सती की दाहिनी जंघा कटकर गिरी थी। यहां भगवती का रूप सर्वानंदकरी तथा भैरव

    व्योमकेश हैं।

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    वैदिक व तांत्रिक विधि से होती है पूजा

    यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व से वैदिक पूजा सार्वजनिक होती आ रही है जबकि तांत्रिक

    पूजा विधान से भगवती का पट बंद कर आठ-दस मिनट होती है।

    ऐसे पहुंचें बड़ी पटन देवी शक्तिपीठ

    राजधानी में होने से इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आवागमन के साधनों की कमी नहीं। गांधी मैदान से होकर अशोक राजपथ के रास्ते गायघाट स्थित गांधी सेतु और इससे पूर्व चलने पर भद्रघाट है। इससे करीब पांच सौ मीटर चलने पर ही दाहिने बड़ी पटनदेवी का मुख्य प्रवेश द्वार है। इस द्वार से दक्षिण में जाने

    वाले रास्ते पर चलते जाएं। सीधे मां के दरबार तक आप पहुंच जाएंगे।

    यह सड़क नए सिरे से तोड़ कर बनाई गई है। गायघाट डंका इमली से होकर मीनाबाजार के रास्ते भी

    यहां पहुंचा जा सकता है। पूरब से आने वाले श्रद्धालु बेगलवरगंज के समीप वाले

    मार्ग से भी बड़ी पटन देवी शक्तिपीठ पहुंच सकते हैं।