Move to Jagran APP

तंत्र साधना के लिए विख्यात है महिषी का उग्रतारा मंदिर

बिहार के प्रमुख शक्तिस्थलों में सहरसा जिले के महिषी का उग्रतारा स्थान प्रमुख है। मान्यता है कि भगवती सती का यहां बायां नेत्र गिरा था। यह जगह तंत्रसाधना के लिए विख्यात है।

By Pramod PandeyEdited By: Published: Tue, 04 Oct 2016 01:59 PM (IST)Updated: Tue, 04 Oct 2016 10:44 PM (IST)

सहरसा [जेएनएन ]। बिहार के प्रसिद्ध शक्तिस्थलों में सहरसा जिले के महिषी में अवस्थित उग्रतारा स्थान प्रमुख है। मंडन मिश्र की पत्नी विदुषी भारती से आदिशंकराचार्य का शास्त्रार्थ यहीं हुआ था जिसमें शंकराचार्य को पराजित होना पड़ा था। सहरसा से 16 किलोमीटर दूर इस शक्ति स्थल पर सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्र के दिनों में और प्रति सप्ताह मंगलवार को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।

loksabha election banner

शक्ति पुराण के अनुसार माहामाया सती के मृत शरीर को लेकर शिव पागलों की तरह ब्रह्मांड में घूम रहे थे। इससे होने वाले प्रलय की आशंका को दखते हुए विष्णु द्वारा माहामाया के मृत शरीर को अपने सुदर्शन से 52 भागों में विभक्त कर दिया गया था। सती के शरीर का जो हिस्सा धरातल पर जहां गिरा उसे सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्धि मिली। महिषी उग्रतारा स्थान के संबंध में ऐसी मान्यता है कि सती का बायां नेत्र भाग यहां गिरा था।

मान्यता यह भी है कि ऋषि वशिष्ठ ने उग्रतप की बदौलत भगवती को प्रसन्न किया। उनके प्रथम साधक की इस कठिन साधना के कारण ही भगवती वशिष्ठ अाराधिता उग्रतारा के नाम से जानी जाती हैं। उग्रतारा नाम के पीछे दूसरी मान्यता है कि माता अपने भक्तों के उग्र से उग्र व्याधियों का नाश करने वाली है। जिस कारण भक्तों द्वारा इनकों उग्रतारा का नाम दिया गया।

पढ़ेंः औरंगजेब भी नहीं तुड़वा सका था यह मंदिर, रक्तहीन बलि विशेषता

वी अपने तीन मुख्य स्वरूपों में विद्यमान

महिषी में भगवती तीनों स्वरूप उग्रतारा, नील सरस्वती एवं एकजटा रूप में विद्यमान है। ऐसी मान्यता है कि बिना उग्रतारा के आदेश के तंत्र सिद्धि पूरी नहीं होती है। यही कारण है कि तंत्र साधना करने वाले लोग यहां अवश्य आते हैं। नवरात्रा में अष्टमी के दिन यहां साधकों की भीड़ लगती है।

सहरसा से सड़क मार्ग से जुड़ा है मंदिर

यहां पहुंचने के इच्छुक लोग सहरसा से आटो या फिर बस से यहां पहुंचते हैं। बाकी तीन ओर से यह स्थान तटबंध से घिरा है। एक ओर से ही पहुंचने का रास्ता होने के बावजूद यहां पहुंचना कठिन नहीं है। यहां बिहार के अतिरिक्त नेपाल के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। बंगाल के साधक भी यहां वर्षभर पहुंचते रहते हैं।

मंदिर का निर्माण सन 1735 में रानी पद्मावती ने कराया था। इसकी मरम्मत अक्सर कराई जाती है। यह स्थल पर्यटन विभाग के मानचित्र पर है।

पढ़ेंः तीन सौ साल से जाग्रत पीठ के रूप में मान्य है थावे का भवानी मंदिर

वैदिक विधि से होती है पूजा

देवी की पूजा आम दिनों में वैदिक विधि से की जाती है। लेकिन नवरात्र में तंत्रोक्त विधि से भी पूजा होती है। नवरात्र में मां की आरती दोनों समय की जाती है। इसमें मौजूद श्रद्धालु तन्मयता से पूजा करते हैं और आरती में शामिल होने के अवसर पर सौभाग्य मानते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.