जल स्त्रोत के अभाव में सूख रही कई नदियां
विजय कुमार गिरि, रक्सौल : भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र के रक्सौल अनुमंडल के घोड़ासहन नहर पथ के आदापुर धबधबवा गांव के समीप कल तक पसाह व मरधर नदी के पानी से किसान खेतों की सिंचाई करते थे। आज उक्त नदियां जल स्त्रोत के अभाव में सूखकर खेत में तब्दील हो गई हैं। यह नदियां अब स्वयं के लिए पानी मांग रही है। पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के बारा व पर्सा जिला के रास्ते पहाड़ से निकलने वाली इन नदियों में पानी ही नहीं है। पसाह नदी ने तो अपनी धारा ही बदल दी है, मरधर का जल स्त्रोत ही समाप्त हो गया है। इन नदियों के हाल से प्रशासन बिलकुल बेखबर है, जिससे इस क्षेत्र के किसानों के समक्ष पटवन की समस्या है। वहीं पशु-पक्षियों को भी पानी नहीं मिल रहा है। सीमाई आदापुर प्रखंड में इन नदियों का महत्व खेतिहर किसानों के लिए काफी है। इन नदियों से कोरइया, पश्चिम टोला, मूर्तिया, धबधबवा आदि एक दर्जन से अधिक गांव के किसान पंप सेट लगाकर पटवन करते थे। इस क्षेत्र में खासकर सब्जी की खेती होती है। इससे किसान काफी खुशहाल थे, परंतु नदी का स्त्रोत समाप्त होते ही किसानों के आय के स्त्रोत पर भी काफी असर पड़ा है।
नेपाल से निकलती हैं नदियां
इन नदियों का उद्गम स्थल पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के रास्ते हिमालय है, जिसका स्वच्छ जल भारत व नेपाल के सीमाई क्षेत्र के किसानों के लिए अमृत था। उक्त अमृत रूपी जल स्त्रोत क्यों रूक गया, इसकी खोजबीन के लिए रक्सौल के संबंधित विभाग के कर्मी ने कभी पहल नहीं की। जबकि नदी के पानी का भरपूर उपयोग नेपाल कर रहा है। इन नदियों में पहाड़ी क्षेत्र में बांध लगाकर सिंचाई का कार्य नेपाल के किसान करते हैं। पानी अधिक होने पर अचानक पानी छोड़ देते है, जिससे रक्सौल के विभिन्न गांवों में तबाही मच जाती है। इसका प्रभाव रक्सौल, रामगढ़वा, आदापुर, बंजरिया, सुगौली, मोतिहारी प्रखंड के सैकड़ों गांवों पर पड़ता है।
नदियों की देखरेख का अभाव
नेपाल से निकलने वाली पसाह नदी देखरेख के अभाव में अपनी धारा बदल कर आदापुर के श्यामपुर के समीप बहाव कर रही है, जिससे श्यामपुर के आसपास के किसानों की खेतिहर भूमि नदी की धारा में चली गई। वहीं कई गांवों के लोग इसकी तबाही की मार से मारे जा रहे है, परंतु किसानों को कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। आदापुर कोरइया के समीप घोड़ासहन तटबंध करीब एक दशक पूर्व क्षतिग्रस्त हुआ था। इसके बाद नदी के उपर नहर पुल में सिल्ट, मिट्टी आदि जमा हो गया, जिससे नदी में अप्रत्यक्ष रूप से बांध लग गया है।
समस्या से अनभिज्ञ हैं अधिकारी
भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र काफी संवेदनशील है। पूरा विश्व जल संरक्षण को लेकर बेचैन है, परंतु जल संसाधन विभाग के अधिकारी इससे बिलकुल अनभिज्ञ है। इन्हें केवल सरकारी राशि का आवंटन व अभिकर्ता से सुविधा शुल्क वसूल करने से मतलब है। मजे की बात तो ये है कि इनसे संपर्क कर अगर इनका नाम आप पूछ लें, तो समझिए सामत आ गई। शीघ्र ही यह कहकर मोबाइल बंद कर देते है कि यह सरकारी मोबाइल नहीं, मेरा निजी मोबाइल है। इस संचार क्रांति के युग में कार्यालय में भी फोन नहीं है, फोन है भी, तो कनेक्शन कटा हुआ है। इस सीमाई क्षेत्र में नेपाल से निकलने वाली करीब आधा दर्जन प्रमुख नदियां हैं, जिसमें सरहद को रेखांकित करने वाली जीवनदायिनी सरिसवा नदी में प्रदूषित काला पानी का बहाव हो रहा है। इसके पानी में जहरीले रसायन है, जिससे खेत बंजर हो जाते हैं। पानी के सेवन से जीव-जंतु मर जाते हैं। इसके संपर्क में आते ही लोगों को चर्म रोग हो जाता है। वहीं अन्य नदियों के जल स्त्रोत समाप्त हो जाने व नदी की धारा बदलने से सीमाई अनुमंडल के किसानों के समक्ष खेतों की सिंचाई को लेकर सवाल खड़ा हो गया है।
'एसडीओ जितेन्द्र साह ने बताया कि इसके लिए जल संसाधन विभाग है, जो सिंचाई, नहर व नदियों के जल स्त्रोत पर निगरानी रखता है। इसमें घोड़ासहन नहर, त्रिवेणी नहर कनाल, एरिगेशन आदि कार्यालय है, इनकी अलग-अलग जिम्मेवारी सरकार ने निर्धारित की है।'
'इधर त्रिवेणी कनाल के अधिकारी दिनेश राय ने बताया कि नदियों के संबंध में मेरी कोई जिम्मेवारी नहीं। इसकी देखरेख घोड़ासहन नहर विभाग करता है। नदियों के जल स्त्रोत व सिंचाई व्यवस्था के लिए कोई राशि नहीं मिलती, ना ही सरकार को नदियों के जल स्त्रोत संबंधी कोई रिपोर्ट जाती है।'
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