जबरा ही तिलकामांझी था!
भागलपुर, कार्यालय संवाददाता : बात चली भागलपुर के स्थापना दिवस को लेकर। यह सिलसिला आगे बढ़कर तिलकामांझी तक आ पहुंचा है। भागलपुर के साथ तिलकामांझी तथा क्लीवलैंड के साथ तिलकामांझी का नाम जुड़ा है। अब तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि तिलकामांझी कौन है? साहित्यकार इसकी व्याख्या अपने अनुसार समय-समय पर करते हैं। गजेटियरों के आधार पर इतिहासकार और एसएम कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रमन सिन्हा कहते हैं कि जबरा उर्फ जौराह पहाड़िया का ही नाम तिलकामांझी था। भागलपुर गजेटियर के पृ-53 तथा संताल परगना गजेटियर के पृ-67 पर स्पष्ट लिखा है कि जबरा उर्फ जौराह एक कुख्यात डाकू था। क्लीवलैंड ने उसे हिल रेंजर्स पहाड़िया युवकों का दल बनाकर जबरा को उसका सरकार बना दिया। जबरा पहला स्थानीय निवासी था जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी ग्रहण की और वह आजीवन कंपनी का वफादार रहा। डॉ. सिन्हा ने टेलीग्राफ के 15 अगस्त 2007 में छपी रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि जौराह उर्फ जबरा की वफादारी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने 1894 में उसके सम्मान में तांबे का सिक्का चलाया था। सिक्का पर जौराह की जो तस्वीर है वह तिलकामांझी की मूर्ति से मिलती है। 2007 में ही जौराह पहाड़िया की मूर्ति का अनावरण मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने किया था। अनावरण कार्यक्रम संताल हुल 1855 के 152 वें वर्षगांठ पर किया गया था। डॉ. सिन्हा बताते हैं कि आदिम जनजाति जागृति व विकास समिति, झारखंड के अध्यक्ष कालीचरण देहरी के अनुसार पहाड़िया युवक ही तिलकामांझी था। पांच जुलाई 2009 को पाकुड़ में प्रतिमा का अनावरण हुआ जो तिलकामांझी की प्रतिमा से मिलती है। क्षेत्रीय इतिहास के जानकार राजेन्द्र प्रसाद सिंह के हवाले से डॉ. सिन्हा कहते हैं कि पहाड़िया भाषा में 'तिलका' का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आंखों वाला व्यक्ति। चूंकि वह ग्राम प्रधान था और पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को मांझी कहकर पुकारने की प्रथा है। इसलिए हिल रेंजर्स का सरदार जौराह उर्फ जबरा मांझी तिलकामांझी के नाम से विख्यात हो गया। जबरा के नाम से ही जबारीपुर मुहल्ला आज भी है तथा उसके उपनाम तिलकामांझी नामक मुहल्ला भी है। डॉ. सिन्हा का मानना है कि ऐतिहासिक तथ्यों की जांच-पड़ताल किए बिना 12 जुलाई 1960 को स्थापित भागलपुर विश्वविद्यालय को बिहार सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसका नाम तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय कर दिया गया। डॉ. सिन्हा के मुताबिक ईस्ट इंडिया कंपनी के सेवक के नाम पर विश्वविद्यालय का नाम करने के बदले इसका नाम या तो किसी स्वतंत्रता सेनानी या विक्रमशिला के नाम पर होता तो भागलपुर को गर्व भी होता।
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