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    'एक बेशर्म देश', ऑक्सफोर्ड डिबेट में भारतीय छात्र ने पाकिस्तान को जमकर लगाई लताड़ 

    Updated: Wed, 24 Dec 2025 04:55 PM (IST)

    मुंबई में जन्मे विरांश भानुशाली ने ऑक्सफोर्ड यूनियन में भारत-पाकिस्तान संबंधों पर बहस में भाग लिया। उन्होंने पाकिस्तान पर आतंकवाद को पनाह देने का आरोप ...और पढ़ें

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    ऑक्सफोर्ड डिबेट में भारतीय छात्र ने पाकिस्तान को सुनाई खरी-खरी।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मुंबई में जन्मे और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में लॉ के स्टूडेंट विरांश भानुशाली ने हाल ही में ब्रिटेन के मशहूर ऑक्सफोर्ड यूनियन में भारत-पाकिस्तान संबंधों पर एक हाई-प्रोफाइल डिबेट में हिस्सा लिया और अपने दमदार भाषण में पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई।

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    डिबेट का विषय था, "पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति सुरक्षा नीति के लिए एक लोकप्रिय दिखावा है।" इस प्रस्ताव के खिलाफ तर्क देते हुए, भानुशाली ने मजबूती से कहा कि इस्लामाबाद के प्रति नई दिल्ली का नजरिया राजनीतिक लोकलुभावनवाद के बजाय असली राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं पर आधारित है।

    पाकिस्तान के तर्कों का दिया सीधा जवाब

    भारतीय छात्र ने पाकिस्तानी ऑक्सफोर्ड यूनियन के प्रेसिडेंट मूसा हरराज के तर्कों का सीधा जवाब दिया, जिन्होंने दावा किया था कि भारत की पाकिस्तान नीतियां चुनावी फायदे के लिए बनाई जाती हैं।

    इसके जवाब में भानुशाली ने भारत पर हुए कई आतंकी हमलों के बाद भारत की प्रतिक्रियाओं को गिनाया- 26/11 मुंबई हमलों के बाद कूटनीतिक संयम से लेकर पहलगाम आतंकी हमले के बाद सोची-समझी सैन्य कार्रवाई तक।

    उन्होंने कहा कि ये हमले चुनावी चक्रों के साथ मेल नहीं खाते थे, जिससे लोकलुभावनवाद का तर्क कमजोर होता है। उन्होंने पठानकोट, उरी और पुलवामा सहित अन्य बड़े हमलों का जिक्र किया और जोर देकर कहा कि जो देश आतंकी नेटवर्क को पनाह देता है, वह नैतिक श्रेष्ठता का दावा नहीं कर सकता।

    'पाकिस्तान को नहीं है शर्म'

    भानुशाली ने पठानकोट, उरी और पुलवामा जैसे दूसरे बड़े हमलों का जिक्र करते हुए कहा, "हमने यह मुश्किल तरीके से सीखा है कि आप ऐसे राज्य को शर्मिंदा नहीं कर सकते जिसे कोई शर्म नहीं है।" उन्होंने कहा कि जो देश आतंकी नेटवर्क को पनाह देता है, वह नैतिक रूप से खुद को बेहतर होने का दावा नहीं कर सकता।

    उन्होंने कहा, "मैं खुशी-खुशी यह मानूंगा कि कभी-कभी एक पाकिस्तानी की नाकामी को ठीक करने के लिए एक भारतीय की जरूरत पड़ती है।" यह बहस 27 नवंबर को हुई, जो मुंबई आतंकी हमले की बरसी के एक दिन बाद था।

    मुंबई हमलों को लेकर बताया अपना निजी अनुभव

    भानुशाली ने 26/11 मुंबई हमले की अपनी पर्सनल कहानी सुनाकर अपना भाषण शुरू किया। उन्होंने बताया कि आतंकवादियों के टारगेट में से एक छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) भी था, जहां से उनकी चाची लगभग हर शाम गुजरती थीं।

    उन्होंने कहा, "इत्तेफाक से या किस्मत से, उस रात उसने घर जाने के लिए दूसरी ट्रेन ली और उन 166 लोगों की किस्मत से बाल-बाल बच गई जो नहीं बच पाए। दूसरा टारगेट ताज महल पैलेस होटल था, जहां मेरे सबसे अच्छे दोस्त के पिता, जो नेशनल सिक्योरिटी गार्ड में मेजर थे, जलती हुई आग में रस्सी के सहारे उतरने वाले पहले कमांडो में से एक थे।"

    उन्होंने याद किया, "जब मेरा शहर जल रहा था, तो मैं टेलीविजन से चिपका हुआ था। मुझे फोन पर अपनी मां की आवाज में डर और अपने पिता के कसे हुए जबड़े में तनाव याद है। तीन रातों तक मुंबई नहीं सोया और न ही मैं सोया।"

    भानुशाली ने आगे बताया कि उनके घर से सिर्फ 200 मीटर दूर एक रेलवे स्टेशन पर 1993 के सीरियल ब्लास्ट में बमबारी हुई थी, जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उन्होंने कहा, "मैं इन त्रासदियों की छाया में पला-बढ़ा हूं... इसलिए जब कोई कहता है कि पाकिस्तान के प्रति भारत का कड़ा रुख सिर्फ सुरक्षा नीति के नाम पर लोकलुभावनवाद है, तो आप समझ सकते हैं कि मुझे गुस्सा क्यों आता है।"

    'आप लोगों को रोटी तक नहीं दे सकते'

    भारतीय छात्र ने भारत के कामों की तुलना पाकिस्तान के कामों से भी की। उन्होंने कहा, "लेकिन अगर आप सुरक्षा के नाम पर असली लोकलुभावन राजनीति देखना चाहते हैं, तो रैडक्लिफ लाइन के उस पार देखिए। जब भारत युद्ध लड़ता है तो हम पायलटों से जानकारी लेते हैं। पाकिस्तान में, वे कोरस को ऑटोट्यून करते हैं। आप अपने लोगों को रोटी नहीं दे सकते, इसलिए आप उन्हें सर्कस दिखाते हैं। यही वह जादू है जिससे युद्ध के डर का इस्तेमाल करके लोगों की गरीबी को निजी ताकत में बदला जाता है।"

    भानुशाली ने जोर देकर कहा कि दिल्ली युद्ध नहीं चाहता। उन्होंने कहा, "हम शांत पड़ोसी बनना चाहते हैं। हम प्याज और बिजली का व्यापार करना चाहते हैं... लेकिन जब तक खुद की रक्षा करने वाला देश आतंकवाद को विदेश नीति के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना बंद नहीं कर देता, तब तक हम तैयार रहेंगे। अगर यह लोकलुभावनवाद है, तो मैं एक लोकलुभावनवादी हूं।"

     
     
     
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