मुनीर का 'खुफिया प्लान', कैसे कठपुतली बन कर रहे गए शहबाज? भतीजे की प्रधानमंत्री कार्यालय में एंट्री
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर बिना तख्तापलट के देश पर नियंत्रण रखना चाहते हैं। उन्होंने इमरान खान को हटाकर जरदारी और शहबाज को सत्ता में बैठाया। अपने करीबियों को अहम पदों पर नियुक्त किया और भतीजे को सिविल प्रशासन में भेजा। मुनीर का लक्ष्य सेना, खुफिया एजेंसी और सिविल प्रशासन, सभी पर अपनी पकड़ मजबूत करना है। कार्यकाल बढ़ाने की मांग और तालिबान से लड़ने से इनकार के कारण सेना में असंतोष है।

मुनीर का खुफिया प्लान कैसे कठपुतली बन कर रहे गए शहबाज (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस साल जुलाई में पाकिस्तान में चर्चा थी कि सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर तख्तापलट की योजना बना रहे हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा कदम नहीं उठाया, क्योंकि उन्हें पता था कि ऐसा करने पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ जाएगा।
जनरल मुशर्रफ के समय भी जब उन्होंने नवाज शरीफ की सरकार गिराई थी, तब उन पर लोकतंत्र बहाल करने का दबाव पड़ा था। मुनीर गलती से सीख लेते हुए तय किया कि वे बिना तख्तापलट के ही देश को अपने नियंत्रण में रखेंगे।
मुनीर के लिए इमरान थे बड़ा खतरा
मुनीर ने पहले इमरान खान को सत्ता से हटवाया और जेल भेजा, क्योंकि उन्हें वही सबसे बड़ा खतरा लग रहा था। इसके बाद उन्होंने आसिफ अली जरदारी को राष्ट्रपति और शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनवाया। दोनों ही अब उनके इशारों पर काम कर रहे हैं।
इसके बाद उन्होंने अपने करीबी अफसर जनरल आसिम मिलक को ISI प्रमुख और नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर बना दिया। अब मुनीर ने अपने भतीजे कैप्टन सैयद अबू रहमान बिन कासिम को सेना से निकालकर सिविल सर्विस में भेज दिया है। उनके साथ 9 और सेना अधिकारियों को भी सिविल प्रशासन में लाया गया है।
कैसे पकड़ बना रहा है मुनीर?
इस कदम से मुनीर को सिविल और मिलिट्री दोनों पर पकड़ मिल रही है। उनके भतीजे को प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजा गया है ताकि शहबाज शरीफ की हर गतिविधि रक नजर रखी जा सके। खबर है कि मुनीर अब अपने भरोसेमंद लोगों को गृह मंत्रालय, हाई कमीशन और दूतावासों में भी भेजना चाहते हैं।
खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि उनका भतीजा भविष्य में किसी बड़े दूतावास, जैसे अमेरिका या भारत में भेजा जा सकता है, ताकि विदेशों में भी खुफिया तंत्र पर उनका नियंत्रण रहे।
पाक सेना तालिबान से लड़ने से कर रहे इनकार
सूत्रों के मुताबिक, मुनीर के भीतर असुरक्षा की भावना गहरी है। उन्होंने खुद को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करवाया, जबकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी थी। TTP, BLA और अफगान तालिबान से लगातार हो रही नाकामियों से भी सेना में असंतोष बढ़ा है। कई सैनिक खासकर खैबर पख्तूनख्वा में तालिबान से लड़ने से इनकार कर रहे हैं।
मुनीर और सरकार के बीच तनाव भी इसी कारण बढ़ा है क्योंकि वे अपना कार्यकाल 2030 तक बढ़वाना चाहते हैं। सरकार ने कहा है कि वे 2027 तक सेना प्रमुख रह सकते हैं, लेकिन मुनीर इससे आगे की मांग पर अड़े हैं। इससे कई वरिष्ठ अधिकारी नाराज हैं, जो अगला आर्मी चीफ बनने की उम्मीद कर रहे थे।
मुनीर का 'खुफिया प्लान'
मुनीर ने कुछ कोर कमांडरों को भी बदला है ताकि कोई उन्हें चुनौती न दे सके। इन सभी कदमों से साफ है कि आसिम मुनीर खुद को पाकिस्तान की सत्ता के हर हिस्से में स्थापित करना चाहते हैं, चाहे वो सेना हो या खुफिया एजेंसी हो या फिर सिविल प्रशासन।

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