'हमें लोकतंत्र चाहिए, मजहबी मुल्क नहीं, न ही झूठे प्रोपेगेंडा पर आधारित शासन'
बांग्लादेशी पत्रकार मुक्तदिर राशिद ने आगामी चुनावों से पहले हिंसा पर चिंता जताई। उन्होंने मजहबी मुल्क के बजाय लोकतंत्र और झूठे प्रोपेगेंडा-आधारित शासन ...और पढ़ें

'हमें लोकतंत्र चाहिए' (फोटो-रॉयटर्स)
डिजिटल डेस्क। बांग्लादेश में अगले साल फरवरी में होने वाले चुनाव से पहले व्यापक स्तर पर जारी हिंसा पर चिंता जताते हुए बांग्लादेशी पत्रकार मुक्तदिर राशिद ने कहा कि हमें मजहबी मुल्क नहीं, बल्कि लोकतंत्र चाहिए और न ही हमें झूठे प्रोपेगेंडा पर आधारित शासन की दरकार है। उन्होंने लोगों की सहानुभूति का लाभ उठाने के लिए भारत विरोधी छात्र नेता उस्मान हादी की हत्या का राजनीतिकरण किए जाने की भी निंदा की।
एक साक्षात्कार में, राशिद ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस द्वारा निर्धारित 12 फरवरी के चुनावों की व्यवहार्यता और जारी हिंसा के बारे में चिंताओं का जवाब देते हुए लोकतंत्र और निष्पक्ष शासन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने उम्मीद जताई कि देश निष्पक्ष रूप से निर्वाचित नेतृत्व वाला एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनकर उभरेगा, जो झूठे प्रोपेगेंडा और धार्मिक चरमपंथ से मुक्त होगा। हम चाहते हैं कि यह देश एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष रूप से निर्वाचित देश हो और नेतृत्व इसे मजहबी मुल्क बनाने के बजाय इस तरह से कार्य करे कि लोकतंत्र कायम रहे।
राशिद ने की जमात ए इस्लामी की आलोचना
राशिद ने छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या पर लोगों की सहानुभूति का फायदा उठाने के लिए राजनीतिक दलों, विशेष रूप से जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र संगठन 'छात्र शिबिर' की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से राजनीतिक नेता एक ऐसे व्यक्ति की हत्या को लेकर राजनीति कर रहे हैं जो हमेशा ही न्याय की लड़ाई लड़ रहा था।
राशिद ने यह भी कहा कि अवामी लीग पर लगे प्रतिबंध के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी के सदस्य स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने अवामी लीग पर लगे प्रतिबंध को जमात-ए-इस्लामी की ओर से ''बदले की कार्रवाई'' बताया। उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि यह जमात की बदले की कार्रवाई है।
1971 के युद्ध के बाद जो कुछ हुआ, उसी के चलते जमात ने यह प्रतिबंध लगाया है। बांग्लादेश में जमात पर करीब 15 साल तक प्रतिबंध लगा रहा। हम बांग्लादेश में बदलाव चाहते हैं। हम एक नया बांग्लादेश चाहते हैं, और यह केवल चुनाव के माध्यम से ही संभव है।'

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