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    गूगल मैप से कहीं जाने की कोशिश कर रहे हैं तो हो जाएं सावधान, गलत जगह न पहुंच जांए

    By Amit SinghEdited By:
    Updated: Thu, 07 Feb 2019 10:11 AM (IST)

    धरती के भौगोलिक व चुंबकीय ध्रुवों के अंतर की गणना के आधार पर कार्य करता है जीपीएस। वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल के नए अपडेट की चल रही तैयारी। प्रत्येक पांच स ...और पढ़ें

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    गूगल मैप से कहीं जाने की कोशिश कर रहे हैं तो हो जाएं सावधान, गलत जगह न पहुंच जांए

    नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अगर आप गूगल मैप या किसी अन्य जीपीएस सेवा का नियमित इस्तेमाल करते हैं तो ये खबर आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पृथ्वी के बदलते चुंबकीय क्षेत्र की वजह से हो सकता है कि आप रास्ता भटक जाएं। सुनने में ये भले ही अपटपटा लग रहा हो, लेकिन सच है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र प्रति वर्ष 50 किमी से ज्यादा की रफ्तार से खिसक रहा है। सोमवार (4 फरवरी 2019) को वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल ने पाया कि पोल के खिसकने की मौजूदा रफ्तार लगभग 34 मील (55 किमी) प्रति वर्ष है।

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    हमारे कंपास और दिशा सूचक यंत्र सही से काम करते रहें, इसके लिए वैज्ञानिक वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल के नए अपडेट की तैयारी में जुटे हुए हैं। ये कोई पहली बार नहीं है कि पृथ्वी का चुंबकीय उत्तरी ध्रुव खिसक रहा है। ये एक नियमित प्रक्रिया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसकी रफ्तार बढ़ गई है। चुंबकीय क्षेत्र खिसकने से हमारे दिशा सूचक यंत्रों पर कोई असर न पड़े, इसके लिए वैज्ञानिक प्रत्येक पांच साल में वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल (डब्ल्यूएमएम) में नए अपडेट करते रहते हैं। वैज्ञानिकों ने अंतिम बार वर्ष 2015 में वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल में अपडेट किया था।

    अमेरिकी शटडाउन से पूरी दुनिया परेशान
    जानकारों के अनुसार जीपीएस, धरती के भौगोलिक और चुंबकीय ध्रुवों के अंतर की गणना के आधार पर काम करता है। भौगोलिक उत्तरी ध्रुव और चुंबकीय उत्तरी ध्रुव में अंतर होता है। इसलिए वक्त-वक्त पर वैज्ञानिक वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल में अपडेट करते रहते हैं। इस बार ये अपडेट 15 जनवरी 2019 को किया जाना था। अमेरिका में शटडाउन की वजह से इस अपडेट में देरी हो रही है। इसकी वजह से पूरी दुनिया के दिशा सूचक यंत्र प्रभावित हो रहे हैं।

    क्यों हो रहा तेजी से बदलाव
    वैज्ञानिकों को फिलहाल ये नहीं पता है कि चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के खिसकने की रफ्तार क्यों बढ़ गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार भौगोलिक ध्रुव अपनी जगह पर बना रहता है, वहीं चुंबकीय उत्तरी ध्रुव लगातार खिसकता रहता है। ऐसा पृथ्वी के गर्भ में होने वाली हलचलों के कारण होता है। धरती के नीचे लोहे के बहाव का भी इस पर काफी असर पड़ता है। समुद्र की धारा और धरती के नीचे पिघल रहे लोहे का भी इस पर काफी असर पड़ता है। लिहाजा वैज्ञानिक चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के तेजी से खिसकने की सही वजह का पता लगाने में जुटे हुए हैं।

    188 साल में 2300 किमी खिसका चुंबकीय क्षेत्र
    वैज्ञानिकों के अनुसार चुंबकीय क्षेत्र की माप पहली बार वर्ष 1831 में की गई थी। तब से अब तक 188 वर्ष में ये चुंबकीय क्षेत्र कनाडा से साइबेरिया की ओर 1400 मील (2300 किमी) तक खिसक चुका है। वर्ष 2000 के मुकाबले चुंबकीय उत्तरी ध्रुव के खिसकने की रफ्तार तकरीबन चार गुना हो चुकी है। वैज्ञानिकों के अनुसार अभी इसकी वजह स्पष्ट नहीं है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले वर्षों में ध्रुव के खिसकने की रफ्तार और बढ़ सकती है।

    2016 में पता चला चुंबकीय क्षेत्र तेजी से बदल रहा
    वैज्ञानिकों को वर्ष 2016 में चुंबकीय उत्तरी ध्रुव में तेजी से हो रहे बदलाव के बारे में पता चला। इससे करीब एक साल पहले ही अपने नियत समयानुसार वर्ष 2015 में वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल को अपडेट किया गया था। 2016 में तेजी से हो रहे बदलावों का पता चलने के दो साल बाद 2018 में यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन और ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे ने वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल (डब्ल्यूएमएम) में समय से पहले अपडेट की जरूरत बताई। इसके पीछे वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि डब्ल्यूएमएम में लगातार बढ़ रही त्रुटियों की वजह से नेविगेशन (दिशा सूचक) में गंभीर गलतियां हो सकती हैं। इससे दुनिया भर के समुद्री जहाज, हवाई जहाज समेत जीपीएस आधारित अन्य सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित होंगी।

    कनाडा से साइबेरिया की ओर बढ़ रहा चुंबकीय ध्रुव
    वर्ष 2009 में चुंबकीय उत्तरी ध्रुव कनाडाई आर्कटिक क्षेत्र की सीमाओं के भीतर मौजूद था। 2017 तक चुंबकीय उत्तरी ध्रुव कनाडाई आर्कटिक क्षेत्र के बाहर निकल चुका था। अब ये चुंबकीय ध्रुव तेजी से रूस स्थित साइबेरिया के बर्फीले मैदानों की ओर बढ़ रहा है। उपग्रह आधारित जीपीएस सिस्टम में चुंबकीय क्षेत्र के परिवर्तन का कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अमेरिकी सैन्य जहाज चुंबकीय ध्रुव की गणना के आधार पर ही दिशा की गणना करते हैं। अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन और अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी चुंबकीय ध्रुव का उपयोग करती है।

    चुंबकीय क्षेत्र बदलने से दुनिया पर होने वाला असर

    • चुंबकीय ध्रुवों के खिसकने से हमारे फोन के गूगल मैप, जीपीएस से लेकर जहाजों पर इस्तेमाल होने वाले कुतुबनुमा तक पर नकारात्मक असर होगा। दिशा बताने वाला हर यंत्र प्रभावित होगा, क्योंकि ऐसी सभी डिवाइस चुंबकीय ध्रुवों से खुद को को-ऑर्डिनेट करके ही दिशा या रास्ता बताती हैं।
    • चुंबकीय उत्तरी क्षेत्र में खिसकने के कारण नेविगेशन सिस्टम में त्रुटि न रहे, इसके लिए प्रत्येक पांच वर्ष में वर्ल्ड मैग्नेटिक मॉडल को अपडेट किया जाता है। रफ्तार बढ़ने की वजह से इस चार साल पर अपडेट किया जा रहा है।
    • अगर नेविगेशन सिस्टम जल्द अपडेट नहीं हो पाएंगे तो जीपीएस के बताए रास्ते भी आपको गलत मंजिल तक पहुंचा सकते हैं।
    • गूगल मैप्स से लेकर पानी के और हवाई जहाजों पर इस्तेमाल होने वाले कुतुबनुमा तक पर असर। इनके दिशा भटकने का खतरा बढ़ जाएगा।
    • अगर चुंबकीय क्षेत्र की सटीक स्थिति का आकलन नहीं कर पाए तो नेविगेशन सिस्टम फेल होने लगेंगे।
    • पृथ्वी के नीचे ढेर सारा लिक्विड आयरन है, इससे ही चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तय होती है। ग्लेशियर की बर्फ लगातार पिघलने से इस लिक्विड आयरन पर दबाव बढ़ रहा है और इसकी ढलान अनियमित हो गई है। इसी वजह से चुंबकीय ध्रुव भी खिसक रहे हैं।
    • पृथ्वी की चुंबकीय थ्योरी मशहूर दार्शनिक विलियम गिलबर्ट ने 17वीं सदी में दी थी। इसके बाद 1831 में ब्रिटिश खोजकर्ता जेम्स रॉस क्लार्क ने बताया था कि कुछ हिस्सों में चुंबकीय ध्रुव बढ़ गया है। इसके बाद नार्वे के वैज्ञानिक रोनाल्ड अमुंडसेन ने इस पर अध्ययन के दौरान पाया कि ध्रुवों की स्थिति ही बदल रही है।

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