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सिफारिश की चिट्ठीः सरदार पटेल की जगह जवाहर लाल नेहरू ऐसे बने थे पार्टी अध्यक्ष

कांग्रेस में परिवारवाद का मुद्दा सोनिया गांधी, राहुल या प्रियंका से शुरू नहीं हुआ, बल्कि जवाहर लाल नेहरू से चल रहा है। इसीलिए पटेल की जगह उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था।

By Amit SinghEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 06:08 PM (IST)Updated: Wed, 06 Feb 2019 06:23 PM (IST)
सिफारिश की चिट्ठीः सरदार पटेल की जगह जवाहर लाल नेहरू ऐसे बने थे पार्टी अध्यक्ष
सिफारिश की चिट्ठीः सरदार पटेल की जगह जवाहर लाल नेहरू ऐसे बने थे पार्टी अध्यक्ष

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। वर्ष 1998 जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। वह करीब 19 साल तक पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी पर बनी रहीं। इसके बाद वर्ष 2017 में उनके बेटे राहुल गांधी ने पार्टी की कमान संभाल ली। अब प्रियंका गांधी भी सक्रिय राजनीति में एंट्री कर महासचिव बना दी गई हैं और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सोनिया से राहुल और अब प्रियंका तक गांधी परिवार के सदस्य ने जब-जब कुर्सी संभाली विपक्ष, विशेषकर भाजपा ने परिवारवाद का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस पार्टी में परिवारवाद के मुद्दे ने कब जगह ली?

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भारतीय जनता पार्टी हमेशा ही नेहरू-गांधी परिवार पर वंशवाद की राजनीति का आरोप लगाती रही है और कहती भी है कि ये सोनिया-राहुल के जमाने से नहीं बल्कि जवाहर लाल नेहरू के जमाने से चला आ रहा है। अगर बात करें साल 1928 की तो मोतीलाल नेहरू अपने बेटे जवाहर लाल नेहरू को पार्टी का अध्यक्ष बनाना चाहते थे और इसके लिए उस समय भी मोतीलाल नेहरू ने एक सिफारिशी पत्र महात्मा गांधी के नाम लिखा था। 06 फरवरी 1931 को मोतिलाल नेहरू का लखनऊ में निधन हुआ था।

पत्र की पृष्ठभूमि
साल 1928 के जुलाई महीने में कांग्रेस पार्टी में इस बात पर बहस चल रही थी कि पार्टी की कमान किसके हाथ में सौंपी जाए। कुछ लोगों का कहना था कि यह मौका युवा नेताओं को मिलना चाहिए वहीं बाकी लोग चाहते थे कि पार्टी की बागडोर पुराने परिपक्व नेता संभालें। उस समय कांग्रेस के बड़े नेता रहे मोतीलाल नेहरू ने महात्मा गांधी को एक खास पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल सबसे उपयुक्त रहेंगे, इसके बावजूद अब समय आ गया है कि पार्टी को जवाहर जैसे युवा नेताओं को सौंप दिया जाना चाहिए। उसी साल दिसंबर में कांग्रेस ने कलकत्ता सत्र के दौरान मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष चुना गया। जवाहर लाल नेहरू को अगले साल दिसंबर, 1929 में कांग्रेस के लाहौर सत्र में अध्यक्ष पद दिया गया।

गांधी का जवाब
19 जून, 1928 को महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम से मोतीलाल नेहरू को पत्र लिखकर बताया कि सेन गुप्ता ने उन्हें पत्र लिखकर कहा है कि मुझे गुजरात प्रांत की कांग्रेस समिति में कांग्रेस अध्यक्ष के पद के लिए मोतीलाल नेहरू को वोट करने का प्रस्ताव रखना चाहिए। गांधी ने पत्र में आगे लिखा कि अभी समय नहीं आया है कि जवाहर को यह जिम्मेदारी दी जाए। और अगर आपकी अध्यक्षता वाली समिति इस संबंध में कोई पहल करती है, तो अच्छा होगा कि अध्यक्ष का ताज आप पहनें। गांधी ने यह भी लिखा कि सेन गुप्ता ने दूसरे विकल्प के तौर पर मालवीय जी का नाम सुझाया है।

मोतीलाल का दूसरा पत्र
इस पत्र के जवाब में मोतीलाल ने महात्मा गांधी को 11 जुलाई, 1928 को दोबारा पत्र लिखकर कहा कि मुझे पता है इस समय वल्लभभाई पटेल जनता के प्रधान नायक हैं और उनकी सेवाओं की सराहना करने के लिए हमें उन्हें अध्यक्ष बनाना चाहिए। फिर भी उनकी अपेक्षाओं पर खरा न उतरते हुए मुझे लगता है कि मौजूदा परिस्थितियों में जवाहर ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प होंगे। पत्र में मोतीलाल ने आगे लिखा कि हमारी पीढ़ी खत्म होती जा रही है। आजादी का यह संघर्ष आज नहीं तो कल जवाहर जैसे लोगों को ही जारी रखना होगा। इसलिए जितना जल्दी वे शुरुआत करें, उतना अच्छा होगा।

परिवारवाद बनाम योग्यता
मजबूत होते लोकतंत्र में यह विडंबना ही है कि आज भी राजनीति में कुछ परिवारों के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। देश में दर्जनों ऐसे राजनीतिक परिवार हैं, जो क्षेत्रीय राजनीति की धुरी बने हुए हैं। क्या उत्तर, क्या दक्षिण, पूरब और पश्चिम सहित पूरे देश में यह प्रवृत्ति समान रूप से दिख रही है। अच्छी बात यह है कि जागरूक होते लोग एक मौका देने के बाद योग्यता की तरफ मुड़ते दिख रहे हैं। यही इसका इलाज भी है। समस्या यह है कि यह प्रवृत्ति राजनीति ही नहीं, बल्कि कारोबार, न्यायपालिका, फिल्म और खेल सहित ज्यादातर क्षेत्रों में भी पनप रही है। हालांकि योग्यता को लगातार मिल रही मान्यता इस पर अंकुश लगा रही है।

प्रतिस्पर्धा जरूरी
परिवारवाद को सकारात्मक बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा जरूरी है। एक ऐसी प्रणाली जहां बाजार किसी के अधीन नहीं हैं, जहां नियमों का पालन होता है और जहां स्वतंत्र मीडिया सत्ता से सवाल पूछ सकता है, वहां वंशवाद कम प्रभावी होता है। पिरामिड संरचना में बाजार की सारी पूंजी चंद हाथों में सिमट कर रह जाती है। अमेरिका ने 1930 में इनके बढ़ने पर रोक लगा दी। ब्रिटेन ने 1960 में ठीक ऐसा ही किया और इजरायल भी इसी राह पर है। यह जरूरी है कि पारिवारिक घरानों की बढ़ती ताकत पर नजर रखी जाए।

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