H-1B और L-1 वीजा नियमों को सख्त करने की तैयारी में ट्रंप सरकार, किन-किन देशों पर होगा असर?
अमेरिका में H-1B और L-1 वीजा नियमों को कड़ा करने की तैयारी है। तीन अमेरिकी सीनेटरों ने वीजा नियमों की कथित कमियों को दूर करने के लिए विधेयक पेश किए हैं जिसका मकसद अमेरिकी श्रमिकों के हितों की रक्षा करना है। इन बदलावों का सबसे ज्यादा असर भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ने की आशंका है क्योंकि ये कंपनियां इन वीजा पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका में H-1B और L-1 वीजा प्रोग्राम पर सख्ती की तैयारी तेज हो गई है। तीन अमेरिकी सीनेटरों ने इन वीजा नियमों में खामियों को दूर करने के लिए दो अलग-अलग विधेयक पेश किए हैं।
इन बदलावों का कथित मकसद अमेरिकी श्रमिकों के हितों की रक्षा करना और विदेशी श्रमिकों के दुरुपयोग को रोकना है। खास तौर पर भारतीय आईटी कंपनियों पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है, जो इन वीजा पर बहुत हद तक निर्भर हैं।
दो सीनेटर ने विधेयक किया पेश
सीनेट ज्यूडिशियरी कमेटी के शीर्ष रिपब्लिकन सीनेटर चक ग्रासली (आयोवा) और डेमोक्रेट सीनेटर डिक डर्बिन (इलिनोइस) ने एक विधेयक पेश किया है। यह विधेयक न्यूनतम वेतन और भर्ती मानकों को बढ़ाने, नौकरी के लिए सार्वजनिक विज्ञापन अनिवार्य करने और वीजा पात्रता को और सख्त करने पर जोर देता है।
ग्रासली ने कहा कि H-1B और L-1 वीजा का मकसद कंपनियों को उन प्रतिभाओं को लाने की इजाजत देना था, जो अमेरिका में उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन कई नियोक्ता इसका दुरुपयोग कर सस्ते विदेशी श्रमिकों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
NEW Sen Durbin & I just reintrod our bipartisan bill 2 reduce fraud/abuse in H1B & L1 visa programs + provide protections for American&foreign workers We hv been pushing reforms since 2007 Our legislation is needed now more than ever
— Chuck Grassley (@ChuckGrassley) September 29, 2025
अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा के लिए उठाया गया कदम?
डर्बिन ने बताया कि कई बड़ी कंपनियां हजारों अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकालकर कम वेतन और खराब परिस्थितियों में विदेशी श्रमिकों के लिए वीजा याचिकाएं दाखिल करती हैं।
उनका कहना है कि यह अमेरिकी श्रमिकों के साथ अन्याय है और टूटी हुई आव्रजन प्रणाली को ठीक करने की जरूरत है। यह विधेयक 2007 में प्रस्तावित एक कानून से प्रेरित है, जिसे सीनेटर टॉमी ट्यूबरविल (अलाबामा), रिचर्ड ब्लूमेंथल (कनेक्टिकट) और स्वतंत्र सीनेटर बर्नी सैंडर्स (वरमॉन्ट) का समर्थन प्राप्त था।
दूसरी ओर, रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कॉटन (अर्कांसस) ने एक अलग विधेयक पेश किया है। यह विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा असीमित विदेशी श्रमिकों की भर्ती पर रोक लगाने पर केंद्रित है। कॉटन का कहना है कि विश्वविद्यालय इन वीजा का दुरुपयोग कर "वोक और अमेरिका-विरोधी" प्रोफेसरों को ला रहे हैं, जिसे रोका जाना चाहिए।
H-1B में बड़ा बदलाव: लॉटरी सिस्टम खत्म, वेतन आधारित चयन
H-1B वीजा का इस्तेमाल मुख्य रूप से भारत और चीन से कुशल श्रमिकों को लाने के लिए होता है।राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने पिछले महीने इस वीजा के लिए आवेदन शुल्क को मौजूदा 215 डॉलर से बढ़ाकर 100,000 डॉलर कर दिया है।
इसके साथ ही, मौजूदा लॉटरी सिस्टम को खत्म कर वेतन-आधारित चयन प्रक्रिया लागू करने का प्रस्ताव है। इसके तहत सबसे ज्यादा वेतन (1,62,528 डॉलर सालाना) पाने वाले श्रमिकों को चार "लॉटरी टिकट" मिलेंगे, जबकि निचले स्तर के श्रमिकों को कम।
भारत के लिए यह बदलाव चिंताजनक है, क्योंकि अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा के आंकड़ों के अनुसार, 71 फीसदी H-1B वीजा भारतीयों को मिलते हैं।
टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी भारतीय आईटी कंपनियां इस पर बहुत निर्भर हैं। नए नियमों से इन कंपनियों को अरबों का नुकसान हो सकता है और भारत में नौकरियां वापस लाने या भर्ती कम करने की नौबत आ सकती है।
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