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अमे‍रिका और इजरायल ने आखिर क्‍यों तोड़ा यूनेस्‍को से वर्षों पुराना नाता, ये जानना जरूरी

लंबी नाराजगी के बाद आखिरकार इजरायल और अमेरिका यूनेस्‍को से बाहर हो गए हैं। इजरायल यूनेस्‍को की स्‍थापना के साथ इसका सदस्‍य बना था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 03 Jan 2019 03:38 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jan 2019 04:04 PM (IST)
अमे‍रिका और इजरायल ने आखिर क्‍यों तोड़ा यूनेस्‍को से वर्षों पुराना नाता, ये जानना जरूरी
अमे‍रिका और इजरायल ने आखिर क्‍यों तोड़ा यूनेस्‍को से वर्षों पुराना नाता, ये जानना जरूरी

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। नए साल की शुरुआत के साथ ही वैश्विक मंच पर एक बड़ी घटना का पटाक्षेप हो गया। ऐसा इसलिए क्‍योंकि एक जनवरी 2019 से अमेरिका और इजरायल संयुक्त राष्ट्र के शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति संगठन, यूनेस्को से बाहर निकल गए हैं। हालांकि इससे बाहर निकलने का ऐलान 2017 में किया जा चुका था, लेकिन 31 दिसंबर को उनका नोटिस पीरियड भी खत्‍म गया। अमेरिका ने इससे बाहर होने से पहले यूनेस्‍को पर इजरायल से भेदभाव करने का आरोप लगाया था। अमेरिका का कहना था कि यूनेस्को सोची समझी रणनीति के तहत इजरायल के खिलाफ भेदभाव वाला रवैया अपनाए हुए है। अमेरिका का आरोप ये भी था कि यूनेस्‍को का फायदा कुछ लोग और देश अपने पक्ष में करने की सुनियोजित साजिश कर रहे हैं।

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1949 में यूनेस्को में शामिल हुआ था इजरायल 
आपको बता दें कि यूनेस्‍को की स्‍थापना के करीब एक वर्ष बार 1949 में इजरायल यूनेस्को में शामिल हुआ था। हालांकि इजरायल के इस वैश्विक संस्‍था को छोड़ने का असर पहले से घोषित विश्व धरोहरों पर नहीं पड़ेगा। इनका संरक्षण स्थानीय प्रशासन करता है। दुनिया भर में यूनेस्को को विश्व ऐतिहासिक धरोहर कार्यक्रम के लिए जाना जाता है। इसका अहम मकसद सांस्कृतिक इलाकों और वहां की संस्कृति को सुरक्षित रखना है। इसके अलावा प्रेस की आजादी व महिलाओं को शिक्षित करने को बढ़ावा देने का काम यूनेस्‍को के तहत किया जाता है। आपको यहां पर बता दें कि वर्तमान में इजरायल में करीब नौ वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स हैं। इनमें हैफा का बहाई गार्डन, मृत सागर के पास मसादा का बाइबलकालीन इलाका और तेल अवीव की व्हाइट सिटी का नाम शामिल है। वहीं पूर्वी येरुशलम की ओल्ड सिटी इसमें शामिल नहीं है।

पहले भी यूनेस्‍को से बाहर गया है अमेरिका 
यूनेस्को ने फलस्तीनी इलाके में तीन जगहों को विश्व धरोहरों में शामिल किया है। हालांकि यह पहला मौका नहीं था कि जब अमेरिका इस संस्‍था से बाहर निकला हो। इससे पहले 1984 में वह इससे बाहर आया था। तब अमेरिकी राष्‍ट्रपति रोनाल्‍ड रेगन ने इससे बाहर होने का फैसला लिया था। इस फैसले के 19 साल बाद 2003 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश के नेतृत्व में अमेरिका फिर यूनेस्को को सदस्य बना।

यूनेस्‍को को राशि देना किया था बंद 
2011 में यूनेस्को ने फलस्तीन को पूर्ण सदस्य के तौर पर मान्यता दी थी जिससे नाराज होकर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने यूनेस्को को दी जाने वार्षिक राशि बंद कर दी थी। आपको बता दें कि यूनेस्को के कुल बजट में अमेरिका की हिस्सेदारी 22 फीसदी थी। इसके बाद इजरायल ने भी यूनेस्को को पैसा देना बंद कर दिया था।

ऐसे खराब हुए यूनेस्‍को से रिश्‍ते 
2016 में यूनेस्को के साथ इन दोनों देशों के रिश्ते और खराब हो गए। उस वक्त यूनेस्को ने एक प्रस्ताव पास किया था। इसमें कहा गया था कि वह येरुशलम को यहूदी धर्म से जुड़ा नहीं मानता है। यूनेस्‍को ने इस जगह को हरम अल-शरीफ (अरबी नाम) के नाम से स्वीकार किया था। इतना ही नहीं प्रस्‍ताव में यहा तक कहा गया कि इजरायल ने इस इलाके पर जबरन कब्‍जा किया हुआ है। प्रस्‍ताव में इजरायल द्वारा इस इलाके में की गई कार्रवाईयों पर सवाल उठाया था। उस वक्त प्रस्ताव की आलोचना करते हुए इजरायल के प्रधानमंत्री बेन्‍जामिन नेतन्याहू ने कहा था कि ऐसा करके यूनेस्‍को ने अपनी साख गंवा दी है।

यूनेस्‍को ने बढ़ाई नाराजगी
यूनेस्‍को से नाराजगी की वजह यहीं पर खत्‍म नहीं हुई। वर्ष 2017 में एक बार फिर यूनेस्‍को ने इजरायल को नाराज किया और पश्चिमी तट के एक मकबरे को फलस्तीनी विश्व धरोहर करार दिया। यहूदी धर्म में उस मकबरे को माचपेला कहा जाता है। माना जाता है कि इस पवित्र गुफा में यहूदी धर्म के पितामह अब्राहम को दफनाया गया था। मुसलमान इस जगह को इब्राहिमी मस्जिद कहते हैं। इस जगह पर जाने के लिए दो अलग अलग गेट हैं, एक तरफ से मस्जिद का गेट है और दूसरी तरफ से यहूदी उपासना केंद्र सिनेगॉग का है। सितंबर 2018 में इजरायल ने यूनेस्को की कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने से इन्‍कार कर दिया था।

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