ट्रंप की नई ड्रग पॉलिसी का भारत में कितना होगा असर? फार्मा बिजनेस में क्या बदल जाएगा
ट्रंप की प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की नीति का भारत के साथ व्यापार पर क्या असर होगा, इस पर विश्लेषण किया गया है। नीति में बदलाव से दवा मूल्य निर्धारण और फार ...और पढ़ें

डोनल्ड ट्रंप, अमेरिका के राष्ट्रपति। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अपने फैसलों को लेकर कापी समय से सुर्खियों में बने हुए हैं। इस बीच उन्होंने फिर एक अहम फैसला लिया है। ट्रंप ने बुधवार को प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की कीमतों में भारी कटौती की घोषणा की। माना जा रहा है कि ट्रंप के इस फैसले से भारतीय दवाओं पर भी असर पड़ने की संभावना है। इस मामले पर विशेषज्ञों ने अपनी अलग-अलग राय रखी है।
दरअसल, अपनी 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' (एमएफएन) नीति के तहत ट्रंप प्रशासन अमेरिका में दवाओं की कीमतों को अन्य किसी भी विकसित देशों में दी जाने वाली सबसे कम कीमतों के बराबर लाने की दिशा में काम कर रहा है।
ट्रंप की नई नीति से इन लोगों को बड़ी राहत
माना जा रहा है कि नई नीति से अमेरिका में मरीजों को सस्ती दवाएं मिल सकेंगी। हालांकि, इससे वैश्विक दवा बाजार में भी बड़े बदलाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्र के नाम संबोधन में ट्रंप ने क्या कहा?
गौरतलब है स्थानीय समयानुसार बुधवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि उनके प्रशासन ने दवा कंपनियों और विदेशी सरकारों से सीधी बातचीत की है। उन्होंने दावा कि टैरिफ की धमकी का इस्तेमाल करके दवाओं की कीमतों में 400 से 600 प्रतिशत तक की कटौती हासिल की गई है।
ट्रंप ने इसे अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि करार दिया है और कहा कि दवाओं की कीमतें अब इतनी कम होंगी, जितना पहले किसी ने सोचा न होगा। बताया जा रहा है कि इस नीति का पहला चरण जनवरी 2026 से लागू होने की संभावना है।
अपने संबोधन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्वास्थ्य बीमा कंपनियों की भी जमकर आलोचना की और कहा कि कम कीमतों से अमेरिकी परिवारों को हेल्थकेयर लागत में बड़ी बचत होने की संभावना है।
भारतीय दवा व्यापार पर कितना असर?
उल्लेखनीय है कि ट्रंप के इस फैसले से भारतीय फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री पर भी असर देखने को मिल सकता है। भारत अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का सप्लायर है और अमेरिकी हेल्थकेयर सप्लाई चेन का अहम हिस्सा है। भारतीय कंपनियां अमेरिका में ऑफ-पेटेंट (जेनेरिक) दवाओं का बड़ा हिस्सा सप्लाई करती हैं।
जानकारों का मानना है कि ट्रंप की ये नीति मुख्य रूप से ब्रांडेड दवाओं पर फोकस कर रही है, लेकिन अगर यह जेनेरिक पर भी लागू हुई, तो कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।
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