H-1B Visa पर ट्रंप के फैसले ने बढ़ाई अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की चिंता, पत्र लिखकर की ये मांग
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा शुल्क में वृद्धि से चिकित्सा क्षेत्र में चिंता बढ़ गई है। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन और अन्य चिकित्सा संस्थाओं ने गृह सुरक्षा विभाग से चिकित्सकों को इस शुल्क से छूट देने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि इस शुल्क से स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच कम हो जाएगी और मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ेगा।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा शुल्क को बढ़ाकर एक लाख डॉलर कर दिया है। इसे लेकर वहां चिकित्सा क्षेत्र की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसे देखते हुए अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन और 53 प्रमुख चिकित्सा संस्थाओं ने गृह सुरक्षा विभाग से चिकित्सकों को इस आवेदन शुल्क से छूट देने का आग्रह किया है।
एक अनुमान के अनुसार 2036 तक अमेरिका में 86,000 डाक्टरों की कमी होगी। समूहों ने चेतावनी दी है कि नए शुल्क से स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और भी खराब हो जाएगी और मरीजों के लिए प्रतीक्षा समय बढ़ जाएगा।
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने वीजा फीस घटाने की मांग की
डीएचएस को लिखे पत्र में समूहों ने एजेंसी से चिकित्सकों, रेजिडेंट और फेलो को प्रस्तावित शुल्क से छूट देने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया कि ये देश में मजबूत स्वास्थ्य सेवा कार्यबल को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि वह रोगियों की देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन के साथ सहयोग करने के लिए उत्सुक है।
ट्रंप के फरमान बढ़ाई अमेरिका चिकित्सा क्षेत्र की चिंता
ट्रंप ने एच-1बी वीजा के लिए 1,00,000 डालर के एकमुश्त शुल्क की घोषणा की, जो उनके इमिग्रेशन अभियान का हिस्सा है, जिसने उच्च श्रम लागत और कुशल श्रमिकों तक सीमित पहुंच के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं। एच-1बी कार्यक्रम अमेरिकी नियोक्ताओं को प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और शिक्षा जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति देता है।
अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा स्नातकों या विदेश में प्रशिक्षित डाक्टरों और अन्य पेशेवरों की भर्ती के लिए इस वीजा का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। 2021 में लगभग 64 प्रतिशत विदेशी प्रशिक्षित उन क्षेत्रों में कार्यरत थे जहां चिकित्सक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी थी। इनमें से लगभग 46 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत थे।
(समाचार एजेंसी रॉयटर्स के इनपुट के साथ)
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