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    उत्‍तराखंड की शिवनगरी में हर साल Panchkosi Yatra का आयोजन, मिलता है 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा का पुण्य

    Panchkosi Yatra प्रति वर्ष होली के 12 दिन बाद पंचकोसी वारुणी यात्रा का आयोजन होता है। 15 किमी की इस पैदल यात्रा में श्रद्धालु वरुणावत पर्वत की परिक्रमा कर पर्वत पर स्थित मंदिरों में दर्शन व पूजन कर सुख-समृद्धि के लिए मनौतियां मांगते हैं। मान्यता है कि इस एक यात्रा से 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य मिलता है।

    By Jagran NewsEdited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 22 Mar 2025 07:40 PM (IST)
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    Panchkosi Yatra: पंचकोसी यात्रा से मिलता है 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य. Jagran

    जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। Panchkosi Yatra: देवभूमि उत्तराखंड राज्य में धार्मिक स्थलों के साथ धार्मिक यात्राओं का बड़ा महत्व है। पंचकोसी वारुणी यात्रा भी एक ऐसी धार्मिक यात्रा है, जिसमें श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है।

    मान्यता है कि इस एक यात्रा से 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य मिलता है। 15 किमी की इस पैदल यात्रा में श्रद्धालु वरुणावत पर्वत की परिक्रमा कर पर्वत पर स्थित मंदिरों में दर्शन व पूजन कर सुख-समृद्धि के लिए मनौतियां मांगते हैं। इस बार यह यात्रा चार दिन बाद 27 मार्च को होगी।

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    होली के 12 दिन बाद यात्रा का आयोजन

    दरअसल, प्रति वर्ष होली के 12 दिन बाद पंचकोसी वारुणी यात्रा का आयोजन होता है। यहां वरुणावत पर्वत के कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है। पंचकोसी वारुणी यात्रा में श्रद्धालु इसी पर्वत की परिक्रमा करते हैं।

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    यात्रा का शभारंभ चुंगी बड़ेथी क्षेत्र में स्थित वरुणा व भागीरथी नदी के संगम पर स्नान के बाद वरुणेश्वर महादेव में पूजा-अर्चना के साथ होता है, इसके बाद श्रद्धालु वरुणावत पर्वत पर चढ़ना शुरु करते हैं। इसके बाद साल्ड गांव में भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर ज्ञानेश्वर, शिखरेश्वर भगवान के दर्शन करते हैं।

    उसके बाद पूर्व दिशा में चलकर कंडारखोला नामक स्थान पर पहुंचते हैं। इसे कंडार भैरव का निवास स्थान कहा गया है। इसके बाद श्रद्धालु विमलेश्वर महादेव के दर्शन कर पूर्व दिशा में ही नीचे उतरकर संग्राली गांव में पहुंचकर कंडार देवता एवं बैकुंड विष्णु भगवान के दर्शन करते हैं।

    जागरण आर्काइव।

    यहां से नीचे उतरकर श्रद्धालु असी व भागीरथी के संगम में स्नान कर वहां से लक्षेश्वर, परशुराम, अन्नपूर्णा, भैरव व अंत में श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन कर यात्रा का संपन्न करते हैं। संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डा.द्वारिका प्रसाद नौटियाल बताते हैं कि इस यात्रा से 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य फल प्राप्त होता है।

    ग्रामीण करते हैं श्रद्धालुओं की आवभगत

    पंचकोसी वारुणी यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की आवभगत वरुणावत पर्वत पर स्थित गांव के ग्रामीण करते हैं, जो कि श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद व पानी के इंतजाम से लेकर प्रत्येक श्रद्धालु की यात्रा सकुशल संपन्न कराने के लिए मिल-जुलकर कार्य करते हैं।

    श्रद्धालुओं का बसुंगा, साल्ड, ज्ञाणजा, संग्राली, पाटा एवं गंगोरी में जगह-जगह स्वागत कर खूब आवभगत की जाती है। वहीं, यात्रा मार्ग पर जगह-जगह भंडारे का भी आयोजन होता है। श्रद्धालुओं को चौलाई के लड्डू, आलू के गुटखे व चाय परोसी जाती है।

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    धार्मिक के साथ अब साहसिक यात्रा भी

    पंचकोसी यात्रा यूं तो पौराणिक काल से धार्मिक यात्रा है। लेकिन अब यह धीरे-धीरे साहसिक यात्रा के रुप में भी बदल रही है। 15 किमी पैदल दूरी तय कर वरुणावत पर्वत की खड़ी चढ़ाई चढ़ना व उतरना आसान नहीं होता है।

    इस कारण खासतौर पर युवा इस यात्रा को धार्मिक के साथ साहसिक यात्रा के रुप में भी लेकर शारीरिक रुप से खुद की फिटनेस देखने या खुद को फिट रखने के लिए भी यात्रा करते हैं। इस कारण पिछले कुछ समय से यात्रा में सर्वाधिक संख्या भी युवाओं की ही देखने को मिलती है।