Dehradun Metro के इंतजार में बीते 8 साल, 80 करोड़ खर्च होने के बाद खाली हाथ; अब फीडर लाइन पर कसरत
Dehradun Metro उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन नियो मेट्रो के संचालन के बाद प्रयोग में आने वाली फीडर लाइन (पाड टैक्सी) की दिशा में कदम बढ़ा रही है। इसकी डीपीआर तैयार करने के लिए प्री-बिड मीटिंग भी बुलाई जा चुकी है। लेकिन सवाल यह है कि जब नियो मेट्रो के ही भविष्य पर सवाल हैं तो इसकी फीडर लाइन के लिए कसरत का क्या मतलब है? जानिए पूरी खबर।

सुमन सेमवाल, देहरादून। Dehradun Metro: राजधानी दून में मेट्रो रेल का ख्वाब देखे करीब आठ साल का समय बीत चुका है, लेकिन 80 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि खर्च करने के अलावा हाथ कुछ नहीं आया। वर्तमान समय में भी दून में नियो मेट्रो के संचालन को लेकर कोई ठोस गतिविधि नजर नहीं आ रही।
बावजूद इसके उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन नियो मेट्रो के संचालन के बाद प्रयोग में आने वाली फीडर लाइन (पाड टैक्सी) की दिशा में कदम बढ़ा रही है। इसकी डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करने के लिए प्री-बिड मीटिंग भी बुलाई जा चुकी है।
बड़ा सवाल यह है कि जब नियो मेट्रो के ही भविष्य पर सवाल हैं तो इसकी फीडर लाइन के लिए कसरत का क्या मतलब है। हालांकि, उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन के कार्यवाहक प्रबंध निदेशक बृजेश मिश्रा का कहना है कि फिलहाल, मेट्रो प्रोजेक्ट पर इंतजार की स्थिति है। पूर्व में जो प्री-बिड मीटिंग बुलाई गई थी, उस पार आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई।
यह होती है फीडर लाइन
फीडर लाइन के रूप में पाड टैक्सी का संचालन क्लेमेनटाउन से बल्लीवाला, गांधी पार्क से आइटी पार्क और पंडितवाड़ी से रेलवे स्टेशन के बीच किया जाना प्रस्तावित किया गया है।
फीडर लाइन नियो मेट्रो या मेट्रो के यात्रियों को मुख्य कारीडोर तक पहुंचाने और वापस लाने में मददगार साबित होती है। ताकि मेट्रो में सफर के बाद और पहले आसपास के क्षेत्रों के निवासी इसका प्रयोग कर सकें। हालांकि, दून के मामले में यह सवाल फिर अपनी जगह कायम है कि मेट्रो के भविष्य पर मंडराते संकट के बीच इस कवायद का आशय क्या है।
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यह फीडर लाइन के प्रस्तावित रूट
- क्लेमेनटाउन से बल्लीवाला, 7.65 किमी
- गांधी पार्क से आइटी पार्क, 6.22 किमी
- पंडितवाड़ी से रेलवे स्टेशन, 4.62 किमी
- अगर नियो मेट्रो चलती, तब इन रूट तक आवागमन होता आसान
- आइएसबीटी से गांधी पार्क (5.52 किमी) और एफआरआइ (13.9 किमी)
नियो मेट्रो पर अब तक की कसरत
वर्ष 2017 में दून में मेट्रो रेल का ख्वाब देखा गया था। बदलाव और संशोधन के विभिन्न चरण के बाद वर्ष 2022 में डीपीआर को अंतिम रूप से तैयार आठ जनवरी 2022 को राज्य कैबिनेट से पास करने के बाद 12 जनवरी को केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भेज दिया गया था।
तब से अब तक मेट्रो का भविष्य फाइलों में ही कैद है और अब एक एक कर अधिकारियों का कार्यकाल भी समाप्त होता जा रहा है, लेकिन इंतजार खत्म नहीं हो रहा। इतना जरूर है कि केंद्र सरकार से निराशा हाथ लगने के बाद राज्य सरकार ने तय किया था कि मेट्रो के लिए खर्च अपने स्रोतों से वहन किया जाएगा। इसके लिए पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (पीआइबी) के समक्ष प्रस्ताव को रखने पर सहमति बनी।
अगस्त 2024 में पीआइबी के समक्ष प्रस्तुतीकरण भी दिया गया। ताकि वित्त विभाग की सभी शंका का समाधान कर दिया जाए। जिसमें कहा गया कि बजट का 40 प्रतिशत भाग सरकार वहन करेगी और 60 प्रतिशत का इंतजाम ऋण के माध्यम से किया जाएगा। उस बैठक में कंसल्टेंट कंपनी मैकेंजी कंपनी से डीपीआर का थर्ड पार्टी परीक्षण कराने का भी निर्णय लिया गया। बावजूद इसके फाइल भी वित्त से आगे नहीं सरक पा रही।
450 करोड़ रुपए से अधिक बढ़ी लागत
पूर्व में मेट्रो परियोजना की लागत 1852 करोड़ रुपए आंकी गई थी। अब साल दर साल बढ़ते इंतजार में लागत बढ़कर करीब 2303 करोड़ रुपए हो गई है। यही कारण है कि अधिकारी इतनी बड़ी परियोजना को लेकर निर्णय करने से कतरा रहे हैं।
अफसरों से खाली हो रहा कारपोरेशन, 06 की छुट्टी
- प्रबंध निदेशक, जितेंद्र गुप्ता
- महाप्रबंधक वित्त, वरेश कुमार गुप्ता
- महाप्रबंधक सिविल, सुनील त्यागी
- अपर उप महाप्रबंधक, रविंद्र कुमार सिन्हा
- उप महाप्रबंधक सिविल, अरुण भट्ट
- पीआरओ, गोपाल शर्मा (अगले सोमवार को कार्यकाल समाप्त)
ये हैं मेट्रो के दो प्रस्तावित कारीडोर और खास बिंदु
- आइएसबीटी से गांधी पार्क, लंबाई 8.5 किमी
- एफआरआइ से रायपुर, लंबाई 13.9 किमी
- कुल प्रस्तावित स्टेशन, 25
- कुल लंबाई, 22.42 किमी
नियो मेट्रो की खास बातें
केंद्र सरकार ने मेट्रो नियो परियोजना ऐसे शहरों के लिए प्रस्तावित की है, जिनकी आबादी 20 लाख तक है। इसकी लागत परंपरागत मेट्रो से प्रतिशत तक कम आती है। इसमें स्टेशन परिसर के लिए बड़ी जगह की भी जरूरत नहीं पड़ती। इसे सड़क के डिवाइडर के भाग पर एलिवेटेड कारीडोर पर चलाया जा सकता है।
सफेद हाथी साबित हो रहा कारपोरेशन
अब तक की प्रगति के मुताबिक उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन सर्जी सरकार के लिए सफेद हाथी ही साबित हुआ है। इसके कार्यालय के किराए पर ही हार माह करीब ढाई लाख रुपए वाहन किए जा रहे हैं। वहीं, कार्यालय की व्यवस्था और रखरखाव में भी मोती धनराशि खर्च की जा रही है। इसका अंदाजा कार्यालय की व्यवस्था के लिए आमंत्रित किए गए करीब 55 लाख रुपए के दो वर्षीय टेंडर को देखकर लगाया जा सकता है।
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