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गंगा-यमुना घाटी में मन को हर लेने वाला ट्रैक है हरुंता बुग्याल

उत्तरकाशी जिले की में ऐसे दर्जनों खूबसूरत बुग्याल हैं जो पर्यटकों का मन हर लेते हैं। इन्हीं में एक है समुद्रतल से 2900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हरुंता बुग्याल।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 08:32 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 08:32 AM (IST)
गंगा-यमुना घाटी में मन को हर लेने वाला ट्रैक है हरुंता बुग्याल
गंगा-यमुना घाटी में मन को हर लेने वाला ट्रैक है हरुंता बुग्याल

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। उत्तरकाशी जिले की गंगा-यमुना घाटी में ऐसे दर्जनों खूबसूरत बुग्याल (मखमली घास के मैदान) हैं, जो पर्यटकों का मन हर लेते हैं। इन्हीं में एक है समुद्रतल से 2900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हरुंता बुग्याल। इसकी सुंदरता सम्मोहित करने वाली है। हरुंता बुग्याल इंदिरावती नदी का उद्गम स्थल भी है। यह नदी उत्तरकाशी में आकर भागीरथी में विलीन हो जाती है। हरुंता जाने में अधिकतम दो घंटे का समय लगता है, लेकिन यहां पहुंचने पर आनंद की असीम अनुभूति होती है।

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जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 28 किमी दूर केदारनाथ मार्ग पर पड़ने वाले पर्यटक स्थल चौरंगी से हरुंता बुग्याल के लिए पैदल मार्ग शुरू होता है। छह किमी का यह सफर बेहद ही रोमांचकारी है। रास्ते में बांज, बुरांश, थुनेर, मोरू, राई का सघन जंगल है, जहां परिंदों का कोलाहल और वन्य जीवों की आवाजें सन्नाटे को तोड़ती हैं। इस ट्रैक पर पहला छोटा बुग्याल आधा किमी की दूरी पर पड़ता है। इसे खाल बुग्याल कहते हैं। यहां से ग्रामीणों की छानियां शुरू हो जाती हैं। यह जंगलों में बनाई गई पीढ़ियों पुरानी गौशालाएं व आवास हैं।

हरुंता बुग्याल पहुंचते ही रास्तेभर की थकान काफूर हो जाती है। हालांकि, आज भी यह बुग्याल पर्यटन मानचित्र पर नहीं आ पाया है, जबकि पुराणों तक में इसका उल्लेख है। स्कंद पुराण के केदारखंड में हरुंता बुग्याल समेत आसपास के पहाड़ी वाले क्षेत्र को इंद्रकील पर्वत नाम से पुकारा गया है। बुग्याल के मध्य जिस स्थान से इंदिरावती नदी का उद्गम होता है, वहां बाड़ागड्डी पट्टी के ग्रामीण हर साल पूजा करने जाते हैं।

हरुंता बुग्याल में बाड़ागड्डी पट्टी के अलेथ, किसनपुर, मानपुर और धनपुर गांव के ग्रामीणों की छानियां हैं। यहां पर्यटकों को आसानी से भोजन, दूध, दही, घी, मक्खन आदि उपलब्ध हो जाता है। हरुंता से एक किमी की दूरी पर एक दूसरा बुग्याल है। यहां भी किसनपुर के ग्रामीणों की छानियां हैं।

पारंपरिक हैं छानियां

पहाड़ में जंगल के बीच बनी पीढ़ियों पुरानी छानियों को गोठ भी कहते हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी ग्रामीण इन्हें सहेज कर रखते हैं। ये छानियां मिट्टी-पत्थर-लकड़ी इत्यादि से बनी होती हैं, जहां ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में रहने आते हैं। अलेथ गांव के बचन सिंह महर बताते हैं कि वो मवेशियों के साथ अप्रैल में हरुंता बुग्याल आ गए थे और अब सितंबर में ही गांव लौटेंगे। इसके अलावा आसपास के गांवों के 30 से 35 परिवार भी मवेशियों के साथ छानियों में रह रहे हैं।

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घाटी-चोटी का एहसास

हिमालय के प्रसिद्ध फोटोग्राफर और ट्रैकर 64 वर्षीय गुलाब सिंह नेगी कहते हैं कि हरुंता बुग्याल जाने वाला ट्रैक बेहद रोमांचकारी है। कहीं पर चढ़ाई, कहीं पर सीधा और कहीं पर उतराई वाला। जो घाटी में उतरने और चोटी पर चढ़ने का रोमांचक एहसास कराता है। हरुंता बुग्याल की ट्रैकिंग कर चुके शिक्षाविद् डॉ. अनिल नौटियाल कहते हैं कि यहां आप जंगल, छानियां, बुग्याल, छोटे ताल, जंगलों से निकलने वाली छोटी नदियां और हिमालय की प्रसिद्ध बंदरपूंछ चोटी का भी दीदार कर सकते हैं।

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