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यहां बरस रही प्रकृति की नेमतें; रोमांचकारी है पहुंचने का सफर, पढ़िए खबर

त्तरकाशी जिले में स्थित गंगा घाटी पर प्रकृति ने खुले हाथों नेमतें बरसाई हैं। खासकर अवाना बुग्याल (मखमली घास का मैदान) तो घाटी को प्रकृति की अनुपम देन है।

By Edited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 10:19 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2020 10:12 AM (IST)
यहां बरस रही प्रकृति की नेमतें; रोमांचकारी है पहुंचने का सफर, पढ़िए खबर

उत्तरकाशी, जेएनएन। उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगा घाटी पर प्रकृति ने खुले हाथों नेमतें बरसाई हैं। खासकर, अवाना बुग्याल (मखमली घास का मैदान) तो घाटी को प्रकृति की अनुपम देन है। इस बुग्याल के ट्रैक में घाटी से लेकर चोटी तक का सफर बेहद रोमांचकारी है। प्रचार- प्रसार की कमी के चलते यह बुग्याल अभी तक पर्यटकों की नजर से ओझल है। इस पर ग्रामीणों ने इसके प्रचार का बीड़ा उठाया है। 

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इस बुग्याल प्रकृति की गोद में रहने वाले हर्षिल घाटी के 18 ग्रामीणों का एक दल हाल ही में अवाना की तीन दिवसीय सैर कर लौटा है। दल के सदस्यों ने बुग्याल के रोमांचकारी सफर को बयां किया। उनका कहना है कि यह पर्यटकों के लिए बेहद आकर्षण का केंद्र होगा। 

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 70 किमी दूर गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर झाला कस्बा पड़ता। यह कस्बा घाटी के वीर सिंह भड़ के नाम से भी जाना जाता है। भागीरथी नदी को पार करने के बाद यहीं से अवाना ट्रैक शुरू होता है, जो नौ किमी लंबा है। 

रास्तेभर देवदार का घना जंगल और भागीरथी में मिलते दूधिया जल प्रपात अद्भुत सम्मोहन बिखरते हैं। समुद्रतल से 3233 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अवाना बुग्याल पहुंचते ही रास्ते की पूरी थकान मिट जाती है। लेकिन अवाना बुग्याल से लोग अपरिचित हैं।

प्रचार-प्रसार का ग्रामीणों ने उठाया बीड़ा 

इसी उपेक्षा को देखते हुए ग्रामीणों ने स्वयं ही अवाना के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया है। ताकि, पर्यटक प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे से वंचित न रहें। ग्रामीणों के ट्रैकिंग अभियान के आयोजक अनवीर रौतेला बताते हैं कि अवाना से पांच किमी की दूरी पर खल्याणी टॉप है, जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई 4462 मीटर है।

स्कंद पुराण में भी है उल्लेख 

खल्याणी से तीन किमी पहले एक पठार पर उभरे शिवलिंग के दर्शन होते हैं। झाला के ग्रामीण हर साल यहां पूजा के लिए जाते हैं। अवाना बुग्याल से माला बुग्याल भी जुड़ा हुआ है। स्कंद पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है। इसलिए दोनों बुग्याल की श्रृंखला को माल्यावान पर्वत भी कहते हैं। 

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वन्य जीवों का होता है दीदार 

अभियान में शामिल हर्षिल ईको पर्यटन प्रबंधन विकास समिति के अध्यक्ष माधवेंद्र रावत कहते हैं कि घाटी से लेकर चोटी तक के इस सुंदर ट्रैक पर काला भालू, लाल लोमड़ी जैसे दुर्लभ वन्य जीवों का दीदार आसानी से हो जाता है।

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