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उत्तरकाशी के सुक्की की पहचान थुनेर का घना जंगल, ग्रामीण करते हैं इनकी पूजा

सीमांत उत्तरकाशी जिले में सबसे बड़ा थुनेर (टैक्सस बकैटा) का जंगल सुक्की गांव में है। इन्हें ग्रामीण न केवल संरक्षित करते हैं बल्कि गांव की पुश्तैनी धरोहर मानकर पूजते भी हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 10:49 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 09:54 PM (IST)
उत्तरकाशी के सुक्की की पहचान थुनेर का घना जंगल, ग्रामीण करते हैं इनकी पूजा
उत्तरकाशी के सुक्की की पहचान थुनेर का घना जंगल, ग्रामीण करते हैं इनकी पूजा

उत्तरकाशी, जेएनएन। सीमांत उत्तरकाशी जिले में सबसे बड़ा थुनेर (टैक्सस बकैटा) का जंगल सुक्की गांव में है। गांव में खेतों के मध्य 2.6 हेक्टेयर क्षेत्र में थुनेर के 700 से अधिक पेड़ है। इन्हें ग्रामीण न केवल संरक्षित करते हैं, बल्कि गांव की पुश्तैनी धरोहर मानकर पूजते भी हैं। यही वजह है कि संरक्षित प्रजाति में शामिल होने के बावजूद यहां थुनेर का जंगल गुलजार है।

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सुक्की गांव जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 65 किमी दूर गंगोत्री हाइवे पर पड़ता है। हर्षिल घाटी इसी गांव से शुरू होती है। वैसे तो सुक्की सेब की पैदावार और सुक्की टॉप जैसे पर्यटन स्थल के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, इसकी पुश्तैनी पहचान थुनेर के जंगल से है। यह जंगल इस कदर घना है कि दोपहर के वक्त भी सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती। गांव के 95 वर्षीय सूरत सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने बचपन में इस जंगल को इतना ही घना देखा है। तब उनके दादा कहते थे कि यह देव जंगल है। 

बताते हैं कि इस जंगल के निकट नाग देवता का भी मंदिर है। जिस कारण लोग पीढिय़ों से इस जंगल का पूजते आ रहे हैं। सुक्की की वन पंचायत सरपंच रेशमा देवी कहती हैं कि यह जंगल ग्रामीणों के सहयोग से ही संरक्षित है। सरकारी स्तर पर इसके संरक्षण को आज तक कोई प्रयास नहीं हुए। 

ईको टूरिज्म से जोड़ने की कर रहे मांग 

सुक्की निवासी 53 वर्षीय पैरा कमांडो मोहन सिंह राणा कहते हैं कि इस जंगल का अस्तित्व कब से है, इस बारे में किसी को ठीक-ठीक जानकारी नहीं। लेकिन, इतना सभी जानते हैं कि जंगल उनकी पुश्तैनी धरोहर है। अब युवा पीढ़ी चाहती है कि जंगल को ईको टूरिज्म से जोड़ा जाए। ताकि, पर्यटकों को भी इस जंगल की विशेषताओं का पता चल सके। 

प्रमुख औषधीय वनस्पति है थुनेर 

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर महेंद्रपाल परमार कहते हैं कि थुनेर समुद्रतल से 2500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर उगने वाली औषधीय वनस्पति है। इसकी छाल से कैंसर रोधी दवा बनती है। इसके अलावा छाल और पत्तियों से अन्य औषधियां भी बनाई जाती हैं। इसकी छाल व पत्तियों से औषधीय चाय भी बनाई जाती है।

आचार्य बालकृष्ण (महामंत्री, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार) का कहना है कि थुनेर के विभिन्न अवयवों का प्रयोग श्वास, कास, कैंसर, यकृत विकार, ज्वर, आमवात जैसे रोगों में कारगर माना गया है। इसलिए विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में थुनेर के पत्तों व छाल के सत, क्वाथ, वटी व अर्क का प्रयोग किया जाता है।

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