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    उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग के कई घरों में भी पड़ी दरारें, जमींदोज होने की दहलीज पर भटवाड़ी के 150 भवन

    By Jagran NewsEdited By: Swati Singh
    Updated: Wed, 09 Aug 2023 08:47 AM (IST)

    Uttarkashi News अगस्त 2010 में भागीरथी में उफान आने से भटवाड़ी के निकट कटाव शुरू हुआ था। भूस्खलन की जद में सबसे पहले गब्बर सिंह कॉलोनी आई और फिर 10 दि ...और पढ़ें

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    उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग के कई घरों में भी पड़ी दरारें, जमींदोज होने की दहलीज पर भटवाड़ी के 150 भवन

    उत्तरकाशी, विनोद रतूड़ी। उत्तराखंड में भूस्खलन से लोगों की रातें भय के साये में बीत रही हैं। रुद्रप्रयाग जिले में भूस्खलन से ध्वस्त हुए होटल जैसे 150 से अधिक जर्जर भवन उत्तरकाशी के भटवाड़ी कस्बे में भी हैं, जो कभी भी भरभराकर गिर सकते हैं। चिंता की बात यह है कि इन भवनों में दुकानें और होटल संचालित हो रहे हैं। कई भवनों में ग्रामीण और श्रमिक निवास करते हैं। ऐसे में यहां एक भवन भी जमींदोज हुआ तो बड़ा हादसा हो सकता है।

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    बावजूद इसके प्रशासन भटवाड़ी की सुध नहीं ले रहा। इतना ही नहीं, जोन पांच में आने वाले इस क्षेत्र में भूकंप के हल्के झटके भी इन भवनों पर भारी पड़ सकते हैं। सरकारी मशीनरी की उपेक्षा और विकल्प नहीं होने के चलते जान दांव पर लगाकर दरारों वाले भवन में रहने को मजबूर हैं। गंगोत्री हाईवे पर स्थित भटवाड़ी कस्बा जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 30 किमी की दूरी पर है। यहां सीमांत तहसील भटवाड़ी का मुख्यालय और ब्लाक मुख्यालय भी है। साथ ही यह चारधाम यात्रा का प्रमुख पड़ाव भी है।

    जमींदोज होने की दहलीज पर भटवाड़ी के 150 भवन

    अगस्त 2010 में भागीरथी में उफान आने से भटवाड़ी के निकट कटाव शुरू हुआ था। भूस्खलन की जद में सबसे पहले गब्बर सिंह कॉलोनी आई और फिर 10 दिन के अंतराल में 49 घर, हाईवे का करीब 200 मीटर हिस्सा, होटल, दुकान, स्कूल भवन सहित सरकारी गेस्ट हाउस व तहसील भवन जमींदोज हो गया। हालांकि, कस्बे में 150 से अधिक भवन सुरक्षित बच गए थे।

    लेकिन, भूधंसाव निरंतर जारी रहने से कुछ समय बाद सुरक्षित बचे भवनों में भी दरारें पड़नी शुरू हो गईं। अब इन भवनों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है। ये भवन इतने जर्जर हो चुके हैं कि रहने लायक नहीं रह गए। भटवाड़ी मोटर पुल से चडेथी तक करीब एक किमी क्षेत्र में गंगोत्री हाईवे भी जर्जर है। इस क्षेत्र में हाईवे पर भूधंसाव हर वर्ष बढ़ रहा है।

    भवन जमींदोज हुआ तो पैतृक घर छोड़ा

    हर वर्ष भवनों में दरारें बढ़ रही हैं। कुछ परिवार भवन रहने लायक नहीं होने के कारण कस्बे को छोड़कर जा चुके हैं। बद्री प्रसाद, अमरीश सेमवाल, श्रीराम सेमवाल के परिवारों को भी पैतृक घर छोड़कर शहरों में शरण लेनी पड़ी है।

    रातभर नहीं आती नींद

    वर्ष 2010 के भूधंसाव में जो 49 परिवार प्रभावित हुए थे, उन्हें प्रशासन ने अस्थायी रूप से यूजेवीएनएल की कालोनी में रखा है। इनके पुनर्वास को वर्ष 2020 में 2.30 करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं, लेकिन अब तक इन परिवारों को अपने आवास नहीं मिल पाए। 70 वर्षीय पदमा देवी कहती हैं कि उनका भवन भी जर्जर हो चुका है। हर वर्षाकाल में भवन की दरारें भरी जाती हैं, लेकिन कुछ समय बाद नई दरार उभर आती है। कभी हल्का भूकंप आया या भूस्खलन हुआ तो पूरा मकान टूट जाएगा। इसी आशंका में रातभर नींद नहीं आती। वर्षाकाल में तो एक-एक पल काटना मुश्किल होता है।

    दीवारों पर दरारें, दरवाजे टेढ़े

    भटवाड़ी में कई होटल और दुकानें भूस्खलन की जद में हैं। संतोष सिंह राणा और रविंद्र राणा का होटल भी इन्हीं में शामिल है। संतोष कहते हैं, सोचा था कि चारधाम यात्रा मार्ग पर होटल अच्छा चलेगा, लेकिन पूरा होटल भूधंसाव की जद में आ गया है। हर कमरे में बड़ी-बड़ी दरारें हैं। दरवाजे-खिड़कियां टेढ़ी हो चुकी हैं। होटल के अलावा उनके पास कोई दूसरा भवन नहीं है। ऐसे में परिवार भी होटल के एक हिस्से में निवास कर रहा है।