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    फिर आबाद हुई छह साल वीरान रही गरुड़चट्टी, साल 1985-86 में यहां पीएम मोदी ने की थी साधना

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Sat, 27 Jun 2020 08:32 AM (IST)

    Kedarnath Dham केदारनाथ यात्रा के महत्वपूर्ण पैदल पड़ावों में शामिल रही गरुड़चट्टी छह वर्ष अलग-थलग रहने के बाद फिर आबाद हो गई है।

    फिर आबाद हुई छह साल वीरान रही गरुड़चट्टी, साल 1985-86 में यहां पीएम मोदी ने की थी साधना

    रुद्रप्रयाग, बृजेश भट्ट। Kedarnath Dham वर्ष 2013 की आपदा से पूर्व केदारनाथ यात्रा के महत्वपूर्ण पैदल पड़ावों में शामिल रही गरुड़चट्टी छह वर्ष अलग-थलग रहने के बाद फिर आबाद हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत हुए निर्माण कार्यों के क्रम में गरुड़चट्टी को साढ़े तीन किमी नया पैदल मार्ग तैयार कर केदारनाथ धाम से पुन: जोड़ दिया गया है। गरुड़चट्टी आपदा से पहले महत्वपूर्ण चट्टी (पड़ाव) हुआ करती थी। 

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    कुदरत के खेल वाकई निराले होते हैं, लेकिन सूक्षमता से समझने पर ही इन्हें समझा जा सकता है। वर्ष 1985-86 में नरेंद्र मोदी एक सामान्य साधक की भांति केदारनाथ क्षेत्र में साधनारत थे। केदारनाथ से साढ़े तीन किलोमीटर दूर स्थित पर्वत पर मौजूद गरुड़चट्टी में बनी साधना स्थली में तप और साधना किया करते थे। भगवान केदारनाथ का जलाभिषेक करने को वे प्रतिदिन गरुड़चट्टी से केदारनाथ तक पैदल आया करते थे। दोनों स्थानों के मध्य पैदल पथ बना हुआ था। वही पथ 16-17 जून 2013 को आई भीषण आपदा में पूरी तरह भूस्खलन की चपेट में आ गया। मंदाकिनी नदी पर केदारपुरी से गरुड़चट्टी को जोड़ने वाला पैदल पुल भी सैलाब की भेंट चढ़ गया। इसके बाद से गरुड़चट्टी पूरी तरह अलग-थलग हो वीरान पड़ गई।

    अगले ही साल, यानी 2014 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और तीर्थ क्षेत्र को आपदा ने जो जख्म दिए थे, उन्हें मिटाना उनकी प्राथमिकता हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत इस क्षेत्र में हुए निर्माण कार्यों में इस पैदल पथ का पुनर्निमाण भी अहम था। प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने के बाद गरुड़चट्टी को साढ़े तीन किमी नया पैदल मार्ग तैयार कर केदारनाथ धाम से जोड़ दिया गया है। ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत केदारनाथ की पहाड़ी पर तीन ध्यान गुफाओं का निर्माण भी किया गया है। इनमें रुद्र ध्यान गुफा प्रमुख है।

    केदारनाथ धाम से 1.5 किमी दूर और समुद्रतल से 11 हजार 752 फीट की ऊंचाई पर स्थित रुद्र गुफा पांच मीटर लंबी और तीन मीटर चौड़ी है। गुफा के अंदर बिजली-पानी के साथ ही बाथरूम और हीटर की व्यवस्था भी की गई है। इस गुफा में 18 मई 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 घंटे ध्यान लगाया था। इसके बाद से ये गुफाएं देश-दुनिया में लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गईं। इनके संचालन का जिम्मा गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) के पास है। गुफा में टेलीफोन के साथ ही ध्यान और योग करने के लिए सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

    केदारनाथ व्यापार संघ के अध्यक्ष महेश बगवाड़ी कहते हैं कि ध्यान गुफा का निर्माण जिस उद्देश्य से किया गया है। वह सार्थक सिद्ध हो रहा है, क्योंकि बाबा केदार के कई भक्त यहां साधना करना चाहते हैं। उनके लिए यह सबसे उपयुक्त स्थान है।

    केदारपुरी से साढ़े किमी पहले केदारनाथ पैदल मार्ग पर स्थित गरुड़चट्टी आपदा से पहले महत्वपूर्ण चट्टी (पड़ाव) हुआ करती थी। यहां साधु-संत और यात्री बड़ी संख्या में पहुंचकर रात्रि विश्राम किया करते थे। अक्टूबर 2017 में केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्यों के शिलान्यास को पहुंचे प्रधानमंत्री ने इस चट्टी को भी फिर से आबाद करने की इच्छा जताई थी। इसके तत्काल बाद ही चट्टी को आबाद करने की योजना तैयार की गई। अब केदारनाथ से गरुड़चट्टी तक नया पैदल मार्ग तैयार हो चुका है, जो कि तीन मीटर चौड़ा है।

    जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण रुद्रप्रयाग के सहायक अभियंता एनएस नवानी ने बताया कि मार्ग तैयार करने में लगभग 17 करोड़ रुपये की लागत आई। केदारनाथ में मंदाकिनी नदी पर फिलहाल अस्थायी पुल से आवाजाही हो रही है और पक्के पुल का निर्माण चल रहा है। गरुड़चट्टी में भी यात्री सुविधाएं जुटाई जा रही हैं।

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    साधना का केंद्र रही है पौराणिक चट्टी 

    वयोवृद्ध तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती कहते हैं कि गरुड़चट्टी का संबंध भगवान विष्णु से रहा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ में सवार होकर केदारनाथ आए थे। इस दौरान वे इस चट्टी में रुके और कुछ समय यहां विश्राम किया। तब से इस चट्टी का नाम गरुड़चट्टी पड़ा। यहां पर भगवान गरुड़ की मूर्ति भी स्थापित है। आपदा से पूर्व कई साधु-संत यहां वर्षभर साधना करते थे। यहां तक कि दस से बारह फीट बर्फ में भी वे यहीं रहते थे। 

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