Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अरे ये क्‍या? हिमालयी चोटी की बर्फ पिघली, कई अन्य चोटियां भी पड़ गईं काली; कहीं खतरे की घंटी तो नहीं!

    Himalayan Peak Snow Melts हिमालय में बर्फ पिघलने की रफ्तार ने चिंता बढ़ा दी है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित ह्यूंचुली चोटी की बर्फ भी पिघल रही है जिसे लेकर बुजुर्गों का मानना है कि यह कभी नहीं पिघलती। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह सब पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ का असर है। वहीं पहाड़ों में पाला गिरने से कृषि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

    By omprakash awasthi Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 07 Dec 2024 10:09 AM (IST)
    Hero Image
    Himalayan Peak Snow Melts: पिथौरागढ़ जिले में स्थित ह्यूंचुली चोटी की बर्फ भी पिघल रही है. Jagran

    जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़/धारचूला। Himalayan Peak Snow Melts: विगत कई वर्षों से हिमालय में मौसम चक्र परिवर्तन हो रहा है। समय पर हिमपात नहीं हो रहा है। नवंबर से मध्य जनवरी तक होने वाला हिमपात फरवरी अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल तक हो रहा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जिसके चलते बर्फ जम नहीं पा रही है और हमेशा चमकने वाली चोटियों की बर्फ तेजी से पिघल रही है और चोटियां काली पड़ती जा रही है। मौसम जल्दी मेहरबान नहीं हुआ तो इस वर्ष कुछ मिथक टूटने वाले हैं। जिसमें ह्यूंचुली की बर्फ पिघलना है।

    ह्यूंचुली की बर्फ कभी नहीं पिघलती है

    नेपाल सीमा से लगे क्षेत्र में नारायण आश्रम के पास में एक चोटी है जिसे ह्यूंचुली कहा जाता है। अतीत से ही यह माना जाता रहा है कि ह्यूंचुली की बर्फ कभी नहीं पिघलती है। जिसके चलते भारत और नेपाल दोनों देशों में जब बुजुर्ग जन्म, नामकरण व अन्य शुभ कार्यों में छोटों को आशीर्वाद देते है तो उसमें लंबी उम्र के लिए ह्यूंचुली की बर्फ और नदी की रेत की तरह कभी खत्म नहीं होने वाला आशीष देते आए हैं। भारत-नेपाल के स्थानीय लोकगीतों में ह्यूंचुली का जिक्र किया जाता है।

    यह भी पढ़ें- उत्‍तराखंड के इस हिल स्‍टेशन में ल्वेथाप की गुफाएं, मिलती है वानर से नर बनने की अद्भुत कड़ी

    इधर प्रकृति कुछ नया रंग दिखा रही है। समय से दो माह बाद बर्फबारी होने और तब तक तपिश बढ़ जाने से अधिकांश बर्फ पिघल जाती है। जिस कारण चोटियों पर बर्फ कम होती जा रही है। इसका प्रभाव इस वर्ष से स्पष्ट नजर आने लगा है। बीते वर्षों में भी हिमपात देर हो रहा था, परंतु इस तेजी के साथ बर्फ नहीं पिघल रही थी। मध्य हिमालय से लेकर उच्च हिमालय तक दिन में चटक धूप और दिन ढलते ही तापमान में तेजी से गिरावट आ रही है।

    ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रात का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस पहुंच रहा है। पर्यावरणविद धीरेंद्र जोशी का कहना है कि यह सब पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ का असर है। वह कहते हैं कि सरकार को हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण के लिए एक ठोस पहल करनी होगी। हिमालय के पर्यावरण को प्राथमिकता के साथ संरक्षित करना चाहिए।

    पाले से पहाड़ में बढ़ रही ठंड, कृषि पर भी पड़ रहा प्रतिकूल असर

    अल्मोड़ा : पिछले करीब तीन माह से वर्षा नहीं होने से पहाड़ में रात्रि में पाला गिरने लगा है। इससे सुबह के समय ठंड में बढ़ोतरी हो रही है। वहीं रबी सीजन में बोई गई फसलों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। शाक-भाजी की पौध भी पाले से प्रभावित हो रही है। ऐसे में फसलों व सब्जियों की बढ़वार पर असर पड़ रहा है।

    यह भी पढ़ें- Uttarakhand Temple: देवभूमि के इस मंदिर में भंडारे की बुकिंग में नजर आती है बाबा के प्रति आस्था, 2032 तक फुल

    जिले में वर्तमान में 33,500 हेक्टेयर में गेहूं, जौ, मटर, सरसौं व लाही की फसल बोई गई है। एक तो तीन महीने से वर्षा नहीं होने से रबी की फसल खेतों में समान तौर पर नहीं उग पाई है। वहीं रात्रि को गिर रहा पाला फसलों को प्रभावित कर रहा है। वहीं किसानों की ओर से बोई सब्जियों पर भी पाले की मार पड़ रही है।

    धौलादेवी क्षेत्र के जागेश्वर, आरतोला, भगरतोला, डंडेश्वर, लमगड़ा क्षेत्र के मोरनौला, मोतियापाथर, शहरफाटक, जलना, जैंती व भैसियाछाना क्षेत्र के धौलछीना, विमलकोट, पत्थरखानी, जमराड़ीबैंड आदि इलाकों में रात्रि में जमकर पाला गिर रहा है।