रोंगटे खड़े कर देगी पेशावर कांड के नायक की कहानी, उनके कदम से ब्रिटिश हुकुमत में मच गई थी खलबली
पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। 23 अप्रैल 1930 को उन्होंने निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इन् ...और पढ़ें

पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली। इंडियन पोस्ट की ओर से उनके सम्मान में जारी डाक टिकट।
अनुज खंडेलवाल, जागरण लैंसडौन: पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों के दर्ज है। 23 अप्रैल 1930 को रायल गढ़वाल राइफल्स के हवलदार मेजर चंद्र सिंह गढवाली ने निहत्थे पठानों पर गोली चलाने संबंधी ब्रिटिश अधिकारी के आदेशों को मानने से इन्कार करते हुए अपनी पल्टन को सीज फायर के निर्देश दिए। उनकी इस हिम्मत के चलते ब्रिटिश हुकुमत में खलबली मच गई थी।
25 दिसंबर 1891 को तत्कालीन ब्रिटिश गढ़वाल में चमोली के मासी गांव में चंद्र सिंह का जन्म हुआ। 1914 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली लैंसडौन पहुंच कर सेना में भर्ती हुए।
23 अप्रैल 1930 को हवलदार मेजर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में रायल गढ़वाल राइफल्स के जवानों को पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार में चल रही पठानों की सभा में ब्रिटिश कैप्टन रिकेट ने ओपन फायर करने का आदेश दिया। लेकिन, इस बीच हवलदार मेजर चंद्र सिंह गढ़वाली ने आदेश न मानते हुए अपनी पल्टन को सीज फायर के निर्देश दे दिए।
सैनिकों ने अपनी बंदूक पठानों पर तानने के बजाए जमीन की ओर कर दी। हवलदार मेजर चंद्रमोहन के निर्देश पर गढ़वाली सैनिकों ने एक भी गोली नही चलाई। उन्होने कैप्टन रिकेट से कहा कि गढ़वाली सैनिक निहत्थे लोगों पर गोली नहीं चलाते। उनके इस कदम से ब्रिटिश सेना में हड़कंप मच गया। अंग्रजों को अपने पैरों तले जमीन खिसकती महसूस हो गई।
पेशावर कांड में इस घटना से गढ़वाली बटालियन को ऊंचा मुकाम मिलने के साथ ही चंद्र सिंह को अब नायक चंद्रमोहन सिंह गढ़वाली के नाम से भी जाना गया। अंग्रजों की ओर से गढ़वाली सैनिकों को नजर बंद करने के साथ उनपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। जबकि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को मुत्यृदंड की सजा सुनाई गई। उनकी सारी संपति जब्त भी कर दी गई।
बैरिस्टर मुकुंदी लाल के अथक प्रयासों से उनकी सजा आजीवन कारावास में बदल गई। चंद्र सिंह गढ़वाली को 14 साल के कारावास के लिये ऐबटाबाद की जेल में भेज दिया गया। जिसके बाद उन्हें अलग-अलग जेलों में स्थानांरित किया जाता रहा।
इस दौरान उनकी सजा कम हो गई और 11 साल के कारावास के बाद इन्हें 26 सितंबर 1941 को आजाद कर दिया। इसके बाद वह महात्मा गांधी के संपर्क में आ गए। आठ अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गढ़वाली ने इलाहाबाद में रहकर इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई और गिरफ्तार हुए। 1945 में इन्हें आजाद कर दिया गया।
सम्मान
- 23 अप्रैल 1994 को इंडिया पोस्ट ने डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मानित किया।
- उत्तराखंड औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय का नाम वीर चंद्र सिंह गढ़वाली
- के नाम पर रखा गया है।
- 2021 में उनकी प्रतिमा का अनावरण भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था।
- उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना संचालित की गई।
- . दिल्ली के साकेत क्षेत्र में उनके नाम पर एक स्कूल बनाया गया है।
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