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    पंडित मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार में बचाई थी गंगा की अविरलता, अंग्रेजी हुकूमत को घुटने टेकने पर किया था मजबूर

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 04:19 PM (IST)

    हरिद्वार में हरकी पैड़ी गंगा आरती और श्री गंगा सभा का महत्वपूर्ण योगदान है। 1914 में ब्रिटिश हुकूमत ने गंगा की धारा को बाधित करने का प्रयास किया, लेकि ...और पढ़ें

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    महामना पंडित मदन मोहन मालवीय। फाइल फोटो

    शैलेंद्र गोदियाल, जागरण हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार का नाम लेते ही जिस दिव्य स्थल की छवि मन में उभरती है, वह है हरकी पैड़ी। मां गंगा की अविरल धारा, सुबह और सायंकालीन गंगा आरती और सहस्रों दीपों की आलोकित छटा के पीछे जिस संस्था का सतत योगदान है, वह है श्री गंगा सभा।

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    कम ही लोग जानते हैं कि श्री गंगा सभा धार्मिक अनुष्ठान के संचालक के साथ सनातन संस्कृति धर्म ध्वज रक्षक भी है। जिसने आजादी से पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य को गंगा के पवित्र स्वरूप से खिलवाड़ करने से रोक दिया था।

    इस ऐतिहासिक संघर्ष के केंद्र में थे भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, जिनके नेतृत्व में हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों और महंतों ने गंगा की अविरल धारा से किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। उसी विराट जनआंदोलन से प्रहरी के रूप में श्री गंगा सभा जन्मी।

    सन 1914 में, जब देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने भीमगोडा क्षेत्र में गंगा की प्राकृतिक एवं अविरल धारा को बाधित कर बांध निर्माण का निर्णय लिया। अंग्रेजों की मंशा हरकी पैड़ी तक नियंत्रित और कृत्रिम धारा पहुंचाने की थी।

    महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध किया। विरोध ने शीघ्र ही विराट जनआंदोलन का रूप लिया। इसकी बागडोर स्वयं महामना ने संभाली। काशी से हरिद्वार आकर उन्होंने इस आंदोलन को राष्ट्रीय चेतना से जोड़ दिया।

    महामना के नेतृत्व में चले इस जनसैलाब ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी। कुछ समय के लिए शासन ने कदम पीछे खींचे। परंतु वर्ष 1935 में ब्रिटिश सरकार ने हरकी पैड़ी पर कथा प्रतिबंध की और 1939 में चमड़े की बेल्ट पहनकर घाट क्षेत्र में प्रवेश किया।

    महामना ने इन अंग्रेजी शासन के इन आदेशों का भी सख्त विरोध किया और हर बार ब्रिटिश सत्ता को पीछे हटना पड़ा। हरकी पैड़ी पर महामना ने कथा भी की।

    इससे तत्कालीन गवर्नर जेम्स मेस्टन तक की कुर्सी डोल उठी। ग्वालियर, जयपुर, बीकानेर, पटियाला, अलवर और बनारस जैसी रियासतों के राजा-महाराजाओं का भी इस आंदोलन को समर्थन मिला।

    अंततः ब्रिटिश सरकार को हरकी पैड़ी के ऊपर बांध निर्माण की योजना निरस्त हुई और गंगा की एक अविरल धारा भागीरथी बिंदु छोड़नी पड़ी। जो आज भी अविरल रूप में हैं।

    अवैध निर्माण व अतिक्रमण

    गंगा संरक्षण के संघर्षों की स्थायी प्रहरी के रूप में सन् 1916 में श्री गंगा सभा की विधिवत स्थापना हुई। तब से लेकर आज, एक सदी से अधिक समय बीतने के बाद भी, श्री गंगा सभा मां गंगा की सेवा, हरकी पैड़ी की देखरेख और गंगा आरती के दिव्य आयोजन में निरंतर करती आ रही है।

    महामना मदन मोहन मालवीय ने करीब 40 एकड़ भूमि हरिद्वार के बीचों-बीच दान में लेकर ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम विद्यापीठ की स्थापना की। यह विद्यापीठ आज भी सनातन संस्कृति का ज्ञान बांट रही है।

    इसके अलावा उत्तराखंड प्रदेश का सबसे बड़ा आयुर्वेद विवि का परिसर भी ऋषिकुल में चल रहा है। परंतु, चिंता इस बात की है कि ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम विद्यापीठ की कई एकड़ भूमि पर अवैध निर्माण व अतिक्रमण हो रखा है।

    जिससे ब्रह्मचर्याश्रम विद्यापीठ के असिस्त्व पर भी संकट है। परंतु सनातन रक्षक होने का दावा करने वाले यहां भूमाफिया बने हुए हैं।