Pauri के गजल्ड गांव में गुलदार का आतंक, मशहूर शिकारी जाय हुकिल ने उठाई बंदूक; निशाने पर आदमखोर
पौड़ी जिले के गजल्ड गांव में गुलदार के आतंक को देखते हुए मशहूर शिकारी जाय हुकिल ने आदमखोर को मारने के लिए बंदूक उठाई है। 18 वर्षों में 46 आदमखोर गुलदा ...और पढ़ें

पौड़ी जिले के गजल्ड गांव में आदमखोर गुलदार को मारने के लिए मशहूर शिकारी जाय हुकिल ने बंदूक उठाई है।
मनोहर बिष्ट, जागरण पौड़ी: पौड़ी जिले के गजल्ड गांव में आतंक का पर्याय बना गुलदार अब मशहूर शिकारी जाय हुकिल के निशाने पर रहेगा।
बीते 18 वर्षों में 46 आदमखोर गुलदार व एक बाघ को ढेर करने वाले हुकिल ने छह वर्ष बाद फिर किसी आदमखोर को मारने के लिए बंदूक उठाई है।
हालांकि, आदमखोर को चिह्नित करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा। इसके लिए मंगलवार को उन्होंने ग्रामीणों से घटना का फीडबैक लिया।
ग्राम पंचायत चवथ के गजल्ड गांव में चार दिसंबर को बाला सुंदरी मंदिर से पूजा कर लौट रहे राजेंद्र नौटियाल को गुलदार ने निवाला बना लिया था।
इसके बाद वन विभाग ने गुलदार को आदमखोर घोषित कर उसे मारने के लिए गांव में दो विभागीय शूटर तैनात कर दिए थे। लेकिन, क्षेत्रवासी लगातार निजी शूटर तैनात करने की मांग कर रहे थे।
सोमवार को प्रमुख सचिव (वन) आरके सुंधाशु, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक रंजन कुमार मिश्र व गढ़वाल आयुक्त विनय शंकर पांडे गजल्ड गांव पहुंचे तो लौटते समय सत्याखाल में ग्रामीणों ने उनका घेराव कर दिया।
उन्होंने क्षेत्र में गुलदार की लगातार सक्रियता पर वन विभाग की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा किया। इस पर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने गजल्ड में मशहूर शिकारी जाय हुकिल व राकेश बड़थ्वाल को तैनात करने के आदेश जारी किए।
मंगलवार को दोनों शिकारियों ने गजल्ड में गुलदार के आने-जाने वाले रास्तों, घटना स्थल व आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण किया।
हुकिल ने बताया कि आदमखोर की पहचान कर ही वह अपना अगला कदम उठाएंगे। निरीक्षण में पता चला है कि क्षेत्र में करीब पांच गुलदार सक्रिय हैं। इससे उनकी चुनौती और बढ़ गई है।
2007 में किया था पहला शिकार
पौड़ी निवासी जाय हुकिल ने नरभक्षी गुलदार का पहला शिकार वर्ष 2007 और दूसरा वर्ष 2009 में किया था। वर्तमान में वह पौड़ी के गडोली में हंटर हाउस होम स्टे का संचालन करते हैं। यहां वे स्कूली बच्चों व पर्यटकों को मानव-वन्यजीव संघर्ष की कहानियां सुनाकर जागरूक करते हैं।
इसलिए बने शिकारी
हुकिल बताते हैं एक नरभक्षी को मारने से पूरे इलाके के लोगों की रक्षा होती है, इसलिए उन्होंने शिकारी बनने का निर्णय लिया। जिस भी क्षेत्र में नरभक्षी गुलदार या बाघ की सक्रियता रहती है, वहां एक तरह का अघोषित कर्फ्यू-सा लग जाता है।

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