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    नशा व जुआ खेलने वालों को महिलाओं ने लगाया 'बिच्‍छू' का डंक, फिर बदल गई गांव की सूरत

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 03 Jan 2020 05:16 PM (IST)

    हवालबाग ब्लॉक का धामस गांव। जीवट महिलाओं ने एकजुट होकर गांव का पूरा माहौल और तस्वीर बदल कर रख दी है।

    नशा व जुआ खेलने वालों को महिलाओं ने लगाया 'बिच्‍छू' का डंक, फिर बदल गई गांव की सूरत

    अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : जिस समाज की महिलाएं बदलाव की ठान लेती हैं, वहां की तस्‍वीर कुछ और ही होती है। क्‍योंकि एक महिला न सिर्फ खुद को बदलती है बल्कि पूरे परिवार को संस्‍कारित करती है। वहीं बात उत्‍तराखंड की हो तो यहां मातृशक्ति का हर क्षेत्र में दबादबा नजर आता है। बात चाहे ग्रामीण परिवेश की हाे या शहरी, हर जगह मातृशक्ति की धाक है। यहां सर पर लकड़ी का बोझ लिए पहाड़ चढ़ते महिलाएं नजर आती हैं, तो प्रशासनिक जिम्‍मेदारियों का भी बखूबी निर्वहन कर रही हैं। चलिए जानते हैं पहाड़ के एक ऐसे ही गांव की कहानी, जहां मातृशक्ति ने अनोखी तरकीब अपनाकर गांव की सूरत बदल दी है।

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    गांव में नशे और जुए का नाश कर तरक्‍की की रात पर ले चलीं

    अल्‍मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक का धामस गांव संघर्ष और बदलाव का प्रतीक बन गया है। जीवट महिलाओं ने एकजुट होकर गांव का पूरा माहौल और तस्वीर बदल कर रख दी है। नशे व जुए के खिलाफ एकजुट हुई नारीशक्ति ने बेशक कुछ कड़े कदम उठाए मगर दो दशक बाद का धामस गांव अब पुरुषार्थ की कहानी गढ़ रहा। जो युवा किसी दौर में शराब की ओर झुकने लगा था आज खेती किसानी कर मेहनत में डूबा दिखता है। तो तमाम स्वरोजगार व रोजगार से जुड़ गांव की तरक्की में हाथ बंटा रहे।

    कभी नशे और जुए की गिरफ्त में था ग्रामीण

    किसी दौर में धामस गांव में हर दस कदम पर युवा जुए में दिन बर्बाद करता था। हर चार कदम पर शराब अराजकता की तस्वीर दिखाती थी। करीब ढाई दशक पूर्व गांव की शांति देवी ने बिगड़ते माहौल और बर्बाद हो रही युवा पीढ़ी को सही राह दिखाने का बीड़ा उठाया। महिलाओं को एकजुट किया। नशा व जुआ बंदी को जो कदम उठाया वह मिसाल बन गया।

    नशे और जुए से इस अनूठे तरीके से दिलाई मुक्ति

    बच्चों के मन में नशे व जुए के प्रति घृणा पैदा करने के लिए बिच्छू घास को अपना हथियार बनाया। शांति देवी बिष्ट के तमाम महिलाओं ने एक सुर से गांव सुधार का बीड़ा उठाया। जुए व शराब के अड्डों पर अपनी सेहत, समय व परिवार की बर्बादी कर रहे लोगों को बिच्छू घास लगाने का ही नतीजा रहा कि आज धामस गांव पुरुषार्थ की गाथा लिख रहा।

    इसलिए कहते हैं इसे बिच्‍छु घास

    अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है। बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं। पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही उसमें झनझनाहट शुरू हो जाती है। जो कंबल से रगड़ने से दूर हो जाती है। इसका असर बिच्छु के डंक से कम नहीं होता है। इसीलिए इसे बिच्छु घास भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊंनी मे सिंसोण के नाम से जाना जाता है।

    नशा व जुआ बंदी के बाद अब पर्यावरण सुरक्षा 

    खास बात कि गांव में शराब व जुआबंदी के बाद सौ से ज्यादा महिलाओं की टोली दो दशक से जैवविविधता से लबरेज स्याहीदेवी के जंगल को आग से बचाती आ रही। वहीं पूरे गांव की नई तस्वीर पेश करने वाली शांति देवी पिछले 21 वर्षों से महिला मंगल दल की मुखिया के तौर पर समाज को पर्यावरण प्रेम के लिए प्रेरित कर रही।

    एक आवाज पर लगती है दौड़

    फायर सीजन में वनाग्नि सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है। ऐसे में शांति देवी के साथ गोविंदी बिष्ट, लीला देवी, सरिता देवी, गंगा देवी आदि तमाम जिवट महिलाएं आग से लडऩे क लिए चूल्हा चौका छोड़ अलग अलग दिशाओं से मोर्चा संभालती हैं।

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