नैनीताल से इला के बाद संसद नहीं पहुंची कोई महिला प्रत्याशी, जानिए कुछ और अहम बातें
आजादी के बाद निर्वाचित पहली लोकसभा से अब तक उत्तराखंड से केवल दो महिलाएं संसद पहुंची हैं। ये दोनों महिलाएं भी भाजपा से थीं और उपचुनाव जीतकर संसद तक का रास्ता तय किया था।
हल्द्वानी, जेएनएन : वर्ष 1977 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री केसी पंत ने जमरानी बांध का शिलान्यास किया, लेकिन कुमाऊं के तत्कालीन दो बड़े नेताओं की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता व वर्चस्व की लड़ाई के चलते यह आगे नहीं बढ़ सका। जमरानी हमेशा नेताओं की राजनीतिक जमीन की सिंचाई करता रहा और जनता प्यासी रह गई। तब से लेकर हर लोकसभा चुनाव में यह बांध हमेशा राजनीतिक मुद्दा बनता रहा।
चुनाव का जिक्र छेड़ते हुए हल्द्वानी निवासी 87 वर्षीय तारा दत्त कांडपाल पुराने दौर की यादें ताजा करने की कोशिश करने लगते हैं। स्मृति में कुछ ऐसी बातें शेष हैं, जो उस जमाने में बड़ा चुनावी मुद्दा हुआ करती थीं। कांडपाल वरिष्ठ नागरिक कल्याण परिषद के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह बताते हैं कि पहले नेता जमीन से जुड़े होते थे, जो क्षेत्र के विकास पर भी ध्यान देते थे और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे।
वहीं जनता पार्टी के टिकट पर वर्ष 1989 में हल्द्वानी से विधायक का चुनाव लड़ चुके व्यापारी नेता हुकुम सिंह कुंवर बताते हैं कि आजादी के बाद निर्वाचित पहली लोकसभा से अब तक उत्तराखंड से केवल दो महिलाएं संसद पहुंची हैं। ये दोनों महिलाएं भी भाजपा से थीं और उपचुनाव जीतकर संसद तक का रास्ता तय किया था। इसमें 1998-1999 तक नैनीताल सीट से इला पंत सांसद रहीं। वर्तमान में माला राजलक्ष्मी टिहरी से भाजपा सांसद हैं। इला पंत के बाद आज तक नैनीताल लोकसभा क्षेत्र से कोई भी महिला प्रत्याशी संसद नहीं पहुंची। बसपा ने भी इस सीट पर पूर्व मिस इंडिया रही नैना बलसावर को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था। कुवंर बताते हैं कि उत्तर प्रदेश से अलग राज्य उत्तराखंड बनने के बाद नैनीताल सीट से रामनगर विधानसभा क्षेत्र, बहेड़ी और टनकपुर का बड़ा हिस्सा चला गया।
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