आज है क्रांतिकारी सरदार राजेन्द्र सिंह की जयंती, बड़े भाई शहीद भगत सिंह से हुए थे प्रभावित
सरदार राजेन्द्र सिंह में क्रांति का तूफान उठाया सगे बड़े भाई शहीद-ए आजम सरदार भगत सिंह और उनके सहयोगियों के बचपन से मिले सानिध्य ने।
बाजपुर, जीवन सिंह सैनी : मुहब्बत थी वतन की आजादी से, दिल में तूफान था क्रांति का और सोहबत थी वतन के दीवानों की...। इस तरह निखरा भारत मां का एक वीर सपूत, महान क्रांतिकारी सरदार राजेंद्र सिंह। इस वीर योद्धा के दिल में क्रांति का तूफान उठाया सगे बड़े भाई शहीद-ए आजम सरदार भगत सिंह और उनके सहयोगियों के बचपन से मिले सानिध्य ने। सरदार राजेंद्र सिंह का जन्म तीन फरवरी सन 1927 को ग्राम बंगा जनपद लायलपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था।
क्रांतिकारियों काे जेलों में पहुंचाते थे चिट्टी
राजेंद्र सिंह बचपन से ही दिलेर थे। प्राइमरी की शिक्षा पूरी होने पर इन्हें डीएवी कॉलेज लाहौर में भेज दिया गया। इनकी अवस्था जब दस वर्ष थी उस समय इनके परिवार के बड़े सदस्य या तो जेलों में थे या फरार। राजेंद्र के क्रांतिकारी परिवार में देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों का आना-जाना था। बालक राजेंद्र भी इन क्रांतिकारियों की बातें सुनते और अपने ज्येष्ठ भाइयों की तरह देश सेवा करने की सोचते, परंतु बाल हृदय की बात कौन समझता? बढ़ती उम्र के साथ राजेंद्र सिंह का ध्यान पढ़ाई से विरत होते गया। धीरे-धीरे वह शिक्षा से क्रांति की ओर उन्मुख होने लगे। हाईस्कूल की परीक्षा बीच में छोड़ कर घर से फरार हो गए। वह जेलों में बंद क्रांतिकारियों के पास बाहर से संदेश ले जाते। आम नागरिकों को स्वतंत्रता के बारे में बताते तथा जगह-जगह भाषण देकर लोगों में जागरूकता पैदा करते और धीरे-धीरे ब्रिटिश हुकूमत की नजरों में चढ़ गए।
1945 से लेकर 15 मार्च 1947 तक रहे भूमिगत
12 नवंबर सन 1945 में राजेंद्र सिंह लाहौर में भाषण दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने चेतावनी देते हुए ब्रिटिश हुकूमत से आइएनए के अधिकारियों तथा अन्य व्यक्तियों की रिहाई की मांग की, जिस कारण ब्रिटिश सरकार ने धारा 124 ए के तहत वारंट जारी किए। वारंट की सूचना पाते ही सरदार राजेंद्र सिंह छिप गए। सन 1945 से लेकर 15 मार्च 1947 तक वे भूतिगत रहे। एक दिन सरदार राजेंद्र सिंह को लाहौर पुलिस ने विस्फोटक कानून एक्सप्लोसिव एक्स 108 के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया। सरदार राजेंद्र सिंह की तलाशी में पांच बम पाए गए।
15 दिनों तक रखा गया मानसिक अस्पताल में
बम बरामद होने के बाद उनको मानसिक चिकित्सालय में 15 दिन रखा गया। इसके उपरांत सरदार राजेंद्र सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। उन पर लगाए गए आरोपों पर सुनवाई के दौरान लाहौर की अदालत ने उनकी रिहाई के आदेश दिया, परंतु पुलिस ने उनको डीआइआर के तहत नजरबंद कर लिया। उन पर आरोप लगाया गया कि वह ब्रिटिश अधिकारियों तथा मजिस्ट्रेटों की हत्या करना चाहते हैं। सिंह को 30 सितंबर 1947 को लाहौर के किले से आजाद कर दिया गया। उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रयासों से उन्हें भारत को सौंप दिया गया।
तराई में आकर बसे राजेंद्र सिंह
सरदार राजेंद्र सिंह आजाद होने के बाद 1950 में तराई में आकर बस गए। अपने प्रयासों से थोड़ी बहुत जमीन खरीद कर परिवार की गुजर-बसर करने लगे। पेंशन सुविधा के लिए उन्होंने अनेक कार्रवाई की, परंतु कोई विशेष लाभ नहीं मिल सका। 1963 में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार ज्ञानी जैल सिंह ने इस परिवार को सम्मानित करते हुए राजेंद्र सिंह की माता को पंजाब माता की उपाधि से अलंकृत करते हुए सरदार भगत सिंह की शहीदी दिवस पर पंजाब में छुट्टी की घोषणा की।
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