हल्द्वानी: बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मामले में टली सुप्रीम सुनवाई, अब नौ दिसंबर का इंतजार
हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है, अब यह 9 दिसंबर को होगी। राज्य सरकार ने कोर्ट को ब ...और पढ़ें

महत्वपूर्ण मामले में सुनवाई अब 9 दिसंबर को होगी। प्रतीकात्मक
जागरण संवाददाता नैनीताल। सुप्रीम कोर्ट में हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मामले में सुनवाई फिलहाल टल गई। इस महत्वपूर्ण मामले में सुनवाई अब 9 दिसंबर को होगी।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत व न्यायमूर्ति जे बागची की खंडपीठ में नैनीताल हाईकोर्ट के अतिक्रमण हटाने के आदेश को चुनौती देती अब्दुल मतीन सिद्दीकी सहित अन्य की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई तय थी।
भारत निर्वाचन आयोग की ओर से राज्यों में किए जा रहे एसआईआर को चुनौती देती याचिकाओं पर सुनवाई की वजह से यह मामला टल गया। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की ओर से कोर्ट को बताया गया कि रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मामले में संयुक्त सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जा चुकी है। उन्होंने प्रस्तावित भूमि को रेलवे के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण बताया। कहा कि अतिक्रमण के कारण रेलवे के विस्तार प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। इस पर कोर्ट ने समयाभाव में सुनवाई टालते हुए अगली सुनवाई को 9 दिसंबर की तिथि तय कर दी।
उल्लेखनीय है कि 20 दिसंबर 2022 को हाई कोर्ट ने हल्द्वानी के सामाजिक कार्यकर्ता रविशंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हल्द्वानी में 31.87 हेक्टेयर रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था।
असल में बरेली में रेलवे के इज्जतनगर मंडल के राज्य संपदा अधिकारी ने वर्ष 2021 में रेलवे भूमि पर कब्जा करने वालों को नोटिस जारी किया था। इस पर बनभूलपुरा के लोगों ने दावा किया कि रेलवे की ओर से जारी नोटिस कानून के विरुद्ध है और विवादित भूमि नगरपालिका बोर्ड की सीमा में आती है। इसपर रेलवे ने कहा कि भूमि खाली करने की प्रक्रिया सार्वजनिक परिसर (बेदखली) अधिनियम के तहत शुरू की गई थी। अवैध रूप से कब्जा की गई रेलवे भूमि के लेआउट के साथ कब्जेदारों को नोटिस जारी किए गए थे।
कोर्ट ने कहा था कि नगरपालिका सीमा के तहत केंद्र सरकार और अन्य केंद्रीय संगठनों की कई संपत्तियों का निर्माण किया गया है। इससे यह दावा नहीं किया जा सकता कि संबंधित विभागों के पास उस संपत्ति का स्वामित्व नहीं है। न्यायालय ने माना कि जब यह स्पष्ट है कि भूमि रेलवे की है, तो कब्जा अब अतिक्रमण है। इसपर रेलवे की कार्रवाई वैध है।

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